आदर्श परिवार

हम पिछले दिनों परिवार व्यवस्था की आवश्यकता तथा परंपरागत परिवार या आधुनिक परिवार व्यवस्था के गुण दोषों पर चर्चा कर चुके हैं। आज हम इस विषय पर चर्चा कर रहे हैं कि आदर्श परिवार व्यवस्था कैसी होगी। हम पूर्व में यह निष्कर्ष निकाल चुके हैं कि सामाजिक व्यवस्था के सुचारू संचालन के लिये व्यवस्था की पहली इकाई परिवार ही होनी चाहिए। गांव उसकी दूसरी इकाई हो सकती है। वर्तमान भारत में प्रचलित परंपरागत परिवार व्यवस्था लगातार टूटती जा रही है। परिवार व्यवस्था को सरकारी कानून का हस्तक्षेप भी बहुत अधिक प्रभावित कर रहा है तो उसे पश्चिम की आधुनिक परिवार व्यवस्था से भी कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है। सरकारी कानून और आधुनिकता के तालमेल के समक्ष हमारी परम्परागत परिवार व्यवस्था संकट में है। इसलिए परिवार व्यवस्था में कुछ सुधार आवश्यक है। ये प्रमुख सुधार पांच हो सकते हैं:-

  1. परिभाषा:- परिवार की परिभाषा इस प्रकार होनी चाहिए। संयुक्त संपत्ति तथा संयुक्त उत्तरदायित्व के आधार पर एक साथ रहने के लिए सहमत व्यक्तियों का समूह।
  2. दो पद आवश्यक होंगे। एक परिवार प्रमुख होगा जो परिवार का सबसे अधिक उम्र का व्यक्ति होगा। प्रमुख की भूमिका राष्ट्रीय राष्ट्रपति के समान होगी। दूसरा एक परिवार का मुखिया होगा जिसकी भूमिका प्रधानमंत्री के समान होगी। परिवार के प्रत्येक सदस्य को मुखिया का निर्णय मुखिया को प्रमुख का निर्णय तथा प्रमुख को पूरे परिवार का सामूहिक निर्णय मानना अनिवार्य होगा।
  3. परिवार एक संप्रभु इकाई के समान होगी। परिवार का अपना अलग संविधान होगा जिसके बनाने में परिवार के प्रत्येक सदस्य की भूमिका समान होगी। उम्र, लिंग, पद अथवा योग्यता का कोई भेद नहीं होगा।
  4. परिवार में परिवार के सभी सदस्यों के अधिकार संयुक्त होंगे। परिवार के किसी सदस्य के कोई पृथक अधिकार नहीं होंगे। परिवार के किसी भी सदस्य को कभी भी परिवार छोड़ने की स्वतंत्रता होगी या कभी भी उसे बिना कारण बताए परिवार से अलग किया जा सकता है। अलग होते या करते समय उसे संपूर्ण संपत्ति का सदस्य संख्या के आधार पर हिस्सा दिया जाएगा
  5. परिवार का प्रत्येक सदस्य परिवार का सदस्य माना जाएगा। किसी बालक के जन्म लेते ही वह परिवार का सदस्य होगा, माता-पिता की संतान नहीं।

इन सुधारों को भारतीय संविधान का भाग बना देना चाहिए। इससे परिवार के संबंध में बने सभी कानून समाप्त हो जाएंगे तथा राज्य का हस्तक्षेप भी कम हो जाएगा।

संयुक्त संपत्ति का नियम बनते ही व्यक्तिगत स्वार्थ भावना कम होगी। इससे संपत्ति संबंधी निजता का अधिकार भी समाप्त होगा तथा गोपनीयता के लिए कानूनों के मार्ग खुल जाएंगे। संयुक्त उत्तरदायित्व से अपराध भाव में बहुत कमी होगी। परिवार का एक सदस्य अपराध करेगा तो उसके लिए पूरा परिवार उत्तरदायी होगा। कानूनी कार्रवाई बहुत सीमित हो जाएगी। अपने सदस्य की निर्दोषता की गारंटी परिवार देगा या उस सदस्य को परिवार से अलग करेगा। परिवार के सदस्यों के आंतरिक विवाद तो परिवार से बाहर तभी जा सकेंगे जब वह सदस्य परिवार छोड़ देगा। यदि दो परिवारों के बीच विवाद होगा तो ग्राम सभा की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी क्योंकि कोई भी विवाद दो व्यक्तियों का व्यक्तिगत विवाद नहीं रहेगा। परिवार का आंतरिक अनुशासन महत्वपूर्ण हो जाएगा।

परिवार में दो पद होने से परिवार के बुजुर्गों का सम्मान भी बना रहेगा और उनके स्वाभिमान को भी चोट नहीं लगेगी। मुखिया लोकतांत्रिक तरीके से चुना जाएगा किंतु एक बार चुनाव हो जाने के बाद मुखिया की भूमिका निर्णायक हो जाएगी। मुखिया को प्रमुख और प्रमुख को पूरा परिवार ही निर्देशित कर सकेगा। इस तरह परिवार में सीमित लोकतंत्र  काम करना शुरू कर देगा। परिवार का सविधान परिवार के सभी सदस्य मिलकर बनायेंगे। परिवार की किसी भी भूमिका में उम्र, योग्यता, लिंग या अन्य भेद नहीं होगा। यदि परिवार उचित समझे तो किसी ऊपर की इकाई में मतदान के लिए भी परिवार का मुखिया अधिकृत हो सकता है। आम चुनाव में मुखिया के मत का मूल्य उसकी सदस्य संख्या के आधार पर हो सकता है। इससे आम चुनाव में बहुत खर्च की बचत संभव है। परिवार के संविधान के ऊपर राष्ट्रीय संविधान को वरीयता प्राप्त होगी किंतु अधिकांश कानून समाप्त हो जाएंगे।

परिवार एक टीम की तरह होगा। परिवार के किसी सदस्य को कोई बाहरी सुविधा या अधिकार व्यक्तिगत नहीं होंगे। सब कुछ संयुक्त होगा। परिवार का कोई भी सदस्य कभी भी परिवार से हट या हटाया जा सकता है। इससे परिवार में घुटन समाप्त होगी। विवाद, टकराव, केश मुकदमे, आत्महत्याऐं भी रुकेंगी। परिवार में अनुशासन भी बढ़ेगा। परिवार में संवाद प्रणाली का भी  विकास होगा। परिवारों में पति पत्नी के विवाद भी कम होंगे क्योंकि सब कुछ परिवार का सामूहिक होगा तथा किसी भी सदस्य को परिवार छोड़ने के पूर्व अदालत की अनुमति नहीं चाहिए। परिवार के बच्चे भी सामूहिक होने से लड़का लड़की के जन्म की प्राथमिकता में भी कमी आएगी।

मेरा ऐसा मत है कि हम परिवार व्यवस्था में कुछ बदलाव करके सरकारी दुष्प्रभावों से भी मुक्त हो सकते हैं तथा आधुनिक परिवार प्रणाली को भी टक्कर दे सकते हैं।