शोषण अपराध नहीं GT-438
विशेष लेख:
1.शोषण कोई अपराध नहीं
मैं लंबे समय से एक समस्या बढ़ती हुई देख रहा हूं और उसके समाधान पर भी सोचता रहा हूं। समस्या यह है कि स्वतंत्र स्पर्धा और कमजोरों की सहायता इन दोनों के बीच किसी प्रकार का तालमेल नहीं है । हमें कब समाज के साथ खड़ा होना चाहिए और कब राज्य के साथ खड़ा होना चाहिए यह भी एक गंभीर प्रश्न है। यह दोनों ही सवाल एक दूसरे से जुड़े हुए भी हैं। इन प्रश्नों और समस्याओं के कारण और निवारण पर मैं कल से तीन दिनों तक चर्चा करना चाहता हूं। वर्तमान समय में मणिपुर में जो हो रहा है अथवा पंजाब में जो कुछ होता हुआ दिख रहा है वह कोई मणिपुर और पंजाब का प्रश्न नहीं है बल्कि कहीं ना कहीं स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा और कमजोरों की मदद समाज और राज्य इन दोनों के बीच संतुलन इन दो प्रश्नों से जुड़ा हुआ है यह समस्याएं इसी तरह बढ़ भी रही हैं और इनका कोई समाधान अभी तक दिख नहीं रहा। इन समस्याओं का समाधान क्या हो सकता है उसकी सीमाएं क्या होनी चाहिए इन गहन प्रश्नों पर मैं कल से चर्चा करने की सोच रहा हूं।
प्राचीन समय में व्यक्ति एक स्वतंत्र इकाई था। संगठन की पहचान राज्य के नजर में परिवार, गांव और जिले के रूप में थे जाति, धर्म संगठन के स्वरूप नहीं थे। प्रत्येक व्यक्ति को एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करने की पूरी स्वतंत्रता थी। शोषण कोई अपराध नहीं होता था क्योंकि दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति में क्षमता और योग्यता कभी एक समान नहीं होती और सबको अपनी-अपनी व्यक्तिगत क्षमता और योग्यता के आधार पर ही सम्मान सुविधा या पद प्राप्त होते थे। राज्य कभी इसमें दखल नहीं देता था। जो व्यक्ति बिल्कुल अक्षम होता था और स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाता था उसे समाज या राज्य जीवित रखने तक की सुविधा देते थे। दुर्भाग्य से समाज को कमजोर करके राज्य ने सब कुछ अपने पास समेट लिया और उसमें व्यक्ति के स्थान पर जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर बनने वाले संगठनों को मान्यता दे दी। हर मजबूत कमजोर का शोषण करता है यह एक प्राकृतिक सिद्धांत है। बिना शोषण के कोई मजबूत प्रमाणित ही नहीं हो सकता लेकिन राज्य ने शोषण को अपराध मानने की गलती कर दी। इससे राज्य कमजोर वर्गों की सहायता करने लगा और उसका दुष्परिणाम हुआ कि स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा पर बुरा असर पड़ा। स्वाभाविक है कि दो प्रतिस्पर्धारत व्यक्तियों में से आप किसी भी आधार पर किसी एक की मदद करेंगे तो वर्ग विद्वेष पैदा होगा ही। लेकिन हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान की प्रस्तावना में ही सम्मान और समानता शब्द डालकर गलती कर दी। सरकार को सिर्फ प्रतिस्पर्धा से बाहर व्यक्तियों को सहायता देनी चाहिए प्रतिस्पर्धा कर रहे लोगों को नहीं। लेकिन वर्ग संघर्ष के सारे बीज हमारी सरकार ने बोये हैं और आज भी उसी आधार पर वर्ग संघर्ष को बढ़ा रही है। निकम्मे लोग शोषण को अपराध कहने लगे हैं और शोषण को अपराध कहने वाले दिन-रात वर्ग संघर्ष की दुकानदारी कर रहे हैं जिसमें राज्य सहायक हो रहा है। यही मुख्य कारण है कि समाज में वर्ग संघर्ष लगातार बढ़ रहा है।
मैंने यह लिखा है कि किसी भी प्रकार का शोषण ना अपराध होता है ना अनैतिक होता है हर प्रकार के कंपटीशन में शोषण स्वाभाविक होता है जो लोग शोषण को अपराध मानते हैं वे लोग पूरी तरह गलत हैं आज उन्हें आकर मेरे प्रश्न का उत्तर देना चाहिए कि शोषण अपराध कैसे हो गया। सच बात यह है कि शोषण को अपराध कहने वाले ही शराफत का शोषण करते हैं यह चालाक लोग संगठित हो जाते हैं और शरीफ लोगों पर अत्याचार करते हैं। शरीफों का शोषण करने वाले धूर्त लोग शोषण के खिलाफ दिन-रात आवाज उठाते रहते हैं। किसी की मजबूरी का लाभ उठाना शोषण होता है किसी व्यक्ति को 1 किलो अनाज देकर दिन भर काम लेना शोषण है किसी दूसरे व्यक्ति को 10 किलो अनाज देकर उसकी सहमति के बिना काम लेना अपराध है शोषण और अत्याचार अलग-अलग होता है इसलिए किसी की मजबूरी का लाभ उठाना अत्याचार नहीं होता। सच्चाई है कि राजनीतिक दल अथवा चालाक लोग शोषण रोकने के नाम पर ही समाज में भ्रम फैलाते रहते हैं शोषण रोकने के नाम पर समाज को में वर्ग विद्वेष बढ़ाते रहते हैं अब इस बात को समझने की आवश्यकता है।
यहाँ हम यह चर्चा करेंगे कि स्वतंत्रता की प्रतिस्पर्धा में किसी भी पक्ष को सहायता करना वर्ग संघर्ष का कारण होता है। कमजोरों की मदद करना राज्य का दायित्व नहीं होता बल्कि समाज का कर्तव्य होता है। भारत ने दुनिया की अंधी नकल करके कमजोरों को मदद करने का दायित्व स्वीकार कर लिया। इस गलती के अंतर्गत हर प्रकार के कमजोरों की आर्थिक, सामाजिक मदद की गई जिसके कारण वर्ग संघर्ष बढ़ा। इसी गलती के अंतर्गत कमजोरों को आरक्षण दिया गया और कमजोरों को अनेक प्रकार के अधिकार भी दिए गए एवं सुविधाएं भी। इसी नीति के अंतर्गत मुफ्त भोजन, मुफ्त शिक्षा, मुफ्त चिकित्सा जैसे अनावश्यक कार्य किए गए। इस गलत नीति का परिणाम हुआ कि देश में जातिवाद का जहर घुल रहा है। इस नीति का परिणाम हुआ कि देश में स्वावलंबन कमजोर हो रहा है। स्वयं आत्मनिर्भर ना होकर सरकार से सुविधा मांगने की लूट मची हुई है। किसी भी प्रकार के आरक्षण में राजनीति को भले ही मजबूत किया हो किंतु समाज को कमजोर किया है। इसीलिए अब समय आ गया है कि एक देश एक व्यक्ति की मान्यता लागू की जाए।
किसी व्यक्ति का शोषण करना किसी भी रूप तरीके से अपराध नहीं होता है जब तक उसमें हिंसा या जालसाजी शामिल न हो। किसी व्यक्ति की सहमति से उसकी मजबूरी का लाभ उठाना अनैतिक हो सकता है अपराध हो ही नहीं सकता। अनैतिक भी इस स्थिति में होगा जब समाज ने उस तरह का कोई नियम बनाए हो। जब तक समाज ने कोई वैसा नियम नहीं बनाया है तब तक वह कार्य अनैतिक भी नहीं होगा स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा तब तक नैतिक होती है जब तक उसमें जालसाजी और हिंसा का समावेश ना हो और उसने समाज के बनाए नियमों को न तोड़ा हो।
मेरे यह लिखने पर मेरे बहुत से मित्रों ने असहमति व्यक्त की कई ने तो इसका विरोध भी किया यहां तक की मेरे अच्छे मित्र भी मेरी बात से सहमत नहीं हुए । एक मित्र नरेंद्र मिश्रा जी ने तो इस बात की चुनौती ही दे दी कि वह इस संबंध में खुली बहस के लिए तैयार हैं। मैं अपने लिखे पर पूरी तरह कायम हूं मैं यह बात आज नहीं लिखी है 60 वर्ष पहले भी लिखी थी और हमेशा बोलता रहा हूं कि शोषण तब तक कोई अपराध नहीं होता जब तक उसने हिंसा और जालसाजी का समावेश ना हो मैं स्पष्ट कर दूं की वर्तमान दुनिया में जो असत्य धारणाएं फैलाई गई हैं उन असत्य धारणाओं को चुनौती देना हमारा आप सबका कर्तव्य है और यही पवित्र कार्य मैं कर रहा हूं । शोषण के संबंध में भी दुनिया में जो धारणा बनी हुई है वह असत्य है।
मेरे एक मित्र ने शोषण का एक उदाहरण मांगा है जिसमें बल प्रयोग और हिंसा न हुई हो मैं आपको बताना चाहता हूं कि एक पुरुष यौन भूख से पीड़ित है एक महिला उससे ₹5000 में आधे घंटे का सौदा करती है वह ₹5000 ले लेती है और पुरुष उसे ₹5000 दे देता है बताइए किसने किसका शोषण किया।
2.समाज में वर्ग संघर्ष के प्रमुख कारणः
हम पिछले तीन दिनों से लगातार इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि भारत में वर्ग संघर्ष क्यों बढ़ रहा है। कुछ कारण समझ में आए। 1- भारत आंख बंद करके पश्चिम की नकल कर रहा है 2- भारत पश्चिम की नकल करते हुए शोषण को अपराध मान रहा है 3- भारत पश्चिम की नकल करते हुए अपराध नियंत्रण की तुलना में जनकल्याण को अधिक महत्व दे रहा है 4- भारत में राज्य व्यवस्था ने अपने को समाज से ऊपर मान लिया है 5- भारत में स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा की तुलना में कमजोरों की मदद करने का सिद्धांत स्वीकार कर लिया है। इन पांच कारणों से भारत में वर्ग विद्वेष बढ़ रहा है इन समस्याओं के समाधान के लिए भारत को लोक स्वराज्य अपराध नियंत्रण की गारंटी व्यक्ति एक इकाई आत्मनिर्भर समाज और समानता की जगह स्वतंत्रता जैसी अपनी भारतीय प्रणाली को भी आगे बढ़ाना चाहिए। स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा में राज्य को तटस्थ रहना चाहिए पक्षकार नहीं। स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा में राज्य को किसी की मदद नहीं करनी चाहिए। यदि परिवार, गांव, जिले को विधायी अधिकार दे दिया जाए और समान नागरिक संहिता लागू कर दी जाए तो वर्ग संघर्ष की परिस्थितियों पर नियंत्रण संभव है।
3.नैतिक पतन क्योंः
आज से तीन-चार दिनों तक हम इस विषय पर चर्चा करेंगे कि वर्तमान भारत में भौतिक विकास बहुत तेज गति से होने के बाद भी नैतिक पतन क्यों हो रहा है। भारत में वर्ग संघर्ष बढ़ने का कारण क्या है और उसका समाधान क्या है। मेरे विचार से प्राचीन काल में वर्ग शोषण तो था लेकिन शोषण होने के बाद भी वर्ग समन्वय था टकराव नहीं। वर्तमान भारत में वर्ग शोषण तो घट रहा है और संघर्ष या टकराव बढ़ रहा है। कुल मिलाकर यह बात साफ है कि वर्ग समन्वय के कुछ विपरीत प्रयत्न हो रहे हैं जिनके परिणाम स्वरुप टकराव बढ़ रहा है। मेरे विचार में इसका पहला कारण यह है कि प्राचीन समय में समाज और राज्य अलग-अलग तरीके से कार्य करते थे। समाज अनुशासित करता था और यदि कोई व्यक्ति समाज का अनुशासन अस्वीकार करके भी अपराध करता था तब राज्य हस्तक्षेप करता था अन्यथा नहीं। समाज के सामाजिक मामलों में राज्य का हस्तक्षेप शून्य था। उस समय समाज प्रत्येक व्यक्ति की योग्यता और क्षमता के आधार पर व्यक्ति को शक्ति सम्मान सुविधा देता था लेकिन वर्तमान समय में राज्य समर्थन और संख्या बल का अधिक आकलन करता है योग्यता क्षमता का कम। पिछले समय में राज्य सुरक्षा और न्याय को अपनी पहली जिम्मेदारी मानता था किंतु वर्तमान राज्य जनकल्याण को प्रमुख मानता है जबकि जन कल्याण समाज का काम है राज्य का नहीं। सबसे बड़ी बुराई यह है कि भारत की राज्य व्यवस्था हर मामले में पश्चिम की नकल कर रही है। भारत की अपनी सोच की राज्य व्यवस्था में भूमिका शून्य कर दी गई है। पश्चिम की अन्ध नकल का ही परिणाम है कि राज्य ने स्वयं को समाज का सहायक या मैनेजर ना मानकर कस्टोडियन मान लिया है। इसका दुष्परिणाम है कि भारत की राज्य व्यवस्था अपनी आंतरिक समस्याओं के समाधान का मार्ग भी स्वयं ना तलाश कर पश्चिम से पूछ रही है। यही वर्तमान वर्ग संघर्ष का पहला कारण है।
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