मिलावट कितना अपराध कितना अनैतिक

मिलावट कितना अपराध कितना अनैतिक

दो प्रकार के काम अपराध होते है तथा अन्य सभी या तो नैतिक या अनैतिक । नैतिक को सामाजिक, अनैतिक को असामाजिक तथा अपराध को समाज विरोधी कार्य कहते है । इस परिभाषा के अनुसार दो ही प्रवृत्तियां अपराध की श्रेणी में आती हैं- 1 जालसाजी, धोकाधड़ी , धुर्तता । 2 हिंसा और बलप्रयोग । इनमें भी जालसाजी, धोखाधड़ी के अन्तर्गत दो भाग किये जाते है- 1 मिलावट, कमतौलना तथा 2 जालसाजी, धोखाधड़ी । दोनों ही प्रवृत्ति एक दूसरे के साथ जुड़ी रहती है किन्तु दोनों में भिन्नता भी होती है ।

            मिलावट भी कई प्रकार की होती हैं-

1 उपभोक्ता वस्तुओं में मिलावट । 2 इतिहास में मिलावट । 3 धर्मग्रंथों में मिलावट । 4 असली वस्तु की जगह नकली वस्तु बनाकर असली के समान प्रस्तुत करना । यदि हम सुक्ष्म विवेचना करें तो आपसी व्यवहार में या बातचीत में भी बहुत कुछ मिलावट या नकलीपन छिपा रहता है । इसमें कभी-कभी धुर्तता का भी समावेश हो जाता है किन्तु हम इसको छोड़ रहे हैं ।

          यदि हम मिलावटी सामान की चर्चा करें तो हमें मिलावट और मिश्रण को अलग-अलग करना होगा । मिश्रण कोई अपराध नहीं होता, न ही कोई अनैतिक कार्य होता है । जबकि मिलावट अनैतिक तो होता ही है साथ-साथ प्रायः अपराध भी होता है । दोनों में एक प्रमुख अंतर है कि यदि दूसरे को दी गई वस्तु खरीदने वाला वैसी ही समझ रहा है जैसी वह वस्तु दिख रही है तो वह मिलावट मिश्रण मानी जाती हैं मिलावट नहीं । दूध में पानी मिला हुआ है और खरीदने वाला समझ रहा है कि दूध शुद्ध नहीं है तो वह वस्तु मिलावटी नहीं है । इसका अर्थ हुआ कि मिलावट तभी अपराध है जब बेचने वाला धोखा देने के उद्देश्य से मिलावट किया हो । यदि बेचते समय वस्तु में की गई मिलावट लिख दी गई है या खरीदने वाले को बता दी गई है तब वह मिलावट अपराध तो है ही नहीं, अनैतिक भी नहीं है । यदि किसी वस्तु को शुद्ध बताकर बेचा गया और उस वस्तु में धोखा देने के उद्देश्य से मिलावट की गई तभी वह मिलावट अपराध होती है । इसी तरह किसी स्थापित ब्रांड का सामान उस ब्रांड के नाम से बेचा जाये जो उस ब्रांड का नहीं है तब भी वह अपराध की श्रेणी में आता है । मिलावट की गई वस्तु यदि शरीर के लिए या पर्यावरण के लिए हानिकारक नहीं है फिर भी धोखा देने के लिए मिलावट या नकल की गई है तो वह कार्य अपराध की श्रेणी में शामिल होगा । वर्तमान समय में अनेक सरकारी कानून मिलावट और मिश्रण को साफ नहीं कर पाते जिसके कारण भ्रम बन जाता है ।

      धर्मग्रंथों में मिलावट भी बड़ी मात्रा मे होती रही है । बताया जाता है कि मनुस्मृति में भी काफी मिलावट हुई है । यहाँ तक कि किसी ने एक नकली यजुर्वेद भी बनाया था जो प्रचलित नहीं हो सका । कुछ वर्ष पूर्व एक व्यक्ति ने एक पुस्तक लिखकर उसे उपनिषद का नाम देने का प्रयास किया । अन्य अनेक धर्मग्रंथों में भी मिलावट या नकली बनाये जाने की जानकारी मिलती रहती है । पुराणों में श्राद्ध के समय ब्राम्हण को मांस खिलाने का विवरण भी मेंने स्वयं पढ़ा है । मैंने पुराणों में हजरत मुहम्मद और ईषु मसीह का भी जीवन विवरण पढ़ा है ।

             इतिहास में तो इतनी मिलावट हुई है कि क्या असली है,क्या नकली यह बताना ही संभव नहीं है । यहाँ तक कि आर्य बाहर से आये ऐसी बाते भी इतिहास में तोड़-मरोड़ कर लिख दी गई है । पता ही नही चलता कि यदि भारत आदिवासियों का देश था तो  दुनिया में भारत एक विकसित संस्कृति के रुप में कैसे स्थापित हुआ । एक पक्ष पंडित नेहरु को गयासुददीन का वंशज सिद्ध करने का प्रयत्न कर रहा है तो एक दूसरा पक्ष राम और सीता को भाई बहन प्रमाणित करता रहता है । सब कुछ इतिहास में ही लिखा हुआ है वह दिन दूर नहीं जब इतिहास ही प्रमाणित कर देगा कि भारत विभाजन कराने में गांधी की प्रमुख भूमिका थी अथवा अकबर ने हिन्दुओं पर बहुत अत्याचार किये । साम्यवादियों ने इतिहास पर मनमाना अत्याचार किया और अब दूसरे पक्ष की बारी हैं । किन्तु यह आज का विषय नहीं है फिर भी इतना अवश्य है कि इतिहास में हमेशा ही मिलावट होती रही है । यह पता ही नहीं है कि ताजमहल किसका था । जब सत्ता पर एक पक्ष मजबूत था तब इतिहास ताजमहल को मुसलमानों का प्रमाणित करता रहा । तो अब दूसरा पक्ष सत्ता में आकर ताजमहल को ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर हिन्दुओं का मंदिर प्रमाणित कर देगा । क्या सत्य है यह कभी पता ही नहीं चल पायेगा । क्योंकि दोनों ही सत्य इतिहासकारों द्वारा प्रमाणित किये जायेंगे।

             यदि हम भारत की वर्तमान स्थिति की समीक्षा करें तो क्या असली है, क्या नकली, क्या शुद्ध है, क्या अशुद्ध यह बताना ही कठिन हो गया है । भोजन सामग्री तो शुद्ध है हीं नहीं । किन्तु मिलावट के नाम पर घातक जहरीले पदार्थ भी मिला दिये जाते है । मांस में आदमी या कुत्ते का मांस कई बार पकड़ा गया । नकली दवाईयों से कई लोग मरते हुये देखे गये । नकली इतिहास से वर्ग संघर्ष बढ़ते हुये पाया जा रहा है । धर्म के नाम पर नये-नये संगठन बनकर नया नया इतिहास रच रहे है । व्यापारी वर्ग मिलावट को अपनी प्रतिस्पर्धा की मजबूरी बता कर नैतिक सिद्ध करने का प्रयास कर रहा है । राजनीति अपनी जालसाजी को कुटनीति का जामा पहनाकर मजबूरी सिद्ध कर रही है ।

                 धार्मिक या ऐतिहासिक मिलावट गुलामी काल से ही शुरु हुई मानी जाती है किन्तु मुस्लिम या ईसाई धर्म प्रभावित सरकारें लुकछिप कर मामूली ही हेर फेर करती थी किन्तु जब से भारत में साम्यवाद का प्रभाव बढा तब से सुनियोजित षडयंत्र के अन्तरर्गत धार्मिक तथा ऐतिहासिक मिलावट या नकल का प्रयास हुआ । अब संघ परिवार भी साम्यवादियों की इस प्रणाली का पूरा-पूरा उपयोग कर रहा है । धार्मिक या ऐतिहासिक मिलावट से तो हम व्यक्तिगत रुप से बच भी सकते है किन्तु खाद्य पदार्थ अथवा दवा जैसी वस्तुओं की मिलावट से हम कैसे बचें यह बडी चिंता का विषय है । नकली नोट चल रहे है, नकली स्टाम्प पेपर बिक रहे है, नकली डिग्रिया प्राप्त लोग डॉक्टर बन रहे है । समझ में नहीं आ रहा कि इस दुष्प्रभाव से हम कैसे बचें ।  समाज तो इस जालसाजी को रोकने में असमर्थ है ही किन्तु राज्य भी मिलावट को रोकने में बिल्कुल ही असफल है । मिलावट का बहुत घातक प्रभाव जन जीवन पर स्पष्ट दिख रहा है किन्तु राज्य की प्राथमिकताओं की सूची में मिलावट जालसाजी, धोखाधड़ी, या नकल का बहुत नीचे स्थान है ।

              मेरा यह मत है कि धोखा देने के उद्देश्य से की गई मिलावट या नकल को गंभीरतापूर्वक रोके जाने की आवश्यकता है । इसके खतरनाक परिणामों के महत्व को भी समझा जाना चाहिये । इसके लिये किसी भी वस्तु के अधिकतम मूल्य की कोई सीमा नहीं होनी चाहिये । यदि आवश्यक हो तो आज प्रचलित मूल्य से कम पर अपना सामान बेच सकता है किन्तु मूल्य नियंत्रण नहीं कर सकता  । दूसरी बात यह भी है कि राज्य को मिश्रण और मिलावट के बीच साफ-साफ फर्क करना चाहिये । जब तक धोखा देने का उद्देश्य स्पष्ट न हो जाये तब तक मिलावट को अपराध नहीं मानना चाहिये । किन्तु यदि मिलावट स्पष्ट है तो अधिक कठोर दण्ड की भी व्यवस्था होनी चाहिये । राज्य को इस मामले में और अधिक सक्रिय और सतर्क होना चाहिये ।