ज्ञान का गीत

गीत

ज्ञान का दीप घर-घर जले साथियों,
वरना बढ़ता अंधेरा निगल जायेगा।
वक्त हैं आईये अब भी चिन्तन करें,
कोई सूरज नया तब निकल आयेगा।।
आज अपराध चारों तरफ बढ़ रहे,
और सज्जन विवष से पड़े रो रहें।
जागरण का समय है यही साथियों,
आप जागे जमाना बदल जायेगा।
वरना बढ़ता अंधेरा.....................।।
टूटती जा रही हैं व्यवस्था यहां,
संगठित दुष्ट है हर तरफ देखिये।
ऐसे माहौल को गर न बदला गया,
एक दिन यह चमन सारा जल जायेगा।
वरना बढ़ता अंधेरा.....................।।
कोई प्रहलाद को मत जलाये यहां,
कोई मजबूर को मत सताये यहां।
चेतना में नई शक्ति भर दीजिये,
दुष्टता का जनाजा निकल जायेगा।
वरना बढ़ता अंधेरा.....................।।
आज मजबूर कंधों पै है हर तरफ,
एक सड़ती हुई लाष कानून की।
गर न बदली गई यह व्यवस्था अभी,
वक्त इसका ”मुरारी“ निकल जायेगा।
वरना बढ़ता अंधेरा.....................।।