संपत्ति और शक्ति के एकत्रीकरण पर दोहरा रवैया क्यों ? GT 447

संपत्ति और शक्ति के एकत्रीकरण पर दोहरा रवैया क्यों ?

            भारत में आमतौर पर इस बात की सक्रिय चर्चा होती रही है कि भारत के एक प्रतिशत पूंजीपतियों के पास 40% तक संपत्ति केंद्रित है। भारत का हर वामपंथी और कम्युनिस्ट तो इस बात को दिन-रात उछालता ही रहता है। लेकिन आज तक किसी कम्युनिस्ट ने यह चर्चा नहीं की कि भारत की 90% स्वतंत्रता एक प्रतिशत राजनेताओं के हाथों में केंद्रित है। भारत की आम जनता को जो 10% स्वतंत्रता है उसमें भी आर्थिक स्वतंत्रता ही मुख्य है। यह 90% राजनेता और उनके समर्थक लगातार यह 10% स्वतंत्र अर्थव्यवस्था भी विभिन्न तरीकों से सत्ता के पास केंद्रित देखना चाहते हैं। मुझे यह समझ में नहीं आता कि जो लोग 40% अर्थव्यवस्था एक प्रतिशत आबादी के पास होने की शिकायत करते हैं, वही लोग कभी भी यह बात नहीं करते की एक प्रतिशत राजनेताओं के पास 90% तक सामाजिक शक्ति इकट्ठी हो गई है। यह संविधान में बदलाव कर सकते हैं, यह कानून में बदलाव कर सकते हैं, यह किसी भी व्यक्ति को फांसी पर चढ़ा सकते हैं, किसी भी व्यक्ति को देशद्रोही और देशभक्त घोषित कर सकते हैं। यह हमारे खाने-पीने पर भी प्रतिबंध लगा सकते हैं, यह हमारी संतान उत्पत्ति पर भी नियंत्रण कर सकते हैं। यह राजनेता और न्यायपालिका के लोग मिलकर हमें अप्रत्यक्ष रूप से गुलाम बनाकर रखते हैं और इन नेताओं और न्यायपालिका के चमचे हमारे बीच में हमेशा यह फैलाते रहते हैं कि आर्थिक असमानता समाज की सबसे अधिक घातक समस्या है। सबसे पहले इस बात को गांधी ने समझा था और राजनीतिक सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात की थी लेकिन गांधी की बात को अनसुनी करके हमारे कम्युनिस्ट नेताओं ने लगातार इसके विपरीत विचार प्रस्तुत किया। आज भी हम देख रहे हैं कि राहुल गांधी लगातार इस साम्यवादी विचारधारा की ओर बढ़ रहे हैं। जिसमें आर्थिक स्वतंत्रता भी राजनैतिक सत्ता के पास केंद्रित होने की बात कही जा रही है। लोगों पर और अधिक टैक्स बढ़ा दिए जाएं और वह बढ़ा हुआ टैक्स अल्पसंख्यकों को, सरकारी कर्मचारियों को राजनेताओं में बांट दिया जाए। राहुल गांधी लगातार यह बात कह रहे हैं कि हम नौकरी देंगे, सरकारी कर्मचारियों की संख्या बढ़ाएंगे। इन सरकारी नौकरों को अधिक से अधिक सुविधा देंगे, बहुसंख्यको पर नियंत्रण किया जाएगा, अल्पसंख्यकों को प्रोत्साहित किया जाएगा। आज तक राहुल गांधी ने कभी यह नहीं कहा कि सरकारी विभाग कम किए जाएंगे। सरकार और जनता के बीच सत्ता का जो समीकरण है वह समीकरण बदल जाएगा। यह बात बोलते हुए राहुल गांधी को कष्ट होता है। अपने नाम के आगे गांधी शब्द जोड़ते हुए हमारे नेताओं को शर्म नहीं आती जब वह राजनीतिक सत्ता को ज्यादा से ज्यादा मजबूत बनाने का प्रयास करते रहते हैं। मैं इस बात का पूरी तरह पक्षधर हूँ कि सारे अधिकार परिवारों को दे दिए जाएं, गांव को दे दिए जाएं, सरकारों का हस्तक्षेप कम से कम हो। बाजार पूरी तरह स्वतंत्र हो अर्थव्यवस्था पर सरकार का किसी प्रकार का कोई अंकुश ना हो। वर्तमान चुनाव इस बात का अवसर देते हैं कि हम राजनीतिक सत्ता के विकेंद्रीकरण विरोधियों को किसी भी प्रकार से शक्तिशाली न होने दें। नए-नए टैक्स बढ़ाए जाएंगे, अल्पसंख्यकों को विशेष सुविधा दी जाएगी, आरक्षण बढ़ाया जाएगा सरकारी कर्मचारियों को और अधिक राहत दी जाएगी। इस प्रकार की कपटपूर्ण बात करने वालों का सामाजिक बहिष्कार कीजिए।