एन0 जी0 ओ0 समस्या या समाधान

कुछ सर्वस्वीकृत सिद्धांत है-

(1)राज्य एक आवश्यक बुराई माना जाता है। राज्यविहीन समाज व्यवस्था युटोपिया होती है और राज्य नियंत्रित समाज व्यवस्था गुलामी। राज्ययुक्त किन्तु राज्य मुक्त समाज व्यवस्था आदर्श मानी जाती है।
(2) अपराधी और राजनीतिज्ञ बहुत मायावी होते है जहाॅ भी लाभ या प्रतिष्ठा के अधिक अवसर देखते है वही ये वेश बदलकर उस भीड का नेतृत्व करने लगते है।
(3)यदि समाज सेवी संस्थाओं या संगठनों में भ्रष्टाचार दो प्रतिशत से अधिक हो जाये तो उनका तत्काल निजीकरण कर देना चाहिये।
4 ) अधिकांश भ्रष्ट लोग निजीकरण का सबसे अधिक विरोध करते है।
मुझे एन जी ओ का पुराना इतिहास पता नहीं है। मुझे यह भी पता नहीं है कि एन जी ओ कब संस्था के रुप में था और कब से संगठन बना। किन्तु मुझे यह पता है कि प्राचीन समय में एन जी ओ स्वयं सेवी संस्था के रुप में कार्य करता था और आज गैर सरकारी संगठन के रुप में। प्राचीन समय में संस्थाओं पर समाज का नियंत्रण होता था किन्तु आज इन पर सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। भारत में एन जी ओ हमेशा संस्था के रुप में रही किन्तु पश्चिम के प्रभाव में उसका स्वरुप संगठन के रुप मेें बन गया। संस्थाये सिर्फ समाज सेवा का काम करती थी, समाज पर नियंत्रण करने का नहीं किन्तु एन जी ओ सरकार और समाज के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने लगे।
राज्य हमेशा ही समाज पर अपना अधिकतम हस्तक्षेप बनाये रखना चाहता है। लोकतंत्र उस हस्तक्षेप में आंशिक रुप से बाधक रहा किन्तु जब दुनिया में साम्यवाद मजबूत होने लगा तब से लोकतंत्र के समक्ष भी संकट पैदा हुआ। साम्यवाद सम्पूर्ण सरकारीकरण की व्यवस्था थी और सफलतापूर्वक आगे बढ रही थी। दूसरी ओर गैर सरकारी संस्थायें पूरी तरह सरकार मुक्त व्यवस्था थी और सरकार के लिए समस्या भी थी। कुछ लोकतांत्रिक देशों ने साम्यवाद और लोकतंत्र के बीच एन जी ओ को एक मध्यमार्ग चुना। एन जी ओ के माध्यम से सरकारें सामाजिक कार्यो के लिए धन देने लगी । स्पष्ट है कि सरकारों द्वारा बनायी गई अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार की गुंजाईश बहुत अधिक होती थी और सामाजिक संस्थाओं का पूरा इतिहास ईमानदारी का रहा है इसलिए भी एन जी ओ को अच्छा माध्यम माना गया। किन्तु यह बात भी स्वाभाविक है कि ईमानदार से ईमानदार व्यवस्था को भी लम्बे समय तक अधिक अधिकार दे दिये जाये तो उसमें भ्रष्टाचार के अवसर पैदा होने लगते है। हमने भारत में देखा है कि स्कूलों के शिक्षक अन्य सभी विभागों की तुलना में अधिक ईमानदार रहे है। किन्तु जब उन्हें साल बीज, बिडी पत्ता, खरीदने के काम में लगाया गया तो उसका दुष्प्रभाव पूरे शिक्षक विरादरी पर दिखाई दिया। न्यायपालिका को भी ईमानदार बताया जाता रहा किन्तु धीरे धीरे अधिकार बढने के कारण उनमें भी भ्रष्टाचार बढने लगा। लगभग यही स्थिति गैर सरकारी संगठनों की भी हुई। जो भी काम इन्हें दिया गया उनमें सरकारी विभागों की तुलना में अधिक भ्रष्टाचार बढता हुआ पाया गया। आज तो स्थिति यहाॅ तक हो गई है कि एन जी ओ एक व्यवसाय का रुप ले चुका है। मेरे एक मित्र एक बडा सामाजिक बोर्ड लगाकर एन जी ओ चलाते थे। उन्हें जब पता चला कि गोशाला के नाम से बहुत कमाई हो सकती है तो उन्होेने एक फर्जी गोशाला रजिस्टर्ड कराकर उसी नाम पर बहुत घपला करना शुरु किया। स्पष्ट है कि जहाॅ लाभ और प्रतिष्ठा के अधिक अवसर दिखते है वहीं राजनेता व्यवसायी और अपराधी प्रवृत्ति के लोग वेश बदलकर उस भीड में शामिल हो जाते है क्योंकि ये लोग मायावी होते है और आसानी से वेश बदलना जानते हैं। मैं देख रहा हॅू कि वर्ममान भारत में अनेक एन जी ओ ऐसे खुल गये है जिनका संचालन अपराधियों राजनेताओं या बडे बडे सरकारी अधिकारियों के परिवारों के पास है। स्पष्ट है कि इन सबका समाज सेवा से कोई लेना देना नहीं है।
अब तो धीरे धीरे एन जी ओ एक नई समस्या के रुप में विकसित हो रहे है। अनेक ऐसे संगठनों को या तो विदेशो से धन मिलता है या सरकार से। ये धनदाताओं की इच्छा अनुसार समाज को गलत दिशा में ले जाने का काम करते हैं। अधिकांश एन जी ओ अब वर्ग संघर्ष को बढावा देते है क्योकि दाता विदेशियों का यही मुख्य उद्देश्य है। कोई बचपन बचाओं तो कोई महिला बचाओं के नाम पर वर्ग संघर्ष को विस्तार दे रहा है। कुछ अन्य संगठन आदिवासी और हरिजन के नाम पर भी वही काम कर रहे है । मुझे तो एक भी ऐसा एन जी ओ नहीं दिखा जो समाज सशक्तिकरण अथवा वर्ग समन्वय का काम कर रहा हो क्योंकि कोई विदेशी संस्था यह नही चाहती कि भारत में वर्ग समन्वय हो। धीरे धीरे स्थिति यहाॅ तक आ गई कि एन जी ओ के लोग स्वयं ही सत्ता के सूत्रधार बनने का प्रयास करने लगे । अनेक बडे एन जी ओ वालो ने या तो स्वयं राजनीति में प्रवेश किया अथवा अपने चमचों को वहा तक पहुचाया। आर्थिक कठिनाई थी ही नहीं। सामाजिक संस्था के नाम से प्रतिष्ठा भी थी और सत्ता में जाने की पूरी पूरी छूट भी थी । मैंने तो देखा है कि नक्सलवाद को हवा देने में भी एन जी ओ की अधिक भूमिका रही है। नक्सलवादियों के मुख्य संरक्षक किसी न किसी एन जी ओ का बोर्ड लगाकर अवश्य रखते है।
एन जी ओ चाहे जिस भी अच्छे उद्देश्य के लिए शुरु किये गये हो किन्तु भारत में समाज को तोडने में वे अधिक भूमिका अदा कर रहे है। ये समाज में अव्यवस्था अधिक फैला रहे है। इन्हें मानव स्वभाव तापवृद्धि की कभी चिंता नहीं रही किन्तु पर्यावरणीय तापवृद्धि के लिए दिन रात चिंतित रहते है। सारे प्राकृतिक वातावरण का ठेेका इन्ही व्यावसायिक सामाजिक संगठनों ने अपने पास उठा रखा है,भले ही विकास कितना भी पिछड़ जाये। ये एन जी ओ कभी बिजली उत्पादन की वृद्धि नहीं होने देते क्योकि इन्हे धन देने वाले विदेशियों की आंतरिक इच्छा यही रहती है। एक तरफ तो एन जी ओ समाज के लिए समस्याए पैदा कर रहे है दूसरी ओर इनमें भ्रष्टाचार भी 90 प्रतिशत से अधिक हो गया है। इसलिए सरकार और संस्थाओं के बीच में अब इन गैर सरकारी संस्थाओं से मुक्ति पाने की आवष्यकता है। हमें नहीं चाहिये ऐसी सामाजिक संस्थाये जो समाज सेवा का बोर्ड लगाकर समाज में अव्यवस्था फैलाती है। इनका तत्काल निजीकरण कर देना चाहिये।
अंत में मेरा यह सुझाव है कि सरकार को चाहिये कि वह धीरे धीरे ऐसे गैरसरकारी संगठनों पर षिकंजा मजबूत करें और इन्हे मजबूर कर दे कि वे शासन मुक्त सामाजिक संस्थाओं के रुप में सेवा कार्य की पुरानी परिपाटी पर लौट जाये।