सती प्रथा

समाज में कुछ निष्कर्ष प्रचलित हैं-

1 समाज में प्रचलित गलत प्रथायें अथवा परम्पराएं धीरे धीरे समाज द्वारा स्वयं ही लुप्त कर दी जाती हैं । राज्य को इस संबंध में कभी कोई कानून नहीं बनाना चाहिए ।

2 आत्महत्या प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है । राज्य सहित कोई भी अन्य को इस संबंध में कोई कानून नहीं बनाना चाहिए ।

3 राज्य का स्वभाव होता है कि जब वह किसी समस्या का स्वतः समाधान होते देखता है तब वह श्रेय लेने के लिए कोई कानून बनाकर उसके बीच कूद पड़ता है ।

4 भारत में वर्तमान अनेक समस्याएँ अंग्रेजो द्वारा बनाई गई राजनैतिक व्यवस्था की नकल के दुष्परिणाम है ।

                     बहुत प्राचीन समय में एक व्यवस्था के अन्तर्गत युद्ध में भी महिलाओं पर आक्रमण या हत्या सामाजिक अपराध माना जाता था दूसरी ओर युद्ध में पुरुष बड़ी संख्या में मारे जाते थे । परिणाम होता था कि जनसंख्या का अनुपात असंतुलित होकर पुरुषों की संख्या बहुत कम हो जाया करती थी । ऐसी परिस्थिति में स्थानीय स्तर पर कुछ कुरीतियां प्रचलित हो जाती थी जिसे एक बुरा समाधान मान लिया जाता था । ऐसी ही कुरीतियों में बहुविवाह, कन्या भ्रुण हत्या, विधवा विवाह प्रतिबंध, देवदासी प्रथा तथा सती प्रथा को भी माना जाता है । ये प्रथायें सोच समझकर किसी मान्यता प्राप्त व्यवस्थाओं के अन्तर्गत शुरु नहीं की गई किन्तु शुरु हो गई अवश्य । राजपूतों में आमतौर पर सती प्रथा को जौहर के रुप में प्रचलित थी । वैष्य समुदाय मे विशेष रूप से राजस्थान और बंगाल में यह प्रथा कुछ अधिक प्रचलित थी । राजस्थान में इस प्रथा को सामाजिक मान्यता अधिक प्राप्त थी और जोर जबरदस्ती कम, जबकि बंगाल में इस प्रथा में जोर जबरदस्ती का अधिक उल्लेख पाया जाता है ।

           एक सामाजिक विचारक डॉक्टर राममोहन राय ने इस प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाई । राममोहन राय का संबंध बंगाल से अधिक था और बंगाल में ही सती प्रथा में जोर जबरदस्ती भी ज्यादा होती थी इसलिए डॉक्टर राय को सती प्रथा उन्मूलन के लिए देश भर में अधिक समर्थन मिला । ज्यों-ज्यों सती प्रथा के पक्ष में खड़े कटटरपंथियों ने डॉक्टर राय के साथ अत्याचार शुरु किये त्यों-त्यों  डॉक्टर राय का समर्थन भी बढ़ता चला गया । अंग्रेज सरकार भारत की सामाजिक व्यवस्था में हस्तक्षेप के अवसर खोज रही थी और उसे सती प्रथा के नाम पर ऐसा सुअवसर प्राप्त हुआ कि उसने सती प्रथा उन्मूलन कानून बनाकर उसे लागू कर दिया । इस सफलता से प्रोत्साहित होकर डॉक्टर राममोहन राय ने ही बहुविवाह का भी विरोध करना शुरु किया जो बाद में भारतीय कानूनों में शामिल हुआ । मेरे विचार में सती प्रथा कानून अनावश्यक था और अनावश्यक है भी । आत्महत्या किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता है और आत्महत्या के लिए मजबूर करना हत्या के समान अपराध । मैं नहीं समझा कि जब आत्महत्या के लिये भी मजबूर करना गंभीर अपराध था ही तब अलग से कानून बनाने की आवश्यकता क्यों हैं । जो भी व्यक्ति सती प्रथा के समर्थन मे किसी प्रकार की जोर जबरजस्ती करते थे उन पर हत्या का मुकदमा संभव था । 

                  मैंने पढ़ा है कि एक राजा ने प्रतीज्ञा कर ली कि वह सुर्यास्त के पहले एक किले पर कब्जा कर लेगा उसने देखा कि वह कब्जा नहीं कर पा रहा है तब उसने अपने ही क्षेत्र में एक उसी नाम का नकली किला बनवाया और उस किले पर आक्रमण करके अपनी प्रतीज्ञा को पूरी हुआ मान लिया । अंग्रेजो ने सती प्रथा का कानून क्यों बनाया और डॉक्टर राय ने क्यों बनवाया यह मैं नहीं कह सकता। किन्तु स्वतंत्रता के बाद इस कानून का जिस तरह उपयोग किया गया उससे यह बात पूरी तरह स्पष्ट दिखती है । स्वतंत्रता के बाद महिला और पुरुष का अनुपात अपने आप संतुलित होता गया और विधवा विवाह महिला उत्पीड़न, सती प्रथा अथवा बहुविवाह की घटनाए प्राकृतिक रुप से कम होने लगी । शायद ही दस पांच वर्षो में सती प्रथा का कोई उदाहरण मिलता हो । ज्यो-ज्यों सती प्रथा समाज से बाहर होती गई त्यों-त्यों भारत के राजनेताओं ने सती प्रथा कानूनों को अधिक से अधिक कठोर बल्कि कठोरतम करना शुरु कर दिया क्योंकि उददेश्य सती प्रथा को रोकना नहीं था बल्कि एक समाप्त होती प्रथा को समाप्त करने का श्रेय अपने ऊपर लेना था । यदि किसी भी राजनेता से स्वतंत्रता के बाद उसकी बड़ी सफलताओं के दस उदाहरण मांगे जाये तो ऐसे 10 में सती प्रथा उन्मूलन तथा सिर पर मैला ढोने की प्रथा का उल्लेख जरुर करते मिलेंगे । अन्य अनेक गंभीर समस्याए भले ही समाज के समक्ष बढ़ गई हो । समाज में हिंसा के प्रति निरंतर विश्वास बढ़ रहा है । सत्य के प्रति निष्ठा निरंतर घट रही है । किन्तु हमारे नेता सती प्रथा उन्मूलन और सिर पर मैला ढोने वाली प्रथा के उन्मूलन का राग आज भी आलापते मिल जायेंगे ।

                   मेरा यह स्पष्ट मत है कि सती प्रथा न कोई आपराधिक प्रथा थी न ही उसे आपराधिक हस्तक्षेप योग्य प्रथाओं में शामिल करने की आवश्यकता थी । आपराधिक कानून इस प्रथा को कमजोर करने के लिए पर्याप्त थे अर्थात यदि कोई व्यक्ति सती प्रथा के नाम पर भी किसी को बलपूर्वक मरने के लिए मजबूर करता है तो उस पर हत्या का अपराध स्पष्ट रुप से बनता है । यदि अंग्रेजों ने कोई कानून न बनाकर इस कानून का ही सहारा लिया होता तब भी सती प्रथा का दुरुपयोग रुक जाता और सामाजिक व्यवस्था में हस्तक्षेप का कलंक भी नहीं लगता । मैं स्पष्ट कर दॅू कि सती प्रथा एक गलत प्रथा थी और ऐसी गलत प्रथा का दूरुपयोग करके उसे आपराधिक स्वरुप दे दिया गया । जिसके परिणामस्वरुप राजा राम मोहन राय, जो इस्ट इंडिया कम्पनी के लिए बहुत वर्षो तक काम करते रहे, उनके प्रयास से अंग्रेजो को सामाजिक मामलों में हस्तक्षेप का अवसर मिला । अब तो समय आ गया है कि सरकार ऐसे-ऐसे अनावश्यक कानूनों को समाप्त कर दे जो सामाजिक कुरीति निवारण के रुप में बनाये गये थे और अब उनकी समाज में कोई आवश्यकता नहीं हैं ।