आरक्षण
आरक्षण
कुछ स्वीकृत निष्कर्ष है।
1 किसी भी प्रकार का आरक्षण घातक होता है, वर्ग विद्वेष वर्ग संघर्ष का आधार होता है। आरक्षण पूरी तरह समाप्त होना चाहिये।
2 किसी भी प्रकार का आरक्षण समाज मे शराफत को कमजोर तथा धूर्तता को मजबूत करता है।
3 आरक्षण सिर्फ व्यक्ति की प्रवृत्ति के आधार पर दिया जाना चाहिये। कानून का पालन करने वालो को सुरक्षा का आश्वासन ही एक मात्र आरक्षण दिया जाना चाहिये।
4 आरक्षण हमेशा घातक होता है। स्वतंत्रता पूर्व का जातीय अथवा परिवार व्यवस्था मे पुरूषो को प्राप्त सामाजिक आरक्षण भी घातक था और स्वतंत्रता के बाद का संवैधानिक आरक्षण भी घातक है।
5 संविधान के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार प्राप्त है । आरक्षण उस समानता को असमान बना देता है।
6 जातीय आरक्षण, महिला आरक्षण, धार्मिक आरक्षण अथवा गरीबी आरक्षण के दुष्परिणाम स्वाभाविक होते है। भारत इन दुष्परिणामो की चपेट मे है।
7 किसी भी प्रकार के अन्य आरक्षण की तुलना मे महिला आरक्षण अधिक घातक है । अन्य आरक्षण समाज को तोडते है और महिला आरक्षण परिवार को ।
8 स्वतंत्रता के पूर्व भी श्रम के विरूद्ध बुद्धिजीवियो ने आरक्षण प्राप्त कर लिया था तथा स्वतंत्रता के बाद भी श्रमजीवियो के खिलाफ बुद्धिजीवियो का आरक्षण जारी रहा । यह आरक्षण अंबेडकेर जी का षणयंत्र था।
9 भारतीय राजनैतिक व्यवस्था मे सबसे अधिक घातक भूमिका अम्बेडकर जी की रही है। उन्होने निरंतर जान बूझकर सत्ता की लालच मे समाज को खंड खंड करने का काम किया ।
10 वर्तमान समय मे सवर्णो द्वारा आरक्षण का विरोध स्वार्थ पूर्ण है, क्योकि वे सिर्फ जातीय आरक्षण का विरोध करते है। महिला आरक्षण धार्मिक आरक्षण आर्थिक आरक्षण का नही करते है।
हजारो वर्षो से पूरी दुनियां मे श्रम शोषण के नये नये तरीके बुद्धिजीवियो द्वारा खोजे जाते रहे है। भारत मे भी यह प्रकृया लम्बे समय से चलती रही है और आज भी जारी है। स्वतंत्रता के पूर्व बुद्धिजीवियो ने जन्म के आधार पर वर्ण और जाति बनाकर श्रमषोषण का रास्ता खोला था। इसी तरह पूरूष प्रधान व्यवस्था भी मजबूत की गई थी । स्वतंत्रता के बाद भी बुद्धिजीवियो का उददेष्य श्रम शोषण ही रहा किन्तु स्वरूप बदल दिया गया। बुद्धिजीवियो ने अम्बेडकर जी के नेतृत्व मे श्रम के विरूद्ध सफल षणयंत्र किया और सवर्ण बुद्धिजीवी तथा अवर्ण बुद्धिजीवी के बीच समझौता कराकर जातीय आरक्षण का एक नया कानून लागू कर दिया गया। श्रम के प्रति न्याय होता तो श्रम मूल्य वृद्धि के प्रयत्न होते किन्तु ऐसे प्रयत्नो को रोकते हुए जातीय आरक्षण लागु कर दिया गया। इस आरक्षण को लगातार आज भी जारी रखा जा रहा है। एक नया आरक्षण महिलाओ के नाम से लाने का प्रयत्न हो रहा है। उचित होता कि महिलाओ को पारिवारिक व्यवस्था मे समान भूमिका दे दी जाती तथा परिवार की संपूर्ण सम्पत्ति मे भी बराबर का अधिकार दे दिया जाता। सारे विवाद खत्म हो जाते । किन्तु महिला आरक्षण के नाम पर कुछ न कुछ समस्याओ के विस्तार का षणयंत्र चलता रहता है। हिन्दू मुसलमान के नाम पर भी आरक्षण की आवाज उठती रहती है। यदि सबको समान अधिकार मिल जाता तो यह समस्या पैदा ही नही होती । गरीबो की सहायता के नाम पर भी आर्थिक आरक्षण की बात उठती रहती है। यदि कृत्रिम उर्जा का मूल्य बढा दिया जाता तो गरीब अमीर की खाई अपने आप खत्म हो जाती और श्रम का मूल्य बढ जाता । ग्रामीण उधोग मजबूत हो जाते और शहरी आबादी अपने आप संतुलित हो जाती किन्तु आर्थिक आरक्षण के नाम पर यह षणयंत्र भी अब तक जारी है। भारत का हर बुद्धिजीवी किसी न किसी आधार पर आरक्षण का समर्थन करता है। क्योकि आरक्षण के नाम पर कमजोरो का शोषण करने का बुद्धिजीवियो को अप्रत्यक्ष लाभ भी होता है तथा साथ ही कमजोरो की मदद करने से उनकी सहानुभूति का प्रत्यक्ष लाभ भी मिलता है । यही कारण है कि भारत का हर बुद्धिजीवी किसी न किसी रूप मे भीम राव अंबेडकर का प्रशंसक है, क्योकि सब प्रकार के आरक्षण के मार्ग खोलने का पहला श्रेय भीम राव अम्बेडकर को जाता है। यहां तक कि नरेन्द्र मोदी तथा संघ परिवार भी अंबेडकर के प्रशंसक बन गये है।
किसी भी प्रकार का आरक्षण वर्ग विद्वेष का महत्वपूर्ण आधार बन जाता है। वर्ग विद्वेष को योजना पूर्वक बढाया जाता है और उसके दुष्परिणामो से सुरक्षा का ढोंग भी साथ साथ किया जाता है। यदि वर्ग विद्वेष पैदा ही न हो तो किसी प्रकार के समाधान की आव्यश्क्ता ही नही है। किसी भी प्रकार का आरक्षण हमेशा धूर्तता और अपराधो का विस्तार करता है। जिस वर्ग को आरक्षण प्राप्त होता है उस वर्ग के धूर्त भिन्न वर्ग के शरीफो का शोषण करने का अधिकार प्राप्त कर लेते है। इस तरह शराफत कमजोर होती जाती है और धूर्तता मजबूत। आज भारत का हर बुद्धिजीवी अधिक से अधिक चालाक होने का प्रयत्न कर रहा है जिससे वह मजबूतो के शोषण से बच भी सके और कमजोरो का शोषण कर भी सके। व्यवस्था लगातार टूट रही है धूर्तता मजबूत हो रही है।
कुछ लोग जातीय आरक्षण का विरोध कर रहे है। ये लोग सब प्रकार के आरक्षण का विरोध न करके सिर्फ जातीय आरक्षण का विरोध करते है क्योकि स्वतंत्रता के पूर्व उन्हे शोषण का एकाधिकार प्राप्त था । स्वतंत्रता के बाद उस एकाधिकार मे से थोडा सा हिस्सा अवर्णो के खाते मे चला गया। ऐसे लोग समान नागरिक संहिता के लिये कोई आंदोलन नही करते न ही कृत्रिम उर्जा मूल्य वृद्धि के लिये करते है। ऐसे लोग महिला आरक्षण गरीबो का आरक्षण धार्मिक आरक्षण का भी खुला विरोध नही करते। कुछ लोग हिन्दू राष्ट की मांग करते हे तो कुछ अन्य लोग मुसलमानो का आरक्षण देना चाहते है। अनेक लोग महिला सशक्तिकरण का नारा लगाते है तो अनेक लोग गरीबो को आर्थिक आरक्षण देने की वकालत करते है । जबकि स्पष्ट दिखता है कि किसी भी प्रकार का आरक्षण हमेशा घातक होता है । अधिकार प्रत्येक व्यक्ति के समान होते है। किसी को भी विशेष अधिकार देते है तो समानता का सिद्धान्त अपने आप खंडित हो जाता है। किसी विशेष स्थिति मे किसी की सहायता की जा सकती है और की जानी चाहिये किन्तु अधिकार किसी को अलग से नही दिये जा सकते।
मै लम्बे समय से आरक्षण का विरोधी रहा हूँ और आज भी हॅू । मै अपने व्यक्तिगत जीवन मे प्र्रयत्न करता हॅू कि जो अवर्ण जातीय आरक्षण का समर्थन करते है उन्हे अछूत मानू और उनसे दूरी बनाकर रखूँ। इसी तरह जो महिलाएं महिला सशक्तिकरण और महिला आरक्षण का समर्थन करती है उन्हे अपने घर मे न घुसने दूं क्योकि वे समाज के लिये गंभीर समस्या है । जो हिन्दू या मुसलमान धार्मिक आधार पर आरक्षण की मांग करते है उनसे भी अधिक से अधिक दूरी बनाकर रखता हॅू। जो लोग गरीब और अमीर के बीच मे समाज को विभाजित करना चाहते है उन्हे भी मै खतरनाक मानता हॅू। मेरे विचार से सब प्रकार के आरक्षण समाप्त करके नयी व्यवस्था शुरू होनी चाहिये, जिसमे 1 समान नागरिक संहिता हो । व्यक्ति एक ईकाई हो। धर्म जाति, गरीब अमीर, महिला पूरूष का भेद न हो। 2 कृत्रिम उर्जा की भारी मुल्य वृद्धि करके सब प्रकार के टैक्स तथा सबसीडी समाप्त कर दी जाये। 3 परिवार की आर्थिक और पारिवारिक व्यवस्था परंपरागत की जगह लोकतांत्रिक हो । परिवार मे व्यक्ति का सम्पत्ति अधिकार सामूहिक हो और सम्पूर्ण सम्पत्ति मे सिर्फ परिवार छोडते समय उसे बराबर का हिस्सा दिया जाये। इन सब सुधारो मे भी समान नागरिक संहिता तथा कृत्रिम उर्जा मूल्य वृद्धि विशेष महत्व रखते है। जो बुद्धिजीवी कृत्रिम उर्जा मूल्य वृद्धि या समान नागरिक संहिता का विरोध करते है ऐसे श्रम शोषक बुद्धिजीवियो से दूरी बनाकर रखनी चाहिये। अंत मे मेरा यह सुझाव है क किसी भी प्रकार के आरक्षण का पूरी तरह विरोध करना चाहिये। मै ऐसे विरोध का पक्षधर हॅू।
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