गांधी हत्या

तीस जनवरी को गांधी हत्या की चौहतरवी बरसी है । हत्या किसने की और क्यो की यह सर्व विदित तथ्य है । समीक्षा सिर्फ यह होनी है कि गांधी हत्या के बाद इन चौहतर वर्षो में किसे क्या मिला ।

 गांधी के जीवन काल में गांधी विचारों से परेशान सिर्फ दो ही समूह थे । 1) संघ परिवार जो गांधी की इस्लामिक भाई चारे की नीति से परेशान था । 2) वामपंथी जो गांधी की ग्राम स्वराज्य योजना से परेशान थे । संघ परिवार इस्लामिक भाई चारा नीति को भारतीय संस्कृति की एकक्षत्र उन्नति में बाधक मानता था और वामपंथी गांधी की नीति को राष्ट्रीयकरण , या केन्द्रित सत्ता की नीति के विरूद्ध । कांग्रेस का पटेल गुट भारतीय संस्कृति की नीतियों का पक्षधर था और नेहरू अम्बेडकर गुट वामपंथी नीतियों से सहानूभूति रखता था । संघ परिवार में बड़ी संख्या भावना प्रधान, अंध देश भक्त, उच्च त्याग के प्रतीक नासमझ लोगों की थी तो वामपंथी टीम में छटे हुये सत्ता के खिलाड़ी, चालाक, सत्तालोलुप बुद्धि प्रधान लोग ज्यादा थे । संघ परिवार गांधी को गाली देकर अपना उद्देश्य पूरा करना चाहता था तो वामपंथी परिवार गांधी की प्रशंसा करके अवसर की प्रतीक्षा कर रहा था ।       

        ऐसे ही कालखंड में एक अतिवादी ने गांधी की हत्या कर दी । गांधी की हत्या किसी संगठन की सोची समझी योजना के अन्तर्गत न होकर एक अतिवादी प्रचार का परिणाम थी जिससे प्रभावित होकर एक देश भक्ति त्याग भाव से ओत-प्रोत गोडसे ने पूरा कर दिया। गोडसे ने ऐसा कार्य कर दिखाया जैसे कोई पितृभक्त बालक पिता के गले में लिपटे सर्प की तलवार से इस तरह हत्या करता है कि पिता की गर्दन भी कट जाती है। अब उस बालक को क्षमा करें या फांसी दे यह अलग का विषय है। किन्तु पिता की जान भी चली गई और दूसरे भाई को यह अवसर भी मिल गया कि वह हत्यारे भाई को बदनाम करके पिता की सम्पूर्ण सम्पति पर स्वयं कब्जा कर ले । हुआ भी यही । संघ परिवार की दुर्दशा और नेहरू अम्बेडकर की सत्ता की पकड़ ने सबकुछ स्पष्ट कर दिया है । गोडसे नेहरू अम्बेडकर की अपेक्षा अधिक देश भक्त भी था और त्याग प्रधान भी । उसे सत्ता प्राप्त नही करनी थी। वह तो गांधी से मुक्ति को देश की पहली आवश्यकता समझ रहा था। गोडसे स्वयं संचालित नही था बल्कि किसी भावनात्मक प्रचार से ओत-प्रोत था जिसमें देश प्रेम था, त्याग था, शराफत का आदर्श था किन्तु स्व निर्णय शुन्य था, समझदारी बिल्कुल नहीं थी । दूसरी ओर नेहरू-अम्बेडकर की टीम में सत्ता का मोह था ।  उच्च स्तरीय चालाकी थी , परिस्थिति अनुसार नीति परिवर्तन की क्षमता थी ।

          गांधी हत्या होते ही संघ परिवार अपने स्वभाव अनुसार आज तक गांधी हत्या के पक्ष विपक्ष मे ही चढ़ उतर रहा है और नेहरू-अम्बेडकर की टीम ने चौहतर वर्ष बिता दिये। उन्होने देश और समाज को गांधी विचारो से इतना दूर , इतना अधिक दूर कर दिया कि अब देश उस पटरी पर चढ़ भी सकेगा इसमे संदेह है। यहा तक कि चौहतर वर्षो मे अब कोई गांधी वादी भी गांधी की नीतियों को सुनने समझने को तैयार नही । दूसरी ओर लाख प्रयत्न के बाद भी संघ परिवार गांधी के नाम और गांधी की छवि से देश और समाज को दूर नही कर सका । आज भी संघ परिवार में वह हिम्मत नही कि वह गांधी के विषय में उतना स्पष्ट कह सके जो अपनी आन्तरिक बैठकों मे कहता है।

          एक नासमझ ने अपनी नासमझी से गांधी के भौतिक शरीर की हत्या कर दी और एक चालाक ने उक्त हत्या का लाभ उठाकर गांधी के विचारों की हत्या कर दी । एक के वारिस आज भी गांधी नाम की भौतिक हत्या का ताना बाना बुनते रहते है तो दूसरे के वारिस गांधी नाम की रक्षा के नाम पर उनके विचारों की हत्या में निरंतर सक्रिय है। आज भी देश सन् सैंतालीस की परिस्थितियों से उबर नही सका है। देश को गोडसे सरीखे देश भक्ति त्याग प्रधान किन्तु गांधी के विचारों को ईमानदारी से समझे हुये नेतृत्व की जरूरत है किन्तु उसे मिल रहा है गांधी नामधारी पद लोलुप व्यक्तियों का नेतृत्व या गांधी के नाम से ही नफरत करने वालों की शिक्षा । चिन्ता का विषय यह है कि देश के करोड़ो ना समझ भावना प्रधान नवयुवक आज भी उसी शिक्षा से प्रभावित किये जा रहे है जिससे प्रभावित होकर गोडसे ने भूल कर दी थी और जिसके दुष्परिणाम हम आज भी भुगत रहे है। प्रश्न उठता है कि गांधी हत्या से हमने कौन सी सीख ली ? क्या हम ऐसे अतिवादी दुश्प्रचार से आगे की पीढ़ी को रोक पा रहे है ? क्या हमारे गांधी के समर्थक सत्ताधीश देश के युवकों को रोकने की जरूरत समझ रहे है ? निश्चित ही नहीं । उन्हें तो गांधी के नाम पर सत्ता के केन्द्रीय करण मात्र से मतलब है। वे तो चाहते है कि नासमझ देश भक्त गांधी हत्या सरीखा कोई और दूसरा प्रयोग दुहरा दे तो उनकी सत्ता का एक बार नया रीन्युअल हो जायेगा। प्रश्न यह है आज का दिन इन चालाक और नासमझ लोगो के बीच हमें क्या मार्ग दिखाता है ?

          उत्तर स्पष्ट है कि हम इन चालाक और नासमझों को समझना छोडकर एक नयी समाज रचना पर तत्काल चलना शुरू कर दे जिसमें न ठगने की जगह हो न ठगे जाने की । मुझे उम्मीद है कि हमारे पाठक इस दिशा में  सोचने और करने की सक्रियता दिखायेगें ।