राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेतृत्व में वैचारिक संतुलन और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में कार्य कर रहे थे।

 

स्वतंत्रता के बाद भारत ने अंग्रेजी शासन से मुक्ति तो पा ली, किंतु नेहरू के नेतृत्व में देश एक नई वैचारिक गुलामी की ओर बढ़ गया—एक ऐसी मानसिकता की ओर, जिसमें बहुसंख्यक हिंदुओं को धीरे-धीरे द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना दिया गया। उस समय, जब राष्ट्र के सांस्कृतिक आत्मविश्वास को योजनाबद्ध ढंग से दबाया जा रहा था, तब आर्य समाज से जुड़े हमारे जैसे लोग, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेतृत्व में वैचारिक संतुलन और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में कार्य कर रहे थे। इस वैचारिक संघर्ष के साथ-साथ यदि कुछ साथी सावरकर, भगत सिंह या अन्य क्रांतिकारियों के मार्ग पर चलते थे, तो हमारे बीच कोई मतभेद नहीं था, क्योंकि उद्देश्य एक ही था — भारत को हर प्रकार की मानसिक और सांस्कृतिक गुलामी से मुक्त करना। मार्ग भिन्न हो सकते हैं, लेकिन लक्ष्य एक था।

इसी संदर्भ में, मालेगांव जैसी घटनाओं को लेकर हमारे विचार सदैव यह रहे हैं कि जब उद्देश्य राष्ट्र की रक्षा हो, तो भावनात्मक प्रतिक्रिया से पहले व्यापक वैचारिक दृष्टिकोण आवश्यक है। हम उस घटना का विरोध इसलिए नहीं कर पाए क्योंकि उस समय तक हम एक गहरे वैचारिक संघर्ष से गुजर रहे थे। आज परिस्थितियाँ बदल रही हैं। नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत जैसे नेतृत्व के कारण भारत इस्लामी वर्चस्व की छाया से धीरे-धीरे बाहर निकल रहा है।

हालाँकि, हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि नेहरूवादी मानसिकता का पूरी तरह अंत अभी नहीं हुआ है। विपक्षी दलों और कुछ बौद्धिक वर्गों में अब भी वही सोच विद्यमान है, जो कभी भारत की आत्मा को दबाने का प्रयास करती थी। ऐसे में हमारा वर्तमान संघर्ष इस मानसिकता से है, न कि किसी एक व्यक्ति या समुदाय से।

मालेगांव के अभियुक्तों की रिहाई का हम स्वागत करते हैं, लेकिन यह भी अपेक्षा करते हैं कि वे अब भविष्य में राष्ट्र के साथ खड़े हों — उस वैचारिक संतुलनवादी हिंदुत्व के साथ, जो संघ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आगे बढ़ रहा है। वर्तमान भारत में, जब हम आत्मविश्वास से भरे हैं और इस्लामी कट्टरता से मुक्त हो रहे हैं, तब किसी भी प्रकार की धार्मिक हिंसा को स्थान नहीं दिया जा सकता — चाहे वह हिंदुत्व के नाम पर ही क्यों न हो।

जो कोई भी कानून हाथ में लेगा, वह राष्ट्र और हिंदुत्व दोनों की छवि को क्षति पहुँचाएगा, और उसे दंड मिलना ही चाहिए। यह बात हमारे सभी साथियों को भलीभाँति समझ लेनी चाहिए कि अब भारत किसी भी प्रकार की धार्मिक उग्रता या अराजकता को सहन नहीं करेगा।

आज हमें हिंदुत्व की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि उसके वैश्विक विस्तार के लिए प्रयास करना है। अब हिंदुत्व को परिभाषित करने का समय आ गया है — एक ऐसा हिंदुत्व जो संतुलन, शांति, और समरसता के मूल्यों पर आधारित हो। इसलिए हम स्पष्ट रूप से यह कह देना चाहते हैं कि हम हिंदुत्व के नाम पर किसी भी प्रकार की हिंसा को स्वीकार नहीं करेंगे।