समस्या कौन ? इस्लाम या मुसलमान
कुछ निश्चित सिद्धान्त है।
1- प्राचीन समय मे धर्म व्यक्तिगत होता था कर्तब्य के साथ जुडा होता था । वर्तमान समय मे धर्म संगठन के साथ भी जुडकर विकृत हो गया है।
2- हिन्दू विचार धारा धर्म की वास्तविक परिभाषा से जुडी हुई है जबकि संघ परिवार साम्यवाद और इस्लाम संगठनात्मक परिभाषा से ।
3- हिन्दू बहुमत गुण प्रधान धर्म को महत्व देता है तो मुसलमान बहुमत संगठन प्रधान धर्म को।
4- दुनियां मे दो प्रकार के व्यक्ति होते है। 1 प्रेरक 2 प्रेरित। आम तौर पर प्रेरक संचालक होते है और प्रेरित संचालित।
5- दुनियां मे कुल मिलाकर जितने अपराध धर्म के नाम पर होते है उससे कई गुना कम अपराध वास्तविक अपराधियो द्वारा ।
6- धर्म की आदर्श परिभाषा संख्या विस्तार मे बाधक होती है और संगठन प्रधान परिभाषा बहुत लाभदायक।
7- गुण प्रधान धर्म राज्य की विचार धारा को प्रभावित करने तक सीमित रहता है जबकि संगठन प्रधान धर्म राज्य की सभी गतिविधियो पर सहभागिता करना चाहता है। मुसलमान इस मामले मे सबसे अधिक सक्रिय रहता है।
8- गुण प्रधान धर्म व्यक्ति के मौलिक अधिकार मानता है संगठन प्रधान धर्म मौलिक अधिकार को अमान्य करके व्यक्ति को सामाजिक अधिकार तक सीमित करता है।
9- संगठित इस्लाम संख्या वृद्धि के लिये सब प्रकार के साधनो का उपयोग करना धर्म समझता है चाहे साधन नैतिक हो या अनैतिक । दुनियां के अन्य धर्मो की तुलना मे मुसलमान इसे पहला दायित्व समझता है।
प्राचीन समय मे गुण प्रधान धर्म को ही एक मात्र मान्यता प्राप्त थी। इस्लाम ने इस मान्यता को बदलकर उसमे संगठन प्रधानता का समावेश कर दिया जो धीरे धीरे बढकर अब मुख्य आधार बन चुका है। इस्लाम का जो समूह जितना अधिक संगठित है वह उतनी ही अधिक तेज गति से विस्तार कर रहा है। यह संगठित समूह सबसे पहले राज्य पर नियंत्रण करने का प्रयास करता है। इन समूहो मे वर्तमान समय मे सुन्नी समुदाय सबसे आगे है जबकि सुफी गुण प्रधान होने के कारण सबसे कमजोर।
गुण प्रधान इस्लाम 5 शिक्षाओ को ज्यादा महत्व देता है। एकेश्वर वाद, रोजा, नमाज, जकात, हज। संगठन प्रधान इस्लाम संख्या विस्तार बहु विवाह राज्य व्यवस्था पर अंकुश तथा हिंसा पर अधिक विश्वास करता है। गुण प्रधान इस्लाम भिन्न विचार धाराओ का भी सम्मान करता हैं तो संगठन प्रधान इस्लाम किसी अन्य के अस्तित्व को ही स्वीकृति नही देता। गुण प्रधान सहजीवन को महत्व देता है। संगठन प्रधान इस्लाम एकला चलो की नीति पर विश्वास करता है।
यदि हम संगठन प्रधान धर्म की उत्पत्ति पर विचार करे तो वह किसी व्यक्ति तथा किसी ग्रंथ पर अंतिम विश्वास के साथ शुरू होती है। धीरे धीरे संगठन विस्तार करता है और जब निरंतर विस्तार करता रहता है तब कुछ सौ वर्षो मे वह संगठन संप्रदाय का स्वरूप ग्रहण कर लेता है। जब संप्रदाय भी कुछ सौ वर्षो तक बढता जाता है तब वह धीरे धीरे अपने को धर्म कहने लग जाता है। इस्लाम के साथ भी यही हुआ और अन्य संगठन प्रधान धर्मो के साथ भी। धीरे धीरे जैन बौद्ध और सिख भी विस्तार के साथ साथ धर्म बनते चले गये। आर्य समाज धर्म बनने मे पिछड गया तो संघ परिवार निरंतर विस्तार पर है। संगठन सफलता की सीढिया चढकर अपने को धर्म घोषित कर देता है जबकि वर्तमान समय मे हिन्दुत्व को छोडकर कोइ्र भी अन्य अपने को धर्म कहने का हकदार नही है क्योकि अन्य एक महापूरूष तथा एक ग्रन्थ को अंतिम सत्य मानते है और दूूसरो के अस्तित्व नही मानते जबकि हिन्दू इसके ठीक विपरीत है। इस तरह कहा जा सकता है कि हिन्दुत्व जीवन पद्धति है संगठन नही। हिन्दू संगठनो का समूह कहा जा सकता है ।
वर्तमान समय मे इस्लाम संगठन शक्ति के आधार पर जितनी तेज गति से आगे बढा उतनी ही तेज गति से बदनाम भी हुआ। मुसलमान और उसका एक मात्र धर्म ग्रन्थ कुरान प्रेरक है तो मुसलमान प्रेरित । कुरान मे ही गुण प्रधान धर्म की शिक्षाओ का भी विस्तृत विवरण है तो कुरान मे ही संगठन प्रधान धर्म को भी पूरी मान्यता दी गई है। मुसलमान जिस दिशा मे जाना चाहता है उस दिशा मे जाने की पूरी शिक्षाए कुरान मे उपलंब्ध है। मुसलमान आम तौर पर भावना प्रधान होता है, प्रेरित होता है, धर्म भीरू होता है और इमानदार होता है। मुसलमान संगठनात्मक विस्तार के लिये जो भी हिंसा और अपराध करता है उसकी प्रेरणा भी उसे कुरान से ही प्राप्त होती है। इसका अर्थ हुआ कि दुनियां मे मुसलमना यदि एक गंभीर समस्या के रूप मे स्थापित हो रहा है तो उसका कारण धर्म ग्रंथ कुरान है और उसके प्रमुख धर्म गुरू कुरान के उस खतरनाक अंश को मुसलमानो तक ज्यादा प्रयास करके पहुचाते है। कुरान मे चार शादी करने को अच्छा नही माना गया है। इसका अर्थ हुआ कि मुसलमान यदि चार से अधिक शादी करता है तब वह पतित होगा चार से कम मे नही। यदि कोई सरकार यह नियम बना ले कि उसके देश का मुसलमान एक से अधिक विवाह नही करेगा तो मुल्ले मौलवी इसे धर्म के विरूद्ध प्रचारित करते है क्योकि यह संख्या विस्तार के विरूद्ध जाता है जबकि कुरान ऐसा नही कहता। गोमांस भक्षण भी मुसलमान के लिये आवश्यक नही है। इस तरह अनेक ऐसे मामले है जो संगठन प्रधान इस्लाम के लिये प्रतिष्ठा का प्रश्न बन जाते है और उस प्रतिष्ठा के लिये कही न कही कुरान की आयते खोज ली जाती है जिस पर सभी मुसलमानो की गहरी आस्था है।
समस्या बहुत जटिल है क्योकि मुसलमान प्रेरित है और इस्लाम प्रेरक । प्रेरक कभी अपराध नही करता क्योकि प्रेरक तो सिर्फ प्रेरणा देने तक सीमित रहता है। प्रत्यक्ष क्रिया मे उसकी कोई भूमिका नही होती। स्वाभाविक है कि ऐसी स्थिति मे दुनियां के निशाने पर मुसलमान ही होते है जो अपने धर्म गुरूओ और धर्म ग्रंथो की प्रेरणा से प्रभावित होकर समस्याए पैदा करते है। जबकि वास्तविक दोष धर्म ग्रंथो और धर्म गुरूओ का होता है। समाज के पास इसका कोई विकल्प नही दिखता क्योकि धर्म ग्रंथ मुसलमानो के लिये अंतिम सत्य है और वह उससे भिन्न कोई आचरण नही कर सकता । दुसरी ओर धर्म ग्रंथो मे किसी प्रकार का बदलाव संभव नही है। इसलिये समाधान बहुत सोच समझकर योजना बद्ध तरीके से करना होगा। मुसलमानो को धीरे धीरे व्यवहार के माध्यम से समझा बुझा कर धार्मिक दिशा मे मोडना होगा जिससे वे अपने संगठनात्मक ढाचे से दूरी बनावे । दूसरी ओर संगठनात्मक इस्लाम के साथ कुछ कठोर व्यवहार उचित होगा । वर्तमान समय मे संघ परिवार ने राष्टीय मुस्लिम मंच के नाम से जो नई पहल शुरू की है उसे और अधिक विस्तार दिये जाने की आवश्यकता हैं। यह पहल मुसलमानो के सहजीवन के साथ जुडने की प्रेरणा देगी। इस पहल से मुसलमान संगठन प्रधान इस्लाम से कुछ दुरी बना सकेगा और भारत दुनियां की इस खतरनाक प्रवृत्ति को बचने की पहल कर सकेगा। मेरा ऐसा मत है कि इस समय विशेष परिस्थिति मानकर तथा सब प्रकार के भेद भाव भूलकर राष्टीय मुस्लिम मंच का तेजी से विस्तार करना चाहिये।
Comments