जाति जनगणना से बढ़ेगा जाति संघर्षE GT-439
जाति जनगणना से बढ़ेगा जाति संघर्ष:
नीतीश कुमार ने बिहार में जाती जनगणना कराई, इसका साफ-साफ उद्देश्य राजनैतिक था सामाजिक नहीं। पहली बात तो यह है कि सता के लिये कभी जातिवाद का सहारा लेना बहुत घातक है। गांधी और अंबेडकर इस प्रकार के जातिवाद के विरुद्ध थे। लेकिन इन दोनों के जाने के बाद तो जातिवाद को ही सत्ता का एक अच्छा माध्यम मान लिया गया वरना जातीय जनगणना के जो आंकड़े आए हैं यह सब फर्जी आंकड़े हैं। इसमें गरीबी रेखा के नीचे की जो संख्या बताई गई है वह पूरी की पूरी फर्जी है । एक व्यक्ति को एक दिन के काम के लिए जब 10 किलो अनाज आसानी से मिल जाता है तो फिर कोई व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे कैसे हो सकता है। आज तक समझ में नहीं आया कि इस प्रकार के फर्जी आंकड़े बनाने का उद्देश्य क्या है। गरीबी रेखा की अभी तक कोई परिभाषा भी समझ में नहीं आई। कोई कहता है ₹30 प्रति व्यक्ति के नीचे वाला गरीब है तो कोई व्यक्ति इस को ₹200 बता देता है। कोई कुछ अन्य बता देता है। मैं समझता हूं कि नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत की जोड़ी इस प्रकार के किसी भी आरक्षण अथवा वर्ग संघर्ष के विरुद्ध हैं लेकिन विपक्ष की मदद ना मिलने के कारण यह दोनों भी मजबूर हो गए हैं कि इस जातिवाद के नासूर को किस प्रकार से खत्म किया जाए ।मैं फिर से नीतीश कुमार कांग्रेस पार्टी से निवेदन करता हूं कि वह सत्ता की राजनीति के लिए इस प्रकार जाती संघर्ष का सहारा ना ले।
मैं अपने जीवन के बचपन काल से ही जन्मना जाति और जन्मना वर्ण व्यवस्था के खिलाफ रहा। मैं जन्म से तो अग्रवाल माना जाता हूं लेकिन मैं बचपन में ही ब्राह्मण बन गया था और आज तक मैं जन्मना जाति और जन्म से वर्ण व्यवस्था का विरोध ही करता हूं। मैं यह मानता हूं कि कर्म के अनुसार जाति और योग्यता के आधार पर वर्ण बनना चाहिए जन्म के आधार पर नहीं। जन्मना जाति और वर्ण का हमेशा विरोध किया जाना चाहिए लेकिन राजनीतिक स्वार्थ के लिए कांग्रेस पार्टी नीतीश कुमार तथा कुछ अन्य राजनीतिक दल जातिवाद और वर्ण व्यवस्था के जन्मना मानने का गलत तरीका अख्तियार कर रहे हैं। आम जनता को इस प्रकार के राजनीतिक स्वार्थ का विरोध करना चाहिए।
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