मैं यह महसूस करता हूं कि न्याय और सुरक्षा का भी अधिकतम निजीकरण कर दिया जाए।

आज प्रातः काल मैंने निजीकरण के पक्ष में एक लेख लिखा था‌। हमारे एक मित्र घनश्याम सोनी जी ने सुझाव दिया है कि सुरक्षा और न्याय का भी यदि निजीकरण कर दिया जाए तो बहुत अच्छा होगा। मेरे विचार में उनका सुझाव बिल्कुल ठीक है। वैसे तो घनश्याम जी वामपंथी विचारों के हैं हर मामले में मेरे विरुद्ध लिखते हैं लेकिन निजीकरण के मामले में उनका सुझाव मानने योग्य है। मैं यह महसूस करता हूं कि न्याय और सुरक्षा का भी अधिकतम निजीकरण कर दिया जाए। यदि न्याय के मामले में दो लोग आपस में बैठकर किसी पंच की नियुक्ति करते हैं और वह न्याय कर देता है तो इसमें सरकार को क्या आपत्ति है सिर्फ एक बात ध्यान रखनी पड़ेगी कि किसी भी व्यक्ति को जब तक उसकी सहमति नहीं होगी तब तक दंडित नहीं किया जा सकेगा। बलपूर्वक दंड देने का काम सिर्फ सरकार के पास होगा सहमति से किसी को दंड दिया जा सकता है। इस तरह न्याय और सुरक्षा का भी यदि अधिकतम निजीकरण कर दिया जाए तो बहुत अच्छा होगा। इसी तरह मैंने यह भी सुझाव दिया है की मुद्रा पूरी तरह स्वतंत्र कर दी जाए। कोई भी व्यक्ति अपना लेन-देन अपनी करेंसी में कर सकता है उसे सरकारी मुद्रा का उपयोग करना अनिवार्य नहीं है वर्तमान समय में तो वस्तु विनिमय को भी प्रतिबंधित कर दिया गया है यह सब बेकार की बातें हैं। सब कुछ निजीकरण कर देना चाहिए। मैंने तो सुझाव दिया है कि जंगलों को भी निजीकरण कर दिया जाए सारे जंगल नीलाम कर दिए जाए सरकार के पास कोई जंगल ना हो सरकार चाहे नीलामी में खरीद सकती है। इस तरह मेरे विचार में दंड व्यवस्था को छोड़कर सब कुछ आपसी सहमति से निजीकरण कर दिया जाना चाहिए।