जो लोग मेहनत करके कमाते हैं, उन्हें ही खर्च की योजना बनाने का अधिकार होना चाहिए।
परिवार से समाज तक यह स्पष्ट होना चाहिए कि जो लोग मेहनत करके कमाते हैं, उन्हें ही खर्च की योजना बनाने का अधिकार होना चाहिए। यह उचित नहीं कि कमाने वालों का काम केवल कमाना हो और खर्च की योजना दूसरों द्वारा बनाई जाए। ऐसे परिवार, जो इस तरह की व्यवस्था रखते हैं, कर्ज में डूब जाते हैं, बर्बाद हो जाते हैं, क्योंकि केवल कमाने वाले ही धन का मूल्य समझते हैं, खर्च करने वाले नहीं।
दुर्भाग्यवश, भारत में हम देखते हैं कि कमाने वाले—किसान, मजदूर, व्यापारी, उद्योगपति—हैं, जबकि खर्च की योजना सरकार बनाती है। सरकार स्वयं कमाई नहीं करती, बल्कि अपनी सेना, पुलिस, संविधान और कानून के बल पर कमाने वालों से टैक्स वसूलती है और खर्च की योजनाएं बनाती रहती है। इससे टैक्स का बोझ बढ़ता जाता है और खर्च के प्रस्ताव भी बढ़ते रहते हैं। इस प्रथा को अब समाप्त करना आवश्यक है।
इसलिए, जिस तरह भारत में न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका हैं, उसी तरह एक स्वतंत्र 'अर्थपालिका' की स्थापना होनी चाहिए। अर्थपालिका की सहमति के बिना कोई भी खर्च की योजना नहीं बनाई जा सकेगी और टैक्स की सीमा भी वही निर्धारित करेगी। वर्तमान में बजट विधायिका बनाती है, जो उचित नहीं है। धन की बर्बादी रोकने के लिए एक नई व्यवस्था बनानी होगी, जिसमें अर्थपालिका द्वारा बनाए गए बजट के आधार पर ही सरकार खर्च कर सकेगी। यदि सरकार और अर्थपालिका के बीच कोई विवाद हो, तो संविधान सभा या जनमत संग्रह के माध्यम से निर्णय लिया जाएगा।
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