समस्याएं और समाधान आठवां अंक
हम पिछले दो माह से समस्याएं और समाधान विषय पर चर्चा कर रहे हैं । चार सप्ताह तक हम समस्याओं की पहचान करते रहे तथा तीन सप्ताह तक समाधान पर चर्चा किये । अब अन्तिम सप्ताह हम यह चर्चा करेंगे कि समस्याओं के समाधान में हम व्यक्तिगत रूप से क्या कर सकते हैं ।
हमने पाया कि व्यक्ति और व्यवस्था एक दूसरे के पूरक हैं । व्यक्ति का व्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ता है तो व्यवस्था का व्यक्ति पर । इसलिये समाधान भी दोनो दिशाओं से शुरू करना होगा । व्यक्ति के स्वभाव में स्वार्थ और हिंसा का व्यापक विस्तार हुआ है तो व्यवस्था में राजनैतिक सत्ता बढ़ती चली गई है । दोनो के समाधान के रूप में हमें व्यक्तिगत सम्पत्ति और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को संयुक्त सम्पत्ति संयुक्त स्वतंत्रता में बदलना होगा । राजनैतिक सत्ता के केन्द्रीयकरण पर नियंत्रण के लिये हमें वर्तमान लोकतंत्र की जगह संशोधित वर्ण व्यवस्था तथा लोक स्वराज्य प्रणाली का मिला जुला प्रारूप बनाना होगा । सम्पत्ति स्वतंत्रता में बदलाव के लिये हमें परिवार व्यवस्था से शुरूआत करनी होगी तो लोकतंत्र का स्वरूप सुधारने के लिये हमें संविधान को तंत्र के नियंत्रण से मुक्त कराना होगा । सभी समस्याओं के दीर्घकालिक विश्वव्यापी समाधान की शुरूआत व्यवस्था परिवर्तन के इन दो सूत्रों से करनी होगी ।
दीर्घकालिक व्यवस्था परिवर्तन के साथ साथ हमें कुछ अल्पकालिक तथा राष्ट्रीय स्तर की समस्याओं के भी समाधान करने होंगे जो वर्तमान व्यवस्था के सुधार में सहायक होंगे । व्यवस्था बनाने में पारिवारिक, धार्मिक, राजनैतिक, संवैधानिक, सामाजिक, आर्थिक आदि अनेक संस्थाओं का सम्मिलित योगदान होता है । इन सभी संस्थाओं में विकृतियां आई हैं । परिवार व्यवस्था में महत्वपूर्ण विकृति है कि परिवार के मुखिया चयन और मुखिया पर नियंत्रण में सामूहिक परिवार की कोई भूमिका नहीं है । मुखिया अपने को परिवार का मालिक समझता है । इसके समाधान के लिये मुखिया का चयन परिवार के सबलोग मिलकर करें तथा मुखिया सामूहिक निर्णय मानने के लिये बाध्य हो । धार्मिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण विकृति आई है कि धर्म का स्वरूप मार्गदर्शक के स्थान पर संगठन का बन गया । इसके कारण धर्म सम्प्रदाय बनने लगा । इसके समाधान के लिये धर्म को व्यक्तिगत आचरण तक सीमित करके उसके संगठनात्मक स्वरूप पर पूरी तरह रोक लग जावे । राजनैतिक विकृति के रूप में दलगत राजनीति एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में आई । लोकतंत्र का सत्ता पक्ष और विपक्ष का ढांचा ही पूरी तरह गलत है । निर्दलीय लोकतंत्र इसका सही समाधान हो सकता है । राज्य को सुरक्षा और न्याय तक सीमित रहकर अन्य जनकल्याणकारी कार्य राज्य मुक्त सामाजिक इकाइयों पर छोड़ देने चाहिये । देश के संवैधानिक स्वरूप में भी कई विकृतियां आ गई हैं । लोकतंत्र को लोक नियुक्त तंत्र की जगह लोक नियंत्रित तंत्र के रूप में सामने आना चाहिये । संविधान के प्रिएम्बुल से समानता शब्द हटाकर स्वतंत्रता शब्द कर देना चाहिये ।
संविधान का ढांचा बनाने में लोक स्वराज्य प्रणाली को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिये । उसके बाद क्रम से अपराध नियंत्रण की गारंटी, आर्थिक असमानता में अप्रत्यक्ष कमी, श्रम सम्मान वृद्धि तथा समान नागरिक संहिता को महत्वपूर्ण मानना चाहिये । संविधान से ऐसे सारे प्रावधान समाप्त होने चाहिये जो वर्ग विद्वेष वर्ग संघर्ष को प्रोत्साहित करते हों । किसी भी प्रकार के वर्ग विद्वेष वर्ग संघर्ष से मुक्ति का सबसे अच्छा समाधान समान नागरिक संहिता है । सामाजिक व्यवस्था में भी व्यापक विकृति आई है । समाज सर्व व्यक्ति समूह होता है और व्यवस्था सर्व व्यक्ति समूह की मैनेजर । समाज शब्द का अर्थ विकृत करके व्यवस्था ने ही स्वयं को समाज से उपर घोषित कर दिया । समाज का प्रथम स्वरूप परिवार, गांव, जिला, प्रदेश और राष्ट्र होते हैं । धर्म और अर्थ उसके सहायक होते हैं । राष्ट्र और धर्म रूपी शब्दों ने स्वयं को समाज से ऊपर मान लिया । इसके समाधान के लिये समाज में समाज सर्वोच्च की धारणा विकसित करनी होगी । परिवार से लेकर राष्ट्र तक की व्यवस्था किसी संविधान की सीमाओ में रहकर कार्य करने के लिये बाध्य होगी । संविधान निर्माण और उसके संशोधन मे वर्तमान व्यवस्थापकों की भूमिका शून्य या सीमित होगी तथा उसके लिये लोक अर्थात सर्व व्यक्ति समूह तंत्र नियंत्रण मुक्त व्यवस्था बनायेगा । समाज पूरे विश्व की एक सर्वोच्च इकाई होगी । राज्य समाज के सामाजिक मामलों में कोई कानून नहीं बना सकेगा जब तक संविधान उसे अनुमति न दे । प्रत्येक व्यक्ति विश्व समाज से जुड़ा माना जायेगा तथा कोई भी व्यवस्था व्यक्ति की प्रवृत्ति प्रदत्त स्वतंत्रता पर उसकी सहमति के बिना कोई अंकुश नहीं लगा सकेगी । हमारी अर्थ व्यवस्था भी विकृत हो गई है । पूंजीवाद पूरी तरह श्रम शोषण का सिद्धान्त है । स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिये । आप भले ही किसी की कोई मदद न करें किन्तु अर्थ व्यवस्था को श्रम शोषण सहायक नहीं होना चाहिये । इसके समाधान के रूप में कृत्रिम ऊर्जा की भारी मूल्य वृद्धि कर देनी चाहिये जिससे श्रम शोषण नियंत्रित हो सके । लोकतंत्र के तीन आधार न्यायपालिका, कार्यपालिका तथा विधायिका के साथ साथ स्वतंत्र अर्थपालिका का भी स्वरूप बनाना चाहिये । इन चारों को पूरी तरह स्वतंत्र तथा एक दूसरे पर नियंत्रण और सहयोग की भूमिका में होना चाहिये । विधायिका तथा कार्यपालिका का वर्तमान स्वरूप दूषित है । इन दोनों को बिल्कुल अलग-अलग होना चाहिये । हम लोगो ने प्रमुख समस्याएं और उनके समाधान पर व्यापक चर्चा की किन्तु हमारा उद्देश्य यहीं तक सीमित नहीं है । आज मैं इस विषय पर यह चर्चा करूंगा कि इस संबंध में हम आप व्यक्तिगत रूप से क्या कर सकते हैं । दुनियां में कोई भी दो व्यक्ति पूरी तरह समान नहीं होते । सब में शारीरिक, बौद्धिक, मानसिक, भौतिक, आर्थिक तथा अन्य अनेक प्रकार की असमानताएं होती ही हैं । अतः सबकी क्षमता अलग-अलग होने से सबकी सक्रियता समान नहीं हो सकती । भगवान राम से भी बन्दरों ने काम पूछा तो राम ने कहा कि हमारा लक्ष्य पुल बनाना है । आप अपनी-अपनी क्षमता का आँकलन करके सक्रिय हो जाओ । मैं गिलहरी को नलनील और नलनील को गिलहरी की भूमिका की सलाह कैसे दूँ । वर्तमान समय में भी हर व्यक्ति मार्गदर्शक, रक्षक, पालक, सेवक की क्षमता और प्रवृत्ति में बंटा हुआ है । कुछ लोग बुद्धि प्रधान हैं तो कुछ भावना प्रधान । कुछ लोग हिन्दू-मुसलमान इसाई में बंटे हुये हैं तो कुछ कांग्रेस-भाजपा समाजवादी में । कुछ लोग निहायत गरीब हैं तो कुछ बड़े पूंजीपति । कुछ बालक या पालक हैं तो कुछ अनुभवी वृद्ध । कुछ लोग परिवार के मुखिया हैं तो कुछ मुखिया के निर्देश पर काम करने वाले । सबकी अलग अलग परिस्थितियां हैं इसलिये हम तो सिर्फ लक्ष्य ही बता सकते हैं मार्ग सब लोग अपना अपना तय करें ।
यह समाज देवासुर संग्राम में लिप्त है । हमारा लक्ष्य है देवी प्रवृत्ति को मजबूत करना और आसुरी प्रवृत्ति को कमजोर करना । हमारे प्रयत्न में कुछ बाधाएं भी दूर करनी होंगी तथा कुछ सक्रियता भी बढ़ानी होगी । कुछ ऐसे कार्य हैं जिनसे आप दूरी बनाइये जब तक कोई स्वार्थ या मजबूरी न हो तब तक उन कार्यों में आपकी सक्रियता घातक है । हमें साम्यवादियों से पूरी तरह तथा मुसलमानों से संबंध बनाने में सतर्कता रखनी चाहिये । यदि आप साम्यवादी हैं तो छोड़ दीजिये । यदि आप मुसलमान हैं तो धार्मिकता तक सीमित रहिये । संगठन से दूरी बनाइये और शुक्रवार को दोपहर की नमाज मस्जिद छोड़कर पढ़े तो अच्छा है । आप मार्गदर्शक, रक्षक, पालक, सेवक जो भी हैं तो अपनी सीमा बनाइये । मार्गदर्शक को सत्ता और धन का प्रयत्न नहीं करना चाहिये तो रक्षक को मार्गदर्शक सरीखा सर्वोच्च सम्मान तथा धन का लोभ छोड़ देना चाहिये । वर्ग निर्माण और वर्ग सशक्तिकरण तो बिल्कुल ही जहर के समान है । किसी भी संगठन से अधिकतम दूरी बनाइये । हिन्दू राष्ट्र हिन्दू सशक्तिकरण की आवाज भी घातक है । सावरकरवादियों से दूर रहना ठीक है । जो गरीब-अमीरों की और जो अमीर-गरीबों की आलोचना करें उनसे दूर रहिये । जो महिलाएं महिला सशक्तिकरण की बात करें उनका बहिष्कार करिये । जो पुरूष महिलाओं को समान अधिकार न देना चाहें उनसे भी दूरी बनाइये । युवा-वृद्ध की चर्चा बन्द करिये । परिवार एक सम्पूर्ण व्यवस्था है । जो लोग क्षेत्रीयता और भाषा के नाम पर द्वेष फैलाते हैं उनसे दूरी बनाइयें । भाषा को संस्कृति के साथ मत जोड़िये । किसान, व्यापारी जैसे पृथकतावादी शब्दों से दूरी बनाइये । हर व्यक्ति उत्पादक है और हर व्यक्ति उपभोक्ता । न कोई पूरी तरह किसान है न व्यापारी । शराफत छोड़िये समझदारी से काम लीजिये । बिना विचारे किसी तरह का चन्दा या दान मत दीजिये । समाज सेवा के नाम पर अपनी सक्रियता कम कर दीजिये । राष्ट्र भक्ति राष्ट्र प्रेम जैसे शब्दों से भी बचिये । किसी भी प्रकार की हिंसा से दूरी बनाइये । जो लोग हिंसा के समर्थक हैं उनसे अलग रहिये । व्यवस्था में लगे लोगों का सम्मान करिये । गलत कानूनों से बचने की कोशिश कर सकते हैं किन्तु तोड़ना ठीक नहीं है । कानूनों में सुधार की मांग कर सकते हैं । कभी भीड़ का भाग मत बनिये । वोट देने को सामाजिक कर्तव्य मत मानिये । आप किसी का समर्थन या विरोध करना हो तो वोट दीजिये अन्यथा यदि कोई स्वार्थ या मजबूरी हो तब वोट दीजिये अन्यथा अनावश्यक अव्यवस्था का समर्थन करना अनावश्यक है ।
कुछ कार्य ऐसे भी हैं जो आपको करने चाहियें । परिवार व्यवस्था की पहली इकाई है । परिवार व्यवस्था को संशोधित करके उसे मजबूत करिये । राज्य व्यवस्था से किसी प्रकार की सुविधा की मांग न करके स्वतंत्रता की मांग करिये । खर्च कम करिये तथा उत्पादन अधिक करिये । अपने परिवार को आत्मनिर्भर तथा सक्षम बनाइये । परिवार को व्यक्ति समूह की भावना से दूर होकर टीम भावना की ओर विकसित करिये । दीर्घ कालिक समाधान के रूप में व्यक्ति के स्वभाव में स्वार्थ और हिंसा के कम करने का मार्ग खोजिये तथा संविधान संशोधन से तंत्र की भूमिका और हस्तक्षेप कम हो यही एकमात्र मार्ग है । अल्पकालिक मार्ग के रूप में हम व्यवस्था में सुधार की आवाज उठा सकते हैं । तात्कालिक मार्ग के रूप में आप शराफत छोड़कर अपनी समझदारी को बढ़ाने का लगातार प्रयास जारी रखिये । समझदारी ही वर्तमान सभी समस्याओं से बचाव के रूप में रामबाण औषधि है । आप सुनिये सबकी और करिये मन की । बिना विचारे किसी की भी बात आंख मूंदकर मत मानिये ।
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