वैचारिक GT-438

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4.व्यवस्था की वास्तविक इकाईः

   वर्तमान समय में भारत दो भागों में विभाजित है। यह विभाजन भारत की सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में हैं, जिसमें एक विभाजन में परिवार गांव जिला प्रदेश देश हैं और दूसरे विभाजन में है परिवार कुटुंब जाति धर्म राष्ट्र। भारत का संविधान दूसरे विभाजन को अनुमति देता है पहले विभाजन को नहीं और भारत का समाज पहले विभाजन को स्वीकार करता है दूसरे को नहीं। वर्तमान भारतीय राजनीति समय-समय पर दोनों विभाजनों का उपयोग करती है लेकिन समाज को अलग-अलग गुटों में बांटने के लिए जाति धर्म यह सबसे महत्वपूर्ण माने जाते हैं मैं फिर से कहना चाहता हूं कि हम परिवार गांव जिला प्रदेश देश की व्यवस्था को स्वीकार करें जाति धर्म की व्यवस्था को नहीं।

5.व्यावसायिक पत्रकारिता भयावहः

मैं बहुत पहले से मानता रहा हूं कि मीडिया पूरी तरह व्यवसाय बन गया है। विपक्ष के सभी नेताओं ने सर्वसम्मति से यह घोषित किया है कि मीडिया सरकार के सामने बिक गया है। यहां तक कि विपक्ष ने ऐसे कुछ लोगों के नाम भी प्रकाशित किए हैं। दूसरी ओर सत्ता पक्ष ने यह आरोप लगाया है कि मीडिया के अनेक लोग विपक्षी दलों के हाथ की कठपुतली बन गए हैं। विपक्षी नेता और मीडिया के लोग मिलकर विदेश से भी धन ले रहे हैं। पूरूकायस्थ जी तथा कुछ अन्य मीडिया कर्मी इस संबंध में गिरफ्तार भी किए गए हैं। चूंकि सभी राजनेताओं की नजर में मीडिया बिक गया है इसलिए मैं भी समझता हूं कि कुछ न कुछ इस बात में सच्चाई होगी। वैसे भी मीडिया को पूरी तरह व्यापार माना जा रहा है लेकिन इस व्यापार में भी जब यह बात सामने आयी कि कुछ मीडिया कर्मी चीन से धन लेकर चीन की एजेंट की तरह काम कर रहे हैं यह बात बहुत घातक दिखी है। विदेशों से और खासकर चीन से धन लेकर चीन सरकार के पक्ष में वातावरण बनाना देश द्रोह माना जाना चाहिए व्यापार नहीं। मैं चाहता हूं कि व्यापार की भी कुछ नैतिक अनैतिक सीमा होनी चाहिए। इस मामले में विपक्षी दलों को भी संदेह के घेरे में आना स्वाभाविक है। कहीं ऐसा तो नहीं कि भारत के विपक्षी दल चीन भारत के बीच लड़ाई का दबाव यह सोचकर बना रहे थे कि यदि मोदी सरकार चीन से टकरा जाएगी तो उस लड़ाई में कुछ विपक्षी नेता चीन को अधिक ब्लैकमेल कर सकेंगे। यदि इस प्रकार का आरोप सच है तो यह भारत की मीडिया और विपक्षी दलों के लिए बहुत चिंताजनक है।

6.समस्याओं का वर्गीकरण और समाधानः

यदि हम गंभीरता से विचार करें तो कुल समस्याएं पांच प्रकार की होती है पहले होती है वास्तविक समस्याएं दूसरे कृत्रिम समस्याएं तीसरी प्राकृतिक चौथी भूमंडलीय और पांचवी भ्रम मूलक । इन पांच प्रकार की समस्याओं में वास्तविक समस्याओं पर सरकार को सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए भ्रम तो कोई समस्या होती ही नहीं है। वास्तविक समस्याएं तो सिर्फ पांच प्रकार की होती हैं चोरी डकैती लूट बलात्कार जालसाजी धोखाधड़ी मिलावट कम तोलना हिंसा बल प्रयोग आतंकवाद यही तो वास्तविक समस्याएं हैं । कृत्रिम समस्याएं भी कई प्रकार की होती हैं भ्रष्टाचार चरित्र पतन सांप्रदायिकता जातीय कटुता आर्थिक असमानता श्रम शोषण आदि अनेक समस्याएं ऐसी हैं जो वास्तविक तो नहीं है लेकिन वे समस्या बन गई है कृत्रिम समस्याओं को मुख्य रूप से राजनीतिक दल लगातार मजबूत करते हैं । प्राकृतिक समस्याओं में बाढ़ भूकंप आदि अनेक समस्याएं हैं जो प्राकृतिक हैं भूमंडलीय समस्याओं में कोरोना पर्यावरण प्रदूषण तथा अन्य अनेक समस्याएं आती हैं और भ्रम की समस्याएं अनेक प्रकार की होती हैं इनमें महंगाई बेरोजगारी महिला उत्पीड़न किसी भी प्रकार का शोषण यह सब समस्याएं वास्तव में होती ही होती नहीं है लेकिन असत्य समस्याओं को सत्य के समान स्थापित कर दिया जाता है । सरकारों को सबसे पहले वास्तविक समस्याओं को रोकने का प्रयास करना चाहिए लेकिन सरकार वास्तविक समस्याओं पर सबसे अधिक सबसे कम ध्यान देती हैं और भ्रम वाली समस्याएं जिनका कोई अस्तित्व नहीं है उन समस्याओं को रोकने में सबसे ज्यादा सक्रिय रहती हैं। भारत में तो इस प्रकार का बुरा हाल है कि भारत सरकार तो वास्तविक समस्याओं को रोकने में बिल्कुल सक्रिय ही नहीं है वह तो केवल भ्रम वाली समस्याओं को ही समस्या मानती हैं गरीबी लगातार दूर की जा रही है जबकि यह गरीबी और अमीरी नाम की कोई समस्या होती ही नहीं है मेरा आपसे निवेदन है कि आप वास्तविक समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर दूर करने का प्रयास करिए।