गरीबी रेखा

कुछ निश्चित निष्कर्ष प्रचलित हैं ।

1 कोई भी व्यक्ति न गरीब होता है न अमीर । गरीबी और अमीरी सापेक्ष होती है । प्रत्येक व्यक्ति ऊपर वाले की तुलना मे गरीब होता है और नीचे वाले की तुलना मे अमीर ।

2 राज्य का दायित्व सुरक्षा और न्याय तक सीमित होता है अन्य जनकल्याणकारी कार्य राज्य के स्वैच्छिक कर्तव्य होता है ।

3 गरीबी और अमीरी शब्द का अधिक प्रचार वर्ग विद्वेष आने के उददेश्य से अधिक होता है, समाधान के लिये कम ।

  4 हर राजनेता आर्थिक समस्याओ को बहुत बढ़ाचढ़ाकर प्रस्तुत करता है जिससे कि समाज राजनैतिक असमानता के विषय मे कुछ न सोचे ।

5 गरीबो की मदद करना समाज तथा राज्य का कर्तव्य होता है, गरीबो का अधिकार नही ।

            राज्य का दायित्व होता है कि प्रत्येक नागरिक की स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा मे किसी को भी किसी भी परिस्थिति मे किसी तरह की बाधा उत्पन्न न करने दे । किन्तु जो लोग बिल्कुल अक्षम है और किसी भी प्रकार की कोई प्रतिस्पर्धा नही कर सकते उनकी जीवन सुरक्षा के लिये राज्य का कर्तव्य है कि वह उचित प्रबंध करे । मै स्पष्ट कर दूं कि कमजोरो की मदद करना राज्य का कर्तव्य होता है दायित्व नही । राज्य द्वारा किये गये ऐसे प्रबंध को ही गरीबी उन्मूलन कहते है । यह राज्य का स्वैच्छिक कर्तव्य होता है किन्तु राज्य इस कर्तव्य को दायित्व के समान पूरे करता है ।

       पूरी दुनियां मे प्रत्येक व्यक्ति के लिये गरीबी रेखा का एक निश्चित मापदंड बना हुआ है । उसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन कम से कम इतना भोजन अवश्य मिलना चाहिये जिससे उसे 2100 कैलोरी उर्जा मिल सके । भारत मे इस आधार पर गरीबी रेखा  का न्यूनतम मापदंड 30 रूपया प्रति व्यक्ति प्रतिदिन निर्धारित किया गया है । इसका अर्थ हुआ कि यदि किसी व्यक्ति को प्रतिदिन 30 रूपया से कम का भोजन प्राप्त होता हे तो वह मानवीय आधार पर कम है और उसे गरीबी रेखा के नीचे मानना चाहिये । इस आधार पर यदि पूरे भारत का आकलन किया जाये तो करीब पंद्रह करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते है । जिन्हे सरकारी सहायता से पूरा किया जाता है । इसका आकलन इस प्रकार किया गया है कि पांच व्यक्ति के एक परिवार की आय प्रतिदिन 150 रूपया से कम है तो वह गरीबी रेखा के नीचे है क्योकि परिवार मे औसत एक व्यक्ति कमाने वाला माना जाता है ।

         जिस तरह किसी जीवन स्तर से नीचे वाले के लिये गरीबी रेखा बनाई गई है उसी तरह कुछ लोग अमीरी रेखा की भी मांग करते है जो पूरी तरह गलत है । अमीरी रेखा का अर्थ यदि रेखा से उपर वालो से टैक्स वसूलने तक सीमित हो तो इस तरह की कोई रेखा मानी जा सकती हैं जिसके नीचे वाले कर मुक्त और ऊपर वाले करदाता होगे । किन्तु ऐसी कोई अमीरी रेखा नही बनाई जा सकती है जो किसी सीमा से उपर सम्पत्ति पर रोक लगा सके । क्योकि सम्पत्ति  संग्रह प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार होता है । और कोई भी अन्य उसकी स्वतंत्रता मे बाधा नही पहुंचा सकता ।

        समाज मे अनेक लोग ऐसे है जो निरंतर गरीबी रेखा को 30 रूपये से आगे बढ़ाने की मांग करते है । सुनने मे तो यह मांग बहुत आकर्षक दिखती है किन्तु है बहुत घातक । सरकार के पास गरीबी रेखा के नीचे वालो की मदद के लिये कुल मिलाकर जितना धन होता है उक्त धन की मात्रा बढ़ाए बिना गरीबी रेखा का स्तर  नही बढ़ाया जा सकता है । यदि गरीबी रेखा का स्तर 30 रूपये से अधिक कर दिया गया तो जो वास्तविक गरीब है उन्हे प्राप्त सहायता  मे कटौती करनी होगी । इसलिये ऐसी मांग बिल्कुल भी उचित नही है । आज भारत मे 30 रूपये से भी कम मे जीवन यापन करने वाले की संख्या जब करोड़ो मे है तब बिना साधनो के जुटाए इसे 30 रुपये से आगे बढ़ाना बिल्कुल उचित नही है । पूरे देश मे यह बात भी प्रचारित कर दी गई है कि गरीबी रेखा के नीचे वालो का अधिकार है कि वे अपने भरण पोषण के लिये सरकार से सहायता ले सके । इस प्रचार ने बहुत नुकसान किया है । एक प्रकार से छीना झपटी की स्थिति पैदा हो जाती है । न्यायालय भी हस्तक्षेप करना शुरू कर देता है । राजनीति भी सक्रिय हो जाती है । जबकि स्पष्ट है कि कमजोरो की सहायता करना मजबूतो का कर्तव्य होता है कमजोरो का अधिकार नही । फिर भी इसे कमजोरो के अधिकार के रूप मे स्थापित कर दिया गया है । एक बात और विचारणीय है कि गरीबी रेखा का अधिक उचा मापदंड बना देने के बाद उसका श्रम पर भी दुष्प्रभाव पड़ सकता है । इसलिये संतुलन बनाना आवश्यक होगा । 

      मैने गरीबी रेखा पर बहुत विचार किया । 70 वर्षो के शासन काल मे हम भारत के गरीब लोगो को इतना भी आस्वस्त नही कर सके कि उन्हे भरपेट भोजन तो मिलेगा ही । जब भारत चांद पर जा सकता है बड़े-बड़े उद्योग लगाये जा सकते है, तकनीकी आधार पर दुनियां से प्रतिस्पर्धा की जा सकती है, तो कुछ लोगो को गरीबी रेखा से बाहर करना कोई कठिन कार्य नही है । मेरे विचार मे बुद्धिजीवी और पूंजीपति राजनेताओ के साथ मिलकर गरीबी रेखा को इसलिये समाप्त नही करना चाहते कि इसी बहाने दुनियां से भारत को भीख मिलती रहेगी । गरीबी रेखा एक दिन मे समाप्त की जा सकती है । यदि गरीबी रेखा से नीचे वालो को उतनी नगद राशि की प्रतिमाह सहायता कर दी जाय जितनी उन्हे कम हो रही है और पूरा पैसा कृत्रिम उर्जा का मूल्य बढ़ाकर ले लिया जाय तो यह काम कठिन नही । यदि हम गरीबी रेखा को वर्तमान मे 50 रूपया प्रति दिन  प्रतिव्यक्ति निर्धारित कर दे और उक्त सारा धन कृत्रिम उर्जा से टैक्स रूप मे ले ले तो सारी समस्या अपने आप सुलझ सकती है । एक ही   दिन मे भारत गरीबी रेखा के कलंक से मुक्त हो सकता है बल्कि गरीबी रेखा अर्थात 30 रूपया की तुलना मे हम 50 रूपया प्रतिदिन उपलब्ध करा सकते है । मै आज तक नही समझा कि भारत के योजना कार ऐसा करने मे क्यो हिचकते हे । अंत मे मेरा यही सुझाव  है कि गरीबी किसी भी रूप मे भारत की समस्या नही है । बल्कि उसे समस्या बनाकर देख के समक्ष प्रस्तुत किया गया है ।