छुआछूत अपराध नहीं GT-439

छुआछूत अपराध नहीं:

स्वतंत्रता हमारा मौलिक अधिकार है जबकि समानता हमारा संवैधानिक अधिकार है मौलिक अधिकार नहीं। इसका अर्थ हुआ कि छुआछूत को कानून के द्वारा प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता। कल सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने यह बात बताई कि हम अपना डंडा वहां तक घूमा सकते हैं जहां से आपकी नाक शुरू न हो। यह बात तो बिल्कुल सच है लेकिन व्यावहारिक धरातल पर सुप्रीम कोर्ट भी स्वतंत्रता को असीमित नहीं कहता जबकि स्वतंत्रता की कोई सीमा नहीं बनाई जा सकती उसकी सीमा तो प्राकृतिक रूप से बनी हुई है। इसका अर्थ हुआ कि जब दो लोगों की स्वतंत्रता आपस में टकराती है तब संविधान कानून तंत्र या न्यायालय की भूमिका शुरू होती है अन्यथा किसी को दखल नहीं देना चाहिए। मैं आज तक नहीं समझा कि छुआछूत अपराध कैसे हो गया। मैं छुआछूत मांन सकता हूं यह मेरी स्वतंत्रता है इसे अपराध घोषित नहीं किया जा सकता। हमारे संविधान निर्माता ने नासमझी में छुआछूत को अपराध बना दिया और आज तक हम उसे अपराध मानते चले आ रहे हैं। सामाजिक बहिष्कार करना हमारी स्वतंत्रता है। उस पर किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं लगाया जा सकता लेकिन वर्तमान समय में नासमझ तंत्र हमारी सामाजिक बहिष्कार की स्वतंत्रता पर भी प्रतिबंध लगाता है। इस विषय पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए।