अरविन्द केजरीवाल जेल वैचारिक GT 445

कार्यपालिका के लिए जेल से दायित्व पर बने रहना कैसे उचित ?

इस बात पर भारत में सर्वसम्मति है कि हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका को मिलाकर चलती है। भारतीय संविधान में तीनों के अलग-अलग स्वरूप भी है और अधिकार भी लेकिन संविधान में अभी तक यह बात बिल्कुल साफ नहीं है की जेल से विधायिका के लोग ही चुने जा सकते हैं या कार्यपालिका के लोग भी । कार्यपालिका और विधायिका बिल्कुल अलग-अलग होते हैं । मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री कार्यपालिका के अंग माने जाते हैं वे व्यक्तिगत रूप से विधायिका से जुड़े होते हैं लेकिन संवैधानिक स्तर पर वे कार्यपालिका के का अंग है। कोई व्यक्ति विधायक के या सांसद के रूप में तो जेल से चुनाव लड़ सकता है या जेल जाने के बाद भी त्यागपत्र नहीं दे सकता है लेकिन क्या संविधान के अनुसार कार्यपालिका के लोग भी जेल से कार्यपालिका के कार्य कर सकते हैं इस विषय पर स्थिति साफ होनी चाहिए। अरविंद केजरीवाल एक विधायक हैं अरविंद केजरीवाल एक मुख्यमंत्री के रूप में कार्यपालिक पदाधिकारी हैं। यह दोनों उनके साथ जुड़ा हुआ है तो मैं यह बात जानना चाहता हूं कि क्या कार्यपालिका और विधायिका के बीच में अंतर नहीं है क्या दोनों को एक मान लिया जाए और यदि अलग-अलग हैं तो फिर कार्यपालिका के लोग जेल से कैसे अपना कार्य कर सकते हैं

 

केजरीवाल की गिरफ्तारी पर विदेशी हस्तक्षेप गम्भीर चिंता की बात :

यह बात कई बार सुनने में आई की विदेश से अरविंद केजरीवाल को बड़ी मात्रा में धन दिया गया यह बात भी पता चली की कुछ विदेश के लोगों ने भी अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक मदद की लेकिन अभी पिछले दिनों एक देश की सरकार ने अरविंद केजरीवाल के पक्ष में एक बयान दिया आज अमेरिका सरकार ने भी अरविंद केजरीवाल के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हुए सरकार से न्याय करने की इच्छा व्यक्त की। इन बयानों को सुनकर यह बात साफ हो जाती है कि अरविंद केजरीवाल को खड़ा रहने में विदेश की भी बहुत रूचि है। यह एक गंभीर प्रश्न खड़ा होता है की भारत की राजनीति में विदेशी शक्तियां इस प्रकार हस्तक्षेप क्यों करती हैं उनका उद्देश्य क्या है । यह बात भी समझने की जरूरत है कि जिस तरह अरविंद केजरीवाल के चुनावों ने दिल्ली में चमत्कार किया पंजाब में भी अप्रत्याशित विजय मिली उसमें कहीं कोई विदेशी सहयोग तो नहीं था । भारत सरकार को इस संबंध में सावधानी से विचार करना चाहिए । भारत के अनेक मुख्यमंत्री पहले भी गिरफ्तार हो चुके हैं यह कोई पहला मामला नहीं है लेकिन अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर विदेश की इतनी रुचि और चिंता अवश्य ही सावधान करती है । कल जब दिल्ली के उच्च न्यायालय में अरविंद केजरीवाल की रिहाई पर सुनवाई चल रही थी उस समय दिल्ली के सभी न्यायालयों में वकीलों का एक ग्रुप न्यायालय परिसर में अरविंद के पक्ष में नारे लगा रहा था इससे यह स्पष्ट होता है कि अरविंद केजरीवाल का मामला सामान्य राजनीतिक मामला नहीं है किसी एक राजनीतिक दल का मामला नहीं है बल्कि बहुत ज्यादा उच्च स्तरीय सडयंत्र भी हो सकता है। कल ही अरविंद केजरीवाल की पत्नी ने यह संकेत दिया था कि आज दोपहर में अरविंद केजरीवाल इस 100 करोड़ के भ्रष्टाचार में के संबंध में कुछ रहस्य उद्घाटन करेंगे लेकिन आज अरविंद केजरीवाल ने ऐसी कोई भी बात नहीं कही यह भी एक गंभीर विषय है कि कल अरविंद जो बात बोलना चाहते थे आज उन्होंने वह बात बोलने से परहेज क्यों किया