मैं अपने जीवन के अनुभव इसी प्रातःकालीन सत्र में आपके साथ साझा करता हूँ।

15 नवंबर, प्रातःकालीन सत्र

हम प्रतिदिन सुबह नई समाज व्यवस्था पर चर्चा करते हैं। मैं अपने जीवन के अनुभव इसी प्रातःकालीन सत्र में आपके साथ साझा करता हूँ। मेरे अनुभव में सिद्धांत और व्यवहार—दोनों के बीच संतुलन अत्यंत आवश्यक है।

यदि केवल ऊँचे सिद्धांतों के आधार पर क्रियान्वयन किया जाए, तो अक्सर असफलता मिलती है। वहीं यदि सिद्धांतों को पूरी तरह छोड़कर सिर्फ क्रियान्वयन को महत्व दिया जाए, तो समाज में अव्यवस्था और बुराइयाँ बढ़ने लगती हैं। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि सिद्धांत और व्यवहार दोनों के बीच उचित तालमेल बनाकर चला जाए।

इसे ही हम बेस्ट पॉसिबल’ का सिद्धांत कहते हैं—अर्थात वह मार्ग अपनाना जो सर्वोत्तम भी हो और संभव भी। चर्चा के स्तर पर हम सर्वोच्च सिद्धांतों, आदर्शों और श्रेष्ठ मूल्यों की बात करेंगे, क्योंकि सिद्धांत दिशा देते हैं। लेकिन जब क्रियान्वयन की बात आएगी, तो हम व्यावहारिकता को ध्यान में रखेंगे, क्योंकि हर उच्च सिद्धांत को वैसा-का-वैसा लागू करना संभव नहीं होता।

वर्तमान समय में कुछ लोग सिर्फ उच्च सिद्धांतों को लागू करना चाहते हैं, और कुछ लोग सिद्धांतों को पूरी तरह छोड़कर केवल व्यवहारिकता की ओर झुक जाते हैं। दोनों ही दृष्टिकोण अधूरे और गलत हैं। इसी कारण हम यथार्थवादी दृष्टिकोण की बात करते हैं—सिद्धांतों की चर्चा आदर्श रूप में, और क्रियान्वयन व्यावहारिक धरातल पर।