राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिन्दुत्व की समस्या या समाधान

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिन्दुत्व की समस्या या समाधान

दवा और टाॅनिक मे अलग अलग परिणाम भी होते है तथा उपयोग भी। दवा किसी बीमारी की स्थिति में अल्पकाल के लिए उपयोग की जाती है जबकि टाॅनिक स्वास्थवर्धक होता है और लम्बे समय तक प्रयोग किया जा सकता है। टाॅनिक के दुष्परिणाम नहीं होते जबकि दवा के दुष्परिणाम भी संभव हैं। दवा किसी अनुभवी डाॅक्टर की सलाह से ही ली जाती है जबकि टाॅनिक कभी भी उपयोग किया जा सकता है। यदि दवा निश्चित बीमारी पर नियंत्रण के बाद भी उपयोग की जाये तो गंभीर दुष्परिणाम भी हो सकते हैं। बताया जाता है कि सीमित मात्रा में शराब दवा का काम भी करती है किन्तु आदत पडने के बाद बहुत गंभीर नुकसान पहुंचाती है । इसलिए टाॅनिक को दवा और दवा को टाॅनिक के समान उपयोग करना हानिकारक होता है।


भारतीय संस्कृति विचारप्रधान, इस्लामिक संस्कृति संगठन प्रधान,पाश्चात्य संस्कृति धन प्रधान और साम्यवादी संस्कृति उच्श्रंृखलता प्रधान मानी जाती है। संगठन में शक्ति होती है और धन में आकर्षण होता है। इसलिए भारतीय संस्कृति लम्बे समय तक इस्लामिक संस्कृति और पाश्चात्य विचारधारा की गुलाम रही। स्वतंत्रता के बाद जब स्वतंत्र भी हुई तो साम्यवादी संस्कृति ने उसको जकडना शुरु कर दिया। ऐसे संकटकाल में संघ परिवार ने अपनी हिन्दुत्व की मूल विचारधारा से हटकर इन तीनों संस्कृतियों का उनके ही तरीकों से मुकाबला किया। उनमें भी इस्लामिक संस्कृति ज्यादा संगठित थी और संघ परिवार ने उसे ही अपना प्रथम शत्रु घोषित किया। स्पष्ट है कि संघ ने इस्लामिक विस्तारवाद का भरपूर विरोध किया जो आज भी जारी है। संघ ने हिन्दुओं की घटती संख्या की निरंतर चिंता की। सांस्कृतिक आधार पर भी संघ परम्परागत मान्यताओं के साथ लगातार दृढ़ रहा जबकि पाश्चात्य जगत और साम्यवाद परम्पराओं को किसी भी परिस्थिति में तोडकर उसे आधुनिक वातावरण में बदलने का प्रयास करते रहे। परिवार व्यवस्था में भी संघ परम्पराओ के साथ मजबूती से डटा रहा जबकि स्वतंत्रता के बाद अन्य सबने मिलकर परिवारों को छिन्न भिन्न करने के लिए आधुनिकता का कुचक्र रचा। राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर भी संघ पूरी ताकत से सक्रिय रहा जबकि इस्लाम और साम्यवाद पूरी तरह राष्ट्रीय सुरक्षा को कमजोर करने का प्रयास करते रहे। नैतिकता और चरित्र के मामले में भी संघ की अपनी एक अलग पहचान बनी हुई है। आज भी हम देख रहे है कि लव जेहाद,धर्म परिवर्तन या जनसंख्या वृद्धि को आधार बनाकर मुस्लिम साम्यवादी गठजोड़ का मुकाबला करने में संघ निरंतर सक्रिय है। जे एन यू संस्कृति से संघ निरंतर टकरा रहा है। यहाॅ तक कि कई प्रदेशो में संघ के कार्यकर्ता प्रताडित भी किये जाते है किन्तु संघ अपने हिन्दुओं की सुरक्षा के कार्य में कोई कमजोरी नहीं दिखाता। अपने विस्तार के लिए संघ प्रेम,सेवा, सद्भाव का भी सहारा लेता रहा है। यदि कोई अकास्मिक दुर्घटना हो जाती है तो संघ बिना भेदभाव के भी सेवा करने को आगे आ जाता है। इस तरह कहा जा सकता है कि हिन्दुत्व को गंभीर रुप से प्रभावित करने वाली बीमारियों से टकराने में संघ अकेला सबसे आगे रहा है।
पिछले कुछ समय से ऐसा दिख रहा है कि संघ हिन्दु समाज में दवा को टाॅनिक के रुप में उपयोग करने की आदत डाल रहा है। मोदी के पूर्व भारत में हिन्दुओं को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाकर रखा गया। स्पष्ट है कि भारत में यदि मुसलमानों की संख्या एक तिहाई भी हो जाती तो भारत में हिन्दुओं की स्थिति पाकिस्तान या कष्मीर सरीखे कर दी जाती। किन्तु हिन्दुत्व गुण प्रधान संस्कृति है,संगठन प्रधान नहीं। मजबूत होने की शुरुवात होते ही मोदी से हटकर हिन्दू राष्ट्र का नारा देना हिन्दुत्व के विरुद्ध है। हिन्दुत्व की सुरक्षा के लिए तो विशेष अभियान चलाया जा सकता है किन्तु इस्लामिक तरीके से अपने विस्तार के विषय में सोचना हिन्दुत्व के विरुद्ध है। परिवार व्यवस्था को परम्परागत या आधुनिक की अपेक्षा लोकतांत्रिक दिशा में ले जाना चाहिए। राष्ट्र भावना को भी कभी राष्ट्रवाद की दिशा में नहीं बढना चाहिये क्योकि हिन्दू समाज को राष्ट्र या धर्म से उपर मानता है जो अन्य लोग नहीं मानते। अन्य धर्मावलम्बियों को अपने साथ जोडने की घर वापसी भी उचित नहीं है। इससे अच्छा तो यह होता कि धर्म परिवर्तन कराने पर कानून के द्वारा रोक लगाने की मांग की जाती। मुस्लिम आक्रामकता को कमजोर करने के नाम पर मंदिर,गाय,गंगा जैसे भावनात्मक मुद्दो को किनारे करके समान नागरिक संहिता को अधिक महत्व दिया जाता। संघ भी समान नागरिक संहिता पर जोर देता है और चाहता है समान आचार संहिता जो बहुत घातक है। भारत सवा सौ करोड व्यक्तियों का देश हो और सबको समान अधिकार हो यह समान नागरिक संहिता होती है लेकिन संघ इसके विपरीत चाहता है। संघ धर्म और विज्ञान के बीच भी दूरी बढाना चाहता है, जो ठीक नहीं। धर्म और विज्ञान के बीच समन्वय होना चाहिये। संघ वामपंथ के मुकाबले दक्षिणपंथ की दिषा में चलना चाहता है जबकि उसे अब उत्तरपंथ की दिशा में चलना चाहिए अर्थात् संघ को परम्परा और आधुनिक के बीच यथार्थ का सहारा लेना चाहिये। संघ को भावनाओं की अपेक्षा विचारों को अधिक महत्व देना चाहिए। संघ के प्रारंभ के बाद के सौ वर्षो में भारत वैचारिक धरातल पर निरंतर पिछड रहा है। विवेकानंद के बाद भारत में कोई गंभीर विचारक आगे नहीं आ सका और इस संबंध में संघ ने कभी कुछ नहीं सोचा। संख्या विस्तार की अपेक्षा गुण प्रधानता अधिक महत्वपूर्ण होती है। साम्यवाद ने गुण प्रधानता को छोड दिया जिसके कारण वह समाप्ति की कगार पर है। इस्लाम ने भी संख्या विस्तार और संगठन को एकमात्र लक्ष्य बना लिया। स्पष्ट दिख रहा है कि यदि उसने बदलाव नहीं किया तो उसकी दुर्गति निश्चित है। उचित होगा कि हिन्दुत्व उस प्रकार की भूल न करें। लेकिन संघ इस संबंध में सतर्क नहीं है। हम अब भी यदि सुरक्षात्मक मार्ग पर चलते रहे तो विश्व व्यवस्था में हमारी लाखों वर्षो की पहचान खतरे में पड जायेगी।
हिन्दुत्व की सुरक्षा के लिए हमने दवा के रुप में संघ का सहारा लिया, इसके लिए संघ बधाई का पात्र है। वर्तमान समय में भी भारत में इस्लाम की ओर से ऐसा कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला है कि उन्होने हार मान ली हो। मोदी जी के नेतृत्व में उन्हें सुधार सा समापन में से एक को चुनना होगा और भारत का मुसलमान गंभीरतापूर्वक इस विषय पर विचार भी कर रहा है। किन्तु यह उचित नहीं होगा कि हम भविष्य में भी दवा को टाॅनिक के रुप में उपयोग करने की आदत डाल ले। संघ परिस्थिति अनुसार दवा है और स्वस्थ होने के बाद भी उसका उपयोग स्वास्थ के लिए नुकसान देह है। हिन्दुओं को इतनी सतर्कता अवश्य रखनी चाहिए।


मेरी अपने मित्रों को सलाह है कि वे हिन्दुत्व की सुरक्षा के प्रयत्न में संघ का निरंतर समर्थन सहयोग करें। किन्तु यदि संघ इससे आगे बढकर अन्य संस्कृतियों से बदला लेना चाहता है तो हम ऐसे प्रयत्नों का भरपूर विरोध करें। अब तक नरेन्द्र मोदी की दिशा ठीक दिख रही है और नरेन्द्र मोदी हिन्दुत्व विरोधी अथवा हिन्दुत्व के नाम पर अपना एजेंडा थोपने वाले संघ परिवार के बीच यथार्थवाद की लाईन पर चलते दिख रहे है और किसी भी पक्ष के दबाव में नहीं आ रहे है। हमारा कर्तव्य है कि हम भावनाओं से उपर उठकर हर मामले में हर संगठन के कार्यो की समीक्षा करके ही अपनी सहभागिता की आदत डालें।