अपराध नियंत्रण में समाज की भूमिका GT-438
7.अपराध नियंत्रण में समाज की भूमिकाः
समाज में आमतौर पर दो प्रकार के लोग माने जाते हैं अच्छे और बुरे। लेकिन मैंने बचपन से ही समाज का तीन में विभाजन किया अच्छे, बुरे और बदमाश। अपराधी तत्वों को जब बदमाश श्रेणी में डाला गया तब मुझे महसूस हुआ कि उनकी संख्या बहुत कम है और हम लोग संख्या में 98ः है। फिर भी यह 2ः अपराधी 98ः पर भारी हो जाते हैं क्योंकि वे लोग हमें अच्छे और बुरे में विभाजित कर देते हैं। मैंने अपने पूरे जीवन में अपने बीच होने वाले इस विभाजन को रोकने की कोशिश की। जब समाज में राजनैतिक व्यवस्था ठीक हो और आपराधिक तत्वों पर नियंत्रण स्वाभाविक रूप से होता रहे तब तो अच्छे बुरे के बीच विभाजन हो सकता है लेकिन जब अपराधियों का मनोबल बढ़ा हुआ हो और राजनेता भी उनके साथ समझौता कर ले तब हमें अच्छे बुरे का विभाजन रोक देना चाहिए। हम लोगों ने इस सिद्धांत पर रामानुजगंज शहर में प्रयोग किया और हमें सफलता मिली। मेरे विचार से अपराध नियंत्रण के लिए यह प्रयोग काफी सार्थक हो सकता है। इस प्रयोग में न अपराधी तत्व बाधक है न ही बुरे लोग। इस प्रयोग में सबसे अधिक बाधक वे अच्छे लोग हैं जिन्हें अपने अच्छे होने का अहंकार है। मेरा यह निवेदन है कि वर्तमान स्थिति में हमें पूरे भारत में यह प्रयोग करके देखना चाहिए। अपराध नियंत्रण की गारंटी हमारी पहली प्राथमिकता है। बुरे लोगों को सुधारना समाज का काम है राज्य का नहीं। बदमाशों को सुधारना राज्य का काम है समाज का नहीं हमें यह अंतर हमेशा अपने दिमाग में साफ रखना चाहिए।
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