2 जुलाई प्रभात सत्र: स्वार्थ और संपत्ति व्यवस्था पर विचार

2 जुलाई प्रभात सत्र: स्वार्थ और संपत्ति व्यवस्था पर विचार

पिछले कुछ वर्षों में विश्व भर में स्वार्थ की प्रवृत्ति निरंतर बढ़ रही है। भारत में भी, यदि हम 140 करोड़ लोगों का विश्लेषण करें, तो स्पष्ट होता है कि प्रत्येक व्यक्ति में स्वार्थ की मात्रा बढ़ती जा रही है। यह स्वार्थ न केवल सामाजिक अविश्वास और टकराव को जन्म दे रहा है, बल्कि अपराधों की संख्या में भी वृद्धि कर रहा है। स्वार्थ समस्याओं के समाधान में बाधा उत्पन्न करता है, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है और इसे रोकने में भी रुकावट पैदा करता है। कोई भ्रष्टाचारी व्यवस्था भ्रष्टाचार को नियंत्रित नहीं कर सकती, और परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार की मात्रा निरंतर बढ़ रही है।

इसका मूल कारण है स्वार्थ। स्वार्थ की यह वृद्धि इसलिए हो रही है क्योंकि हम व्यक्तिगत संपत्ति को अत्यधिक महत्व दे रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति व्यक्तिगत संपत्ति के प्रति लालायित है, जिससे प्रतिस्पर्धा और स्वार्थ बढ़ रहा है। दूसरी ओर, सामूहिक संपत्ति का सिद्धांत विकास को अवरुद्ध करता है, क्योंकि यह प्रतिस्पर्धा की भावना को कम करता है। यही कारण है कि साम्यवाद, जो सामूहिक संपत्ति का समर्थन करता है, असफल रहा।

हालांकि, व्यक्तिगत संपत्ति का सिद्धांत भी घातक सिद्ध हो रहा है, क्योंकि यह स्वार्थ को बढ़ावा देता है। इस समस्या के समाधान के लिए हम एक ऐसी व्यवस्था प्रस्तावित करते हैं, जिसमें संपत्ति न तो पूर्णतः व्यक्तिगत हो और न ही पूर्णतः सामूहिक, बल्कि संयुक्त हो। इस व्यवस्था में यह अनिवार्य होगा कि कोई भी संपत्ति केवल एक व्यक्ति की न हो, बल्कि कम से कम दो व्यक्ति उस संपत्ति के संयुक्त स्वामी हों। इस प्रकार, हम सामूहिक संपत्ति के सिद्धांत को संशोधित करते हुए और व्यक्तिगत संपत्ति की अवधारणा को नियंत्रित करते हुए संयुक्त संपत्ति की व्यवस्था लागू करेंगे। यह व्यवस्था स्वार्थ को कम करने और सामाजिक समरसता को बढ़ाने में सहायक होगी।