माँ संस्थान अब स्वामी दयानंद, विवेकानंद, गांधी, श्रीराम शर्मा आदि महापुरुषों के अधूरे प्रयासों को पूर्ण करने की दिशा में अग्रसर है।
संशोधित संस्करण:
हम आज प्रातः से नई समाज व्यवस्था पर चिंतन कर रहे हैं। हमारी समग्र व्यवस्था सदैव समाज और राज्य — दोनों के संतुलन पर आधारित रही है। किंतु समय के साथ समाज व्यवस्था में कुछ बुराइयाँ उत्पन्न हो गईं। हम समाज में विद्वानों का उचित सम्मान नहीं कर सके, या फिर विद्वान स्वयं चिंतन से विमुख हो गए — जो भी कारण रहा हो, परिणामस्वरूप समाज में विकृति आने लगी और वर्ण व्यवस्था धीरे-धीरे जाति व्यवस्था तथा रूढ़ियों में बदल गई।
समाज की इस कमजोरी का राज्य व्यवस्था ने लाभ उठाया। धीरे-धीरे राज्य व्यवस्था ने समाज व्यवस्था को पूरी तरह समाप्त कर दी और सारी शक्तियाँ अपने हाथ में केंद्रित कर लीं।
इस असंतुलन को दूर करने का प्रयास स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य आदि महापुरुषों ने किया, किंतु राज्य व्यवस्था ने उनके प्रयासों को कमजोर कर दिया।
अब हम सबने मिलकर इस समस्या के समाधान का संकल्प लिया है। हमारा उद्देश्य है —एक ओर राज्य व्यवस्था के समाज व्यवस्था में अनावश्यक हस्तक्षेप को कम करना, और दूसरी ओर समाज व्यवस्था को पुनः सशक्त बनाना।
इसके लिए हम एक संविधान सभा का गठन कर रहे हैं, ताकि संविधान संशोधन का अधिकार राज्य से हटकर समाज के हाथों में आ सके। साथ ही, एक विचार सभा भी बनाई जा रही है, जो समाज व्यवस्था में आई कमजोरियों को दूर करने का कार्य करेगी।
इसके अतिरिक्त, हम परिवार व्यवस्था में उत्पन्न विकृतियों को भी सुधारने का संकल्प ले रहे हैं। इस प्रकार, इन तीनों दिशाओं — समाज, राज्य और परिवार — में एक साथ कार्य करते हुए माँ संस्थान अब स्वामी दयानंद, विवेकानंद, गांधी, श्रीराम शर्मा आदि महापुरुषों के अधूरे प्रयासों को पूर्ण करने की दिशा में अग्रसर है।
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