अल्पमत की तरफ बढ़ रहे हिंदू : GT-448

अल्पमत की तरफ बढ़ रहे हिंदू : भारत में स्वतंत्रता के समय हिंदुओं की संख्या लगभग 84% थी और, मुसलमान की संख्या पाकिस्तान बन जाने के बाद 9% करीब बची थी। उस समय हिंदुओं के प्रमुख नेता सरदार पटेल माने जाते थे और मुसलमान के प्रमुख नेता जवाहरलाल नेहरू माने जाते थे। गांधी जी बिल्कुल बीच में थे क्योंकि गांधी जी को हिंदुओं का भी पूरा समर्थन था और भारत में रह गए मुट्ठी भर मुसलमान का भी । गांधी जी पूरी तरह हिंदू थे अर्थात् वे संगठन वाद पर विश्वास नहीं करते थे और सांप्रदायिकता के पूरी तरह खिलाफ तो थे। स्वतंत्रता के शीघ्र बाद ही किसी सांप्रदायिक हिंदू ने गांधी की हत्या कर दी और गांधी हत्या के बाद सरदार पटेल का पक्ष कमजोर हो गया। नेहरू लगातार मजबूत होते चले गए और सरदार पटेल की मृत्यु के बाद तो हिंदुओं का पक्षधर कोई नेता बचा ही नहीं क्योंकि संघ परिवार पर हिंदुओं ने कभी विश्वास नहीं किया और संघ परिवार के अतिरिक्त हिंदुओं के पास कोई अन्य नेता नहीं था। जबकि मुसलमान के पास जवाहरलाल नेहरू सरीखा एक बहुत बड़ा नेता था, जो उस समय प्रधानमंत्री भी था। परिणाम हुआ कि स्वतंत्रता के बाद के 70 वर्षों में मुसलमान की संख्या बढ़कर डेढ़ गुना हो गई और हिंदुओं की संख्या उतनी ही घट गई, अभी जो आंकड़े प्रकाशित हुए हैं, उसके अनुसार हिंदुओं की संख्या कुल आबादी का 6% और हिंदुओं की जनसंख्या का 8% घटी है तो मुसलमान की जनसंख्या कुल आबादी में 5% और मुसलमान की आबादी में 50% बढ़ गई है । मैंने स्वयं देखा है कि हमारे क्षेत्र में मुसलमान की आबादी बढ़कर दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है। स्पष्ट है कि नेहरू परिवार अपनी योजना में सफल है, यही कारण है कि राहुल गांधी खुलेआम यह घोषणा कर रहे हैं, कि हम चुनाव आसानी से जीत जाएंगे। क्योंकि उन्हें यह विश्वास है कि मुसलमान की आबादी दोगुनी तक बढ़ गई है। साथ ही नेहरू परिवार को पाकिस्तान का भी साथ मिलता रहता है। यह लोग हमेशा पाकिस्तान के पक्ष में भी आवाज लगाते हैं। हिंदुओं की दो कमजोरी भी नेहरू परिवार के इस्लामीकरण के पक्ष में जाती हैं, वह है पहला जातिगत भेदभाव और दूसरा है गांधी हत्या का कलंक। हिंदुओं की इन दो कमजोरी का नेहरू खानदान हमेशा लाभ उठाता रहता है, आज भी चुनाव में नेहरू परिवार इन्हीं दो कमजोरी को उजागर करता है। हर भाषण में राहुल गांधी आदिवासी, दलित और गांधी हत्या का जरूर विरोध करते हैं, लेकिन उन्होंने कभी इस बात की चर्चा नहीं किस पाकिस्तान कैसे गलत है? नेहरू परिवार के चमचे भी हमेशा कभी पाकिस्तान का पक्ष लेते रहते हैं, तो कभी चीन की अर्थव्यवस्था की प्रशंसा करते हैं। अब हिंदुओं के लिए यह अप्रत्यक्ष रूप से जीवन-मरण का प्रश्न आ गया है कि, वह अपना अस्तित्व बचाने के लिए नेहरू परिवार इस्लाम और साम्यवाद के गठजोड़ से किस तरह मुकाबला करें। क्योंकि पूरी दुनिया संगठित हिंदुत्व को पसंद नहीं कर रही है, और संगठित हिंदुत्व के अतिरिक्त वर्तमान चुनाव में इस नेहरू-इस्लाम-साम्यवाद की तिकड़ी का मुकाबला करने का कोई और मध्यम नहीं है। हिंदुओं को यह बात याद रखनी चाहिए कि यदि धीरे-धीरे मुसलमान बढ़कर 25% भी हो गए, तो कांग्रेस, मुसलमान और साम्यवादी मिलकर बंदूक की जोर पर हिंदुओं को अल्पमत में ला देंगे।