"विभाजन का दोषी कौन"

कुछ सिद्धान्त है।
1 प्रवृत्ति के अतिरिक्त किसी भी प्रकार का वर्ग निर्माण विभाजन का आधार होता है। वर्ग निर्माण से गुट बनते है, आपस मे टकराते है और अंत मे विभाजन होता है।
2 किसी भी प्रकार की सत्ता हमेशा वर्ग निर्माण और वर्ग विद्वेष का प्रयत्न करती है। वर्ग संघर्ष सत्ता के सशक्तिकरण का मुख्य आधार होता है। इसे ही बांटो और राज करो कहा जाता है।
3 साम्यवाद खुलकर वर्ग संघर्ष का प्रयत्न करता है, समाजवाद अप्रत्यक्ष रूप से तथा पूंजीवाद आंशिक रूप से।
4 लोकतंत्र मे संगठन वर्ग संघर्ष का आधार होता है और वर्ग संघर्ष विभाजन की स्थितियां पैदा करता है।
5 मुसलमान चाहे जिस देश मे रहे वह संगठन भी बनायेगा ही और वर्ग विद्वेष बढाकर विभाजन भी करायेगा ही । विभाजन उसका लक्ष्य होता है मजबूरी नही।
6 हिन्दू कभी संगठन नही बनाता और यदि अन्य लोग संगठित हो तब भी वर्ग समन्वय का प्रयत्न करता है।
स्वतंत्रता के बहुत पूर्व धर्म के आधार पर राजनैतिक संगठन की शुरूआत मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा ने की । किसने किसकी प्रतिक्रिया मे की यह अलग विषय है किन्तु लगभग साथ साथ दोनो बातें उठी । एक तीसरी शक्ति के रूप मे संघ आया और चौथी शक्ति के रूप मे गांधी। हिन्दू महासभा की यह मान्यता थी कि भारत हिन्दू राष्ट होना चाहिये। मुसलमान इसके विरोधी थे और मुस्लिम राष्ट्र का सपना देख रहे थे। उनका मानना था कि भारत की सत्ता मुस्लिम राजाओ से अंग्रेजो ने छीनी है इसलिये मुसलमानो का उस पर पहला अधिकार है। हिन्दू महासभा का मानना था कि हिन्दुओ से मुसलमानो और मुसलमानो से अंग्रेजो ने सत्ता छीनी इसलिये भारत की सत्ता पर मूल रूप से हिन्दुओ का अधिकार है। संघ ने बीच का मार्ग अपनाया और माना कि अंग्रेजो की तुलना मे मुसलमान अधिक घातक है इसलिये सारा विरोध मुसलमानो के खिलाफ केन्द्रित होना चाहिये। गांधी का मानना था कि हम पहले अंग्रेजो की गुलामी से मुक्त हो जाये और शासन व्यवस्था लोकतांत्रिक हो जिसमे हिन्दू मुसलमान का वर्गीकरण न करके या तो प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार हो या यदि मजबूरी हो तो वर्ग समन्वय हो वर्ग संघर्ष नही। इस चार समूहो मे से किसी भी समूह ने किसी के साथ कोई समझौता नही किया और चारो अलग अलग तरीके से सक्रिय रहे । आर्य समाज कभी संगठन नही रहा बल्कि संस्था के रूप मे रहा। यही कारण था कि आर्य समाज ने मुसलमानो को छोडकर शेष तीनो से मिलकर स्वतंत्रता संघर्ष का साथ दिया तथा स्वतंत्रता के बाद भी आर्य समाज ने अपने को सत्ता संघर्ष से अलग कर लिया। स्वतंत्रता संघर्ष मे संघ लगभग निर्लिप्त रहा इसलिये उसने अपने को सांस्कृतिक संगठन घोषित कर लिया । लेकिन सतर्कता पूर्वक संलिप्तता संता के मामले मे इस तरह रही कि मुसलमान किसी भी रूप मे कमजोर रहे । गांधी के लिये स्वतंत्रता पहला लक्ष्य था तो हिन्दू महासभा के लिये हिन्दू राष्ट और संघ के लिये मुस्लिम सत्ता मुक्त भारत। इसी बीच अम्बेडकर के रूप मे एक पांचवे समूह का उदय होता है और उसने आदिवासी हरिजन को एक वर्ग बनाकर अलग सत्ता की मांग शुरू कर दी। विभाजन रोकने के लिये गांधी अम्बेडकर की उस मांग से ऐसा समझौता करने को मजबूर हुए जो आजतक भारत की अखंडता की कीमत चुका रहा है। गांधी चाहते थे कि जिन्ना और पटेल के बीच भी कोई समझौता हो जाये किन्तु दोनो अपनी अपनी जिद पर अडे थे। जिन्ना विभाजन के अतिरिक्त कुछ मानने को तैयार नही थे तो पटेल मुसलमानो को अलग वर्ग के रूप मे भी नही मानना चाहते थे । पटेल किसी भी रूप मे मुसलमानो को किसी तरह का विशेष महत्व नही देना चाहते थे भले ही विभाजन क्यो न हो जाये । गांधी को छोडकर राजनैतिक स्वरूप के जितने भी लोग स्वतंत्रता संघर्ष मे शामिल थे उनमे से कोई भी ऐसा नही निकला जिसने विभाजन का विरोध करने मे गांधी का खुंलकर साथ दिया हो। विभाजन मे अंग्रेजो की भी रूचि थी । हिन्दू मुस्लिम आदिवासी संघर्ष समाप्त न हो इसलिये वे भी अप्रत्यक्ष रूप से सबकी पीठ थपथपाते थे। अंत मे सत्ता लोलुप नेहरू पटेल अम्बेडकर तथा अन्य सबने मिलकर विभाजन स्वीकार कर लिया । स्पष्ट है कि विभाजन की नींव वर्ग निर्माण से शुरू हुई थी और यह वर्ग निर्माण भारत मे मुसलमानो के द्वारा प्रारंभ किया गया। इसलिये विभाजन का सबसे बडा दोषी तो जिन्ना को ही माना जाना चाहिये। इसी तरह विभाजन का एक मात्र विरोधी सिर्फ गांधी को माना जाना चाहिये क्योकि वे किसी भी रूप मे विभाजन के विरोधी थे। यदि बीच के पटेल नेहरू और अम्बेडकर की बात करे तो इन सबकी विभाजन के प्रति पूरी सक्रियता रही। कांग्रेस पार्टी मे सरदार पटेल का बहुमत था और नेहरू को पता था कि गांधी जी नेहरू को ही प्रधान मंत्री स्वीकार करेंगे । अम्बेडकर आगे स्वतंत्रता के बाद राजनैतिक सत्ता के सपने देख रहे थे और तीनो ने मिलकर अन्य सबकी सहमति ले ली जिसके कारण गांधी भी विभाजन के लिये मजबूर हो गये।
राजनैतिक सत्ता बहुत चालाक होती है । वह षणयंत्र स्वयं करती है और दोषारोपण दूसरे पर करती है। वह अपने चाटुकारो को प्रचार माध्यमो मे लगाकर वे गुनाह को गुनाहगार प्रमाणित कर देती है। संघ स्वतंत्रता के पूर्व भले ही निर्लिप्त रहा हो किन्तु राजनैतिक सत्ता से उसकी दूरी कभी रही नही । स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान अलग हुआ और भारतीय सत्ता पर संघ की पकड मजबूत हो इसके लिये विभाजन का दोषी गांधी को सिद्ध करना आवश्यक था। संघ ने जान बूझकर गांधी को टारगेट किया क्योकि गांधी की छवि उसके संगठित वर्ग निर्माण मे बहुत बडी बाधा थी। गांधी सैद्धान्तिक रूप से हिन्दू थे जबकि संघ संगठित हिन्दुत्व का पक्षधर रहा। कोई भी वर्ग कभी नही चाहता कि वर्ग समन्वय की बात मजबूत हो। जबतक वह कमजोर होता है तो न्याय की बात करता है और मजबूत होता है तब व्यवस्था की बात करता है। इसलिये संघ ने गांधी के जीवित रहते से लेकर आज तक बेगुनाह गांधी को विभाजन का दोषी प्रमाणित करने मे अपनी सारी ताकत लगा दी और विभाजन के प्रमुख दोषी सरदार पटेल को साफ बचा लिया। कांग्रेस पार्टी सत्ता लोलुप थी। नेहरू स्वयं गांधी की छवि का लाभ उठाना चाहते थे किन्तु गांधी की विचार धारा से उनका जीवन भर विरोध रहा । इसलिये कांग्रेस पार्टी ने संघ के इस गांधी विरोधी प्रचार से अपने को किनारे कर लिया। गांधीवादी धीरे धीरे साम्यवादियो के चंगुल मे फंस गये इसलिये वे संघ का विरोध करते रहे किन्तु गांधी विचारो का समर्थन नही कर सके। विभाजन मे गांधी की भूमिका विरोधी की थी यह बात स्पष्ट करने वाला कोई नही बचा था इसलिये विभाजन का सारा दोष निर्दोष व्यक्ति पर डाल दिया गया।
यदि आज भी भारत पाकिस्तान बंगलादेश को एक राष्ट्र के रूप मे मान लिया जाये और सबको समान मतदान का अधिकार दे दिया जाये तो सबसे ज्यादा विरोध संघ की ओर से आयेगा। भारत के मुसलमान इससे पूरी तरह सहमत हो जायेगे। आज अखंड भारत का लगातार राग अलाप रहे संघ के लोग अब एक भारत कभी नही चाहेंगे क्योकि वर्तमान मे सोलह प्रतिशत की मुस्लिम आबादी यदि इतनी बडी समस्या के रूप मे बनी हुई है और पाकिस्तान बंगलादेश मिल जाने के बाद यह आबादी पचीस प्रतिशत होगी तब शक्ति संतुलन और बिगड सकता है। इसलिये अखंड भारत का नारा संघ परिवार का नाटक मात्र है और कुछ नही।
मै इस मत का हॅू कि अब विभाजन का दोषी कौन इसकी खोज बंद कर देनी चाहिये और यह खोज तभी बंद हो सकती है जब इसके वास्तविक दोषी को सामने खडा कर दिया जाये जिससे विभाजन विरोधी गांधी पर आक्रमण अपने आप बंद जो जाये और यह चर्चा पूरी तरह समाप्त हो जाये। मै स्पष्ट हॅू कि यदि वर्ग निर्माण और संगठनो की मान्यता को अब भी नही रोका गया तो नये विभाजनो का खतरा बना रहेगा । भविष्य मे विभाजन न हो इसका सिर्फ एक ही समाधान है और वह है समान नागरिक संहिता । सबको मिलकर इस दिशा मे काम करना चाहिये।