वर्तमान भारत सरकार की 11 वर्षों की यात्रा: एक विचारशील समीक्षा

 

 

वर्तमान भारत सरकार की 11 वर्षों की यात्रा: एक विचारशील समीक्षा

वर्तमान भारत सरकार को कार्य करते हुए लगभग 11 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस कालखंड की समीक्षा करते समय यह स्पष्ट होता है कि इन वर्षों में भारतीय राजनीति और सत्ता के केंद्र में दो प्रमुख व्यक्तित्व निरंतर सक्रिय रहे—एक ओर श्री नरेंद्र मोदी, जिन्होंने राजनीतिक नेतृत्व संभाला, और दूसरी ओर श्री मोहन भागवत, जिन्होंने सामाजिक जीवन की दिशा निर्धारित की। दोनों भले ही अलग-अलग संस्थानों से संबंधित हों, लेकिन राष्ट्र निर्माण की दिशा में उनके बीच एक गहरा सामंजस्य और सहयोग दिखाई देता है।

इन वर्षों में सरकार ने कई ऐतिहासिक उपलब्धियाँ अर्जित की हैं और अनेक जटिल समस्याओं का समाधान किया है, जिनका उद्भव पूर्ववर्ती सरकारों की नीतियों से हुआ था या जिन्हें उन्होंने अनदेखा कर और भी गंभीर बना दिया था। हिंदू-मुस्लिम संबंधों की बात करें तो विगत वर्षों में इसमें सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिला है। मुस्लिम समाज में पहले की तुलना में अधिक स्वीकार्यता और मुख्यधारा में शामिल होने की प्रवृत्ति उभरी है। मुस्लिम सांप्रदायिकता की कट्टर धारा का मनोबल टूटा है और राष्ट्रहित में समरसता बढ़ी है।

इसी प्रकार, नक्सलवाद, जो लंबे समय से आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती बना हुआ था, अब लगभग समाप्ति के कगार पर है। यह माना जा सकता है कि निकट भविष्य में यह समस्या पूर्णतः इतिहास का विषय बन जाएगी। भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष में भी सरकार ने निर्णायक कदम उठाए हैं। अब पहली बार यह देखा जा रहा है कि बड़े अधिकारी और राजनेता, जो कभी कानून से ऊपर समझे जाते थे, अब न्यायिक प्रक्रिया का सामना कर रहे हैं। इससे यह संकेत गया है कि भ्रष्टाचार किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। एक अन्य उल्लेखनीय परिवर्तन न्यायपालिका और उच्च प्रशासनिक पदों पर हुआ है। पहले जिन स्थानों पर वामपंथी विचारधारा का प्रभुत्व था, वहां अब धीरे-धीरे राष्ट्रवादी और देशभक्त विचारों से जुड़े योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति हो रही है। महाराष्ट्र में हाल ही में एक अधिवक्ता, जो संघ विचारधारा से जुड़े हैं, को उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया — यह परिवर्तन दर्शाता है कि अब संस्थानों की प्रकृति बदल रही है और चयन का आधार योग्यता तथा राष्ट्रनिष्ठा बनता जा रहा है।

यह परिवर्तन स्वाभाविक रूप से कुछ विपक्षी दलों को असहज कर रहा है, जो पूर्व में इन संस्थानों पर वैचारिक एकाधिकार के आदी रहे हैं। किंतु यह समझना आवश्यक है कि राष्ट्र निर्माण के लिए विचारधारात्मक संतुलन और ईमानदार नेतृत्व की आवश्यकता है, न कि एकपक्षीय वर्चस्व की। इन उपलब्धियों के बावजूद कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें अभी और कार्य किया जाना आवश्यक है। समाज में गुंडागर्दी अब भी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में इस दिशा में ठोस प्रगति हुई है, लेकिन देश के अन्य भागों में अभी भी इसी प्रकार की दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। जातिवाद एक गंभीर सामाजिक चुनौती बना हुआ है, जो समाज की एकता को बाधित कर रहा है। इसके साथ-साथ, महिला-पुरुष संबंधों में बढ़ता टकराव भी चिंताजनक है और इस दिशा में ठोस नीति निर्माण की आवश्यकता है। अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में भारत ने वैश्विक स्तर पर तेजी से प्रगति की है, लेकिन आर्थिक विषमता—अमीर और गरीब के बीच की खाई—अब भी बनी हुई है। सामाजिक समरसता तभी संभव होगी जब आर्थिक विकास समावेशी हो।

इन सभी चुनौतियों के बावजूद यह आशा की जा सकती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और श्री मोहन भागवत के नेतृत्व में, जो ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और राष्ट्र के प्रति समर्पण का परिचायक है, इन समस्याओं का समाधान भी शीघ्र ही संभव होगा।

यह भारतीय इतिहास में एक विलक्षण समय है, जब देश के शीर्ष नेतृत्व में सच्चाई और स्पष्टता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है। दोनों नेता—न तो झूठे वादे कर रहे हैं और न ही जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं। यह स्थिति भारतीय लोकतंत्र के लिए अत्यंत सकारात्मक संकेत है।

मुझे संतोष है कि ये दोनों नेता गांधीजी के मूल सिद्धांतों—सत्य, सेवा और राष्ट्रहित—की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। यह उनके आलोचकों—चाहे वे कथित गांधीवादी हों या सावरकरवादी—के लिए निराशा का कारण अवश्य हो सकता है, किंतु राष्ट्र के लिए यह गर्व का विषय है।