राजनीति ने साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया: GT 447

राजनीति ने साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया:

            दो दिनों में ही कर्नाटक में दो घटनाएं एक साथ घटी। एक शहर में एक मुसलमान नौजवान ने एक हिंदू लड़की को उसके साथ विवाह के लिए तैयार न होने के कारण मार-मार कर उसकी हत्या कर दी। दूसरी घटना में एक मुसलमान लड़के ने कर्नाटक के ही एक शहर में एक हिंदू लड़की को मुसलमान बनाने के लिए जोर-जबरदस्ती की। यहाँ यह गंभीर प्रश्न खड़ा होता है कि भारत में मुसलमानों की कुल आबादी 20% से भी कम है और हिंदुओं की आबादी 75% से भी ज्यादा है। भारत में इस प्रकार हिंदू लड़कियों को अपनी पत्नी बनाने के नाम पर हत्याएं करने या उनका धर्म परिवर्तन के लिए जोर-जबरदस्ती और दबाव डालने का प्रतिशत 80 के आसपास है। जबकि हिंदुओं में ऐसी घटनाएं 7% ही मिलती हैं। एक गंभीर प्रश्न खड़ा होता है कि मुसलमान की आबादी 20% और इस तरह के अंतर धार्मिक संबंधों का प्रतिशत 80 है दूसरी और हिंदुओं का प्रतिशत 5-7 है तो यह प्रश्न सिर्फ युवकों का नहीं है। यह मुस्लिम संस्कृति पर प्रश्न लगता है कि उनके बच्चों के द्वारा हिंसा, संख्या विस्तार और पत्नी बनाने के प्रयत्न के बीच इस्लाम का क्या संबंध है? उन्हें कहां से इस तरह की शिक्षा मिलती है? इस संबंध में यदि आप गंभीरता से सोचेंगे तो बचपन से ही माता-पिता से उन्हें तीनों प्रकार की शिक्षाएं मिलती हैं जब वह बच्चा 7-8 वर्ष का होकर मदरसे में जाता है तो मदरसे की शिक्षा भी उसे उसी प्रकार की मिलती है। मुसलमान धर्म का अर्थ संख्या विस्तार से समझता है, वहीं हिंदू धर्म का अर्थ अपने व्यक्तिगत आचरण से समझता है, यह इन दोनों संस्कृतियों का फर्क है। इसके साथ-साथ मुसलमानों में इस प्रकार की उच्च भावना के विकास में कांग्रेस पार्टी की भी भूमिका रही है। नेहरू परिवार शुरू से ही मुसलमानों को विशेष सुविधा, विशेष दर्जा, विशेष महत्व देने का प्रयत्न करता रहा है। इस प्रयत्न के परिणाम स्वरूप मुसलमान युवको में एक विशेष सुरक्षा का भाव जागृत हुआ। यदि अब हम इस समस्या का समाधान करना चाहते हैं तो हमें एक तरफ तो मुसलमान के अंदर यह भाव लाना पड़ेगा कि वह संख्या विस्तार को बिल्कुल महत्व मत दें दूसरा नेहरू परिवार को इस बात के लिए तैयार करना पड़ेगा कि अब हिंदू और मुसलमान का भेदभाव छोड़कर सबको समान व्यक्ति के रूप में देखा जाए। सांप्रदायिकता नेहरू के मरने के साथ ही समाप्त हो जानी चाहिए थी लेकिन नेहरू के वंशज आज तक इस सांप्रदायिकता के सहारे अपना राजनीतिक वर्चस्व कायम रखना चाहते हैं। यह राहुल गांधी के लिए भी अच्छा नहीं है, मुसलमान के लिए भी अच्छा नहीं है। कर्नाटक की जो घटनाएं हुई है वह सारे देश का वातावरण सिद्ध करते हैं और साथ-साथ यह भी बताती हैं कि जिस तरह नई सरकार में कश्मीर शांत हुआ, गुजरात शांत हुआ, उत्तर प्रदेश शांत हुआ और यदि कर्नाटक नहीं मानेगा तो धीरे-धीरे वह भी शांत हो जाएगा। मुसलमानों को यह संदेश साफ-साफ समझना चाहिए।