किसान आत्महत्या की समीक्षा

किसान आत्महत्या की समीक्षा

         किसी कार्य के परिणाम की कल्पना और यथार्थ के बीच जब असीमित दूरी का अनुभव होता है तब कभी-कभी व्यक्ति आत्महत्या की ओर अग्रसर होता है । इसका अर्थ हुआ कि यदि परिणाम की कल्पना असंभव की सीमा तक कर ली गई अथवा किसी दुर्घटनावश परिणाम अप्रत्याशित हुए तभी व्यक्ति को असीमित दुख होता है । ऐसा व्यक्ति ही कभी-कभी आत्महत्या कर लेता है । आत्महत्या करने वालों में सब प्रकार के लोग होते हैं । छात्र भी बडी संख्या में आत्महत्या करते हैं तो महिलाए अथवा व्यापारी भी । कभी-कभी तो राजा तक आत्महत्या करते पाये जाते हैं । यह अलग बात है कि किसानों की आत्महत्या कुछ अधिक प्रचारित हुई ।

   किसान तीन प्रकार हैं-

(1) जो अपनी भूमि में स्वयं खेती करते है ।

(2) जो अपनी भूमि में मजदूरों से खेती कराते है ।

(3) जो उन्नत तकनीक तथा कृत्रिम उर्जा के सहारे खेती करते हैं।

           ऐसे उन्नत किसानों को ही फार्महाउस वाला किसान कहा जाता है । जिन किसानों ने आत्महत्या की है उनमें फार्महाउस वाला उन्नत किसान लगभग नहीं है । जो किसान अपनी जमीन पर स्वयं खेती करता है और अपने उपयोग में लाता है, वह भी आत्महत्या नहीं करता । भारत में जिन लाखों किसानों ने आत्महत्या की है वे लगभग बीच वाले किसान थे जो छोटी जोत के मालिक थे और मजदूरों के माध्यम से खेती कराते रहे है। विचारणीय प्रश्न यह है कि किसी मजदूर ने आत्महत्या  नहीं की । दूसरा विचारणीय प्रश्न यह भी है कि यदि खेती घाटे का सौदा है तो देश में लगातार कृषि उत्पादन बढ रहा है । ये दोनों प्रश्न सही होते हुये भी यह प्रश्न सच है कि बडी मात्रा में बीच वाले किसान आत्महत्या कर रहे है । इसके कई कारण हैं -

(1) स्वतंत्रता के बाद श्रम का मूल्य बढा और कृषि उत्पादन का मूल्य घटा । भारत में स्वतंत्रता के बाद मुद्रा का अवमूल्यंन 91 गुना हुआ है । इसका अर्थ है कि यदि सन 47 में किसी वस्तु का मूल्य 1 रु था और आज 91 रु है तो वह समतुल्य है । यदि हम श्रममूल्य का आकलन करे तो वह वर्तमान में 91 की तुलना में लगभग 170 हो गया है । दूसरी ओर यदि हम अनाज के मूल्य का आकलन करें तो वह दालों को छोडकर लगभग 45 गुना ही बढा है । इसका अर्थ हुआ कि श्रम मूल्य की तुलना में कृषि उत्पादन का मूल्य एक चैथाई ही रह गया है । उपर से मंहगाई का झूठा हल्ला उस बेचारे उत्पादक को और भी अधिक परेशान किये रहता है । वैसे भी हम देख सकते है कि यदि स्वतंत्रता के समय एक मजदूर को एक दिन का डेढ़ किलो अनाज देते थे तो आज 8 किलो दे रहे है। इसमें कुछ बढ़ती हुई विकास दर का भी योगदान है किन्तु किसान पूर्व की तुलना में चार गुना अधिक अनाज श्रमिक को देता है। साधारण किसान किसी तरह सामान्य रुप से तो अपना खर्च चलाता है किन्तु आकस्मिक विपत्ति के समय उसका धैर्य टूट जाता है और वह भावनाओं में बहकर आत्महत्या कर लेता है।

(2) किसान के उत्पादन का मूल्य बढ नहीं पाता क्योंकि अपेक्षाकृत सस्ती कृत्रिम उर्जा और तकनीक से खेती करने वालो के साथ वह बीच वाला किसान प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाता । उन्नत तकनीक से उत्पादित कृषि उत्पादन सम्पूर्ण कृषि उत्पादन का मूल्य बढने ही नहीं देता । साथ ही राजनैतिक व्यवस्था पर उपभोक्ताओं का प्रभाव अधिक रहता है और वे बाजार तथा राजनीति पर पूरी तरह हावी रहते है तो उपभोक्ता किसी भी रुप में किसी उत्पादन का मूल्य संतुलित होने ही नहीं देते । भले ही उत्पादक आत्महत्या ही क्यों न कर ले ।

(3) किसानों का भावनात्मक रुप से जमीन के साथ मोह पैदा कर दिया जाता है जिससे किसान अपनी जमीन बेचकर या खाली छोडकर किसी अन्य दिशा में नहीं जा पाता । सामाजिक तथा राजनैतिक वातावरण किसानों की झूठी प्रशंसा करके उन्हें जमीन के साथ जोडे रखना चाहता है । यदा-कदा राजनैतिक व्यवस्था भीख के बतौर कुछ सुविधायें देकर भी ऐसे मजबूर किसानों को खेती के प्रति लगाव बनाये रखती है । इस तरह तीन ऐसे कारण है जो किसानों की आत्महत्या के कारण के लिए माने जाते है । स्पष्ट है कि अन्य लोगों की आत्महत्याये भले ही भावनात्मक कारणों से होती हों किन्तु किसानों की आत्महत्या में कोई भावनात्मक कारण न होकर मजदूरी ही एकमात्र कारण होती है।

            यदि हम समाधान पर विचार करें तो समाधान भी साधारण बात नहीं है । कृषि उत्पादन का मूल्य बढा दिया जाये तब बडे किसान ही बहुत ज्यादा लाभान्वित होंगे । यदि खाद, बीज, बिजली, पानी सस्ता कर दिया जाये तब भी बडे किसान ही लाभान्वित होंगे । इन आत्महत्या करने वालों के हिस्से में कुछ नहीं आयेगा । श्रम का मूल्य कम नही किया जा सकता क्योंकि श्रम, बुद्धि और धन की  तुलना में बहुत ज्यादा असमानता हो गई है और श्रम का मूल्य और अधिक बढना चाहिए । किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए श्रममूल्य वृद्धि को नहीं रोका जा सकता । मैं स्पष्ट कर दॅू कि वर्तमान समय में किसान आत्महत्या के नाम पर जो भी किसान आन्दोलन हो रहे है वे बडे किसानों के नेतृत्व में हो रहे है । ये किसान खाद, बिजली, पानी का मूल्य घटाने की बात करते है । ये किसान श्रममूल्य वृद्धि के भी विरुद्ध वातावरण बनाते है किन्तु ये बडे किसान खेती की दुर्दशा के मूल कारण को नहीं खोज पाते।

           मैंने राष्ट्रीय और सामाजिक भावनाओं में बहकर व्यापार छोड दिया और जनहित में खेती का व्यापार करने लगा । 30 वर्षो तक पूरा-पूरा परिश्रम करने के बाद भी मेरी स्थिति इतनी खराब हुई कि मेरे समक्ष आत्महत्या के अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं था । मैंने सन 95 में हार मानकर खेती छोड दी। मैं स्पष्ट कर दॅू कि खेती छोडकर मेरे परिवार ने बहुत अच्छा किया । मुझे पूरा अनुभव है कि खेती घाटे का व्यवसाय है यदि उन्नत तकनीक से न किया जाये तो । इसका अर्थ हुआ कि जिस तरह सम्पूर्ण भारत में लघु उद्योग मरणासन्न है, छोटे व्यापारी परेशान है, छोटे उद्योगपति परेशान है उसी तरह आज छोटे किसान भी आत्महत्या कर रहे है क्योंकि सम्पूर्ण भारत में सब प्रकार के कार्यो का केन्द्रियकरण हो रहा है और इस केन्द्रियकरण की चपेट में छोटे किसान भी है। इसका अर्थ हुआ कि समस्या कही और है और समाधान कही और । किसानों की आत्महत्या रोकने का एक ही इमानदार समाधान हो सकता है कि कृत्रिम उर्जा का मूल्य इतना अधिक बढा दिया जाये कि उन्नत किसान मध्यम किसान और छोटे किसान एक दूसरे के साथ खुली प्रतिस्पर्धा कर सके या कम से कम इतना अवश्य हो कि तकनीक वंचित का तथा श्रम का शोषण न कर सके । मैं जानता हॅू कि इस मूल्यवृद्धि का आयात निर्यात पर दुष्प्रभाव हो  सकता है किन्तु उसका समाधान कठिन नहीं । कितने दुख की बात है कि स्वतंत्रता के बाद से लेकर सन 2010 तक लगभग सभी कृषि उत्पादनों पर टैक्स वसूला जाता था और वह टैक्स वसूल कर उपभोक्ताओं को सस्ता अनाज बांटने में खर्च किया जाता था। कुछ कृषि उत्पादों पर तो आज तक टैक्स माफ नहीं हुआ है।

       हमारी राजनैतिक व्यवस्था गरीब, ग्रामीण, श्रमजीवी, छोटे किसान के विषय में भाषण तो बहुत देती है किन्तु इन चारों के उत्पादनों और उपभोग की वस्तुओं पर भारी कर लगाकर षिक्षा, स्वास्थ,सस्ता आवागमन आदि पर खर्च करती है। यदि ऐसी विपरीत परिस्थितियों में छोटा किसान आत्महत्या करता है तो विचार करिये कि दोष किसान का है या समाज का है या हमारी राजनैतिक व्यवस्था का? ग्रामीण अर्थव्यवस्था को चैपट करके शहरी अर्थव्यवस्था का प्रोत्साहन इससे अतिरिक्त अन्य कोई परिणाम नहीं दे सकता। मैं चाहता हॅू कि किसान आत्महत्या पर गंभीरता से विचार करके इसका समाधान खोजा जाना चाहिए।