संविधान के नाम पर ललकारते भ्रष्ट नेता: क्या यही है भ्रष्टाचार का असली संरक्षण?
संविधान के नाम पर ललकारते भ्रष्ट नेता: क्या यही है भ्रष्टाचार का असली संरक्षण?
कल छत्तीसगढ़ के निवर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मंच से ललकारते हुए कहा कि "मैं किसी से डरने वाला नहीं हूं", जबकि उनके पुत्र को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भेजा जा चुका है और स्वयं वे भी उसी दिशा में बढ़ रहे हैं। इसी प्रकार, राहुल गांधी भी कहते हैं कि "मैं किसी से डरने वाला नहीं हूं", जबकि उनके जीजा भी कानूनी शिकंजे में फंसे हुए हैं। इससे पहले अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, लालू प्रसाद यादव, हेमंत सोरेन सहित अनेक नेताओं ने भी यही चुनौतीपूर्ण भाषा दोहराई है—"हम किसी से डरने वाले नहीं हैं।" यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, और उसने भी यह दावा किया कि उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
आख़िर ये सभी लोग इतने साहस और खुलेपन से यह क्यों कह पा रहे हैं कि “हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता”, जबकि उनके भ्रष्टाचार की कहानियां जगजाहिर हैं? ये लोग किसी एक मंच पर भी यह कहने की स्थिति में नहीं हैं कि उन्होंने कोई भ्रष्टाचार नहीं किया। फिर भी ये सीना ठोंककर कहते हैं कि वे डरते नहीं हैं।
गंभीर चिंतन के बाद यह समझ आता है कि इन सभी भ्रष्टाचारियों को शक्ति, संरक्षण और आत्मविश्वास देने वाला तंत्र भारत का संविधान बन चुका है। जब तक ये नेता, न्यायाधीश और अधिकारी अंबेडकर के संविधान की आड़ में अपने अपराधों को ढकने में सफल हो रहे हैं, तब तक उनके विरुद्ध सशक्त कार्रवाई असंभव सी लगती है।
वे जेल भी जाते हैं, लेकिन फिर बाहर आकर वही पद और प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेते हैं। ऐसा लगता है जैसे उनके पास संविधान का निजी संरक्षण हो, जो उन्हें किसी भी कानूनी या नैतिक जवाबदेही से मुक्त कर देता है।
अब समय आ गया है कि इन लोगों की जेबों से संविधान को बाहर निकाला जाए—संविधान को इन भ्रष्ट हाथों से मुक्त कर उसे वास्तविक न्यायप्रिय और नैतिक उद्देश्यों के लिए पुनः समर्पित किया जाए। जब तक संविधान इन भ्रष्ट लोगों के पक्ष में खड़ा है, तब तक भारत को एक ईमानदार और भ्रष्टाचारमुक्त राष्ट्र बनाना संभव नहीं होगा।
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