नई समाज और राज्य व्यवस्था
नई समाज और राज्य व्यवस्था
10 जुलाई, प्रातःकालीन सत्र
नई समाज व्यवस्था में राष्ट्र और राज्य को अलग-अलग इकाइयों के रूप में परिभाषित किया जाएगा। राज्य को देश कहा जाएगा, और प्रत्येक देश की अपनी एक सरकार होगी। इस सरकार को यह अधिकार होगा कि वह किसी भी व्यक्ति को उचित दंड दे सके। दूसरी ओर राष्ट्र की कोई सरकार नहीं होगी, बल्कि एक सामाजिक व्यवस्था होगी। राष्ट्र को सभी की सहमति से सामाजिक नियम और व्यवस्थाएँ बनाने का अधिकार होगा, लेकिन वह दंड देने में सक्षम नहीं होगा।
पूरी दुनिया में राष्ट्र और राज्य अलग-अलग होंगे। मेरा मानना है कि प्रत्येक एक करोड़ की आबादी पर एक देश होना चाहिए। वर्तमान में विश्व की आबादी लगभग 730 करोड़ है, जिसके आधार पर विश्व में लगभग 730 देश होने चाहिए। इन सभी देशों का एक संयुक्त संघ बनाया जा सकता है। कुछ देशों में एक से अधिक राष्ट्र हो सकते हैं, और कुछ राष्ट्रों में एक से अधिक देश हो सकते हैं।
भारत की वर्तमान जनसंख्या के आधार पर यहाँ लगभग 140 देश बन सकते हैं। इन 140 देशों की संयुक्त सभा में प्रत्येक की अपनी विशिष्ट भूमिका होगी। इस प्रकार, हमारी सामाजिक व्यवस्था और प्रशासनिक व्यवस्था का ढाँचा पूर्णतः अलग होगा।
संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था को सामाजिक व्यवस्था कहा जा सकता है, क्योंकि यह 730 करोड़ व्यक्तियों के समाज का एकीकृत स्वरूप होगा। संयुक्त राष्ट्र संघ सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करेगा, जबकि संयुक्त राज्य संघ प्रशासनिक व्यवस्था का निर्माण करेगा। इन दोनों के समन्वय से विश्व में एक आदर्श व्यवस्था स्थापित होगी।
यदि संयुक्त राष्ट्र और संयुक्त राज्य के बीच कोई टकराव उत्पन्न होता है, तो विश्व स्तर पर जनमत संग्रह आयोजित किया जाएगा। इस जनमत संग्रह के माध्यम से टकराव का समाधान किया जाएगा।
Comments