सिर्फ चिन्तन ही नहीं, क्रिया भी चाहिए - बजरंगलाल अग्रवाल

मैंने अपने जीवन के प्रारंभिक पच्चीस वर्ष सक्रिय राजनीति में खर्च किये। राजनीति के माध्यम से समाज की समस्याओं का समाधान संभव है, ऐसी मेरी मान्यता थी। सन् सतहत्तर में सत्ता में भूमिका मिली और मैं पूरी ईमानदारी से प्रयास करने के बाद भी कुछ नहीं कर सका। किसी प्रकार का कोई परिवर्तन न दिखा, न हुआ। सन् चौरासी में मैंने अपनी पराजय घोषित कर राजनीति से सन्यास लिया और भारत की समस्याओं पर चिन्तन मनन करना शुरू किया। पंद्रह वर्ष तक चिन्तन चला। देश की सभी समस्याओं पर गंभीर विचार मंथन कर भारत की सभी समस्याओं की सूची बनाई गई जो ग्यारह की हुई -1. चोरी, डकैती, लूट 2. बलात्कार 3. मिलावट, कमतौल 4.जालसाजी, धोखा 5. हिंसा, आतंक, भय 6. भ्रष्टाचार 7. चरित्र पतन  8. साम्प्रदायिकता 9. जातीय कटुता 10. आर्थिक असमानता और 11. श्रम शोषण। अनेक समस्याओं को इनसे कम महत्व का माना गया यथा 1. आबादी में वृद्धि 2. पर्यावरण प्रदूषण 3. विदेशी कंपनियों का भारत में प्रवेश 4. बढ़ती बीमारियाँ तथा 5.बाल श्रम आदि। कुछ समस्याओं को पूरी तरह असत्य और भ्रम माना गया। इनमें 1. शिक्षित बेरोजगारी 2. महंगाई 3. दहेज  4. मुद्रा स्फीति का गरीबों पर दुष्प्रभाव व 5. शिक्षा का चरित्र पर प्रभाव आदि शामिल हैं।

 

समस्याओं के वर्गीकरण के साथ-साथ हमने इन समस्याओं के समाधानों पर भी गहन चिन्तन किया। सभी समस्याओं के समाधान के आसान और संभव मार्ग दिखे। कई समस्याएँ तो ऐसी दिखीं जो समस्याओं के समाधान के वर्तमान प्रयत्नों के कारण ही बढ़ रहीं है। जैसे कृत्रिम ऊर्जा की मूल्य वृद्धि रोकने के प्रयत्न आर्थिक असमानता बढ़ाने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इसी तरह यह भी पाया गया कि न्यूनतम श्रम मूल्य वृद्धि के शासकीय प्रयत्न श्रम की मांग भी कम करते हैं और मूल्य भी। ग्यारह समस्याओं के पृथक-पृथक और साधारण समाधान हैं, यदि उस आधार पर संवैधानिक और कानूनी संशोधन किये जावें। हम लोगों ने निष्कर्ष निकाला कि भारत का संविधान पांच मूलभूत प्राथमिकताओं का होना चाहिये- 1. लोक स्वराज्य 2.अपराध मुक्ति 3. आर्थिक असमानता में कमी 4. श्रम मूल्य वृद्धि और 5. समान नागरिक संहिता। भारतीय संविधान के प्रीएम्बुल में भी संशोधन परिवर्तन कर इन पांच प्राथमिकताओं को इसी क्रम से स्थापित कर देना चाहिये।

 

नवंबर निन्यान्नबे को उपरोक्त निष्कर्ष निकालने के बाद चार वर्षों तक रामानुजगंज शहर में उक्त संशोधनो के आधार पर प्रयोग किये गये जो सफल रहे। प्रयोगों के बाद पूरे देश मे पांच वर्षों की सीमा में व्यवस्था परिवर्तन की योजना बनी। व्यवस्था परिवर्तन के लिये निष्कर्ष निकला कि शासन और समाज के बीच बढ़ी हुई तथा निरंतर बढ़ रही दूरी को कम किये बिना ग्यारह में से किसी एक भी समस्या का समाधान संभव नहीं है। आज तो स्थिति यह हो गई है कि व्यवस्था में परिवार व समाज की भूमिका कम से कम होती जा रही है या योजना पूर्वक ऐसा किया जा रहा है और शासन, विशेषकर राजनेताओं की भूमिका अधिक से अधिक होती जा रही है। राजनेताओं की बढ़ती शक्ति और परिवार या समाज की घटती शक्ति, इन ग्यारह समस्याओं के समाधान में सबसे बड़ी बाधा है। इस बाधा को दूर करना ही होगा अर्थात् शासन और समाज के बीच अधिकारों की दूरी कम करना हमारा प्रथम कर्तव्य होगा।

 

इस कार्य के लिये हमने लोक स्वराज्य मंच बनाया, जिसका उद्देश्य है शासन के अधिकार, दायित्व तथा हस्तक्षेप न्यूनतम होने के पक्ष में जनमत जागरण करना किन्तु शासन के अधिकार दायित्व तथा हस्तक्षेप कम हो, व्यवस्था परिवर्तन के लिये इतना ही पर्याप्त नहीं हैं। इसके साथ-साथ समाज में भी जागृति आनी आवश्यक है। हम देख रहे हैं कि समाज में अनेक ऐसी संस्थाएँ सक्रिय हैं जो एक दूसरे के ठीक विपरीत विचार समाज को दे रही है । ऐसे भिन्न विचारों का उपयोग समाज में विचार मंथन के रूप में तो किया जा सकता है किन्तु ये संगठन या संस्थाएँ अपने विचार ऐसे तरीके से प्रस्तुत करते हैं, जैसे पूरे विचार मंथन के बाद यह उनका अन्तिम निष्कर्ष हो। ये संस्थाएँ भिन्न विचार वालो के बीच बैठकर विचार मंथन से तो दूर भागती हैं किन्तु अपने कुछ समर्थकों बीच अपना पांडित्य दिखाती हैं। हमे इस दिशा में भी कुछ करना होगा अर्थात् समाज में विचार मंथन की प्रक्रिया प्रारंभ करनी होगी। इस निमित्त हमने लोक स्वराज्य मंच के साथ-साथ ज्ञान यज्ञ परिवार को भी पुनः और अधिक सक्रिय करने की योजना बनाई है। अब एक ओर तो ज्ञान यज्ञ परिवार विचार मंथन की प्रक्रिया को मजबूत करेगा तो दूसरी ओर लोक स्वराज्य मंच राजनेताओ पर अंकुश लगाने का काम करेगा। दोनों की कार्यप्रणाली तथा संगठन भिन्न-भिन्न होंगे किन्तु दोनों एक दूसरे के पूरक होंगे। लोक स्वराज्य मंच की कार्य प्रणाली राजनैतिक होते हुए भी वह एक अराजनैतिक संगठन होगा। इसका तात्कालिक उद्देश्य राजनैतिक न होकर सिर्फ राजनेताओं के अधिकार, दायित्व तथा हस्तक्षेप कम से कम कराने तक सीमित होगा। ज्ञान यज्ञ परिवार की कार्यप्रणाली पूरी तरह सामाजिक होगी। यह जगह-जगह पर छोटे-छोटे ज्ञान यज्ञ अनुष्ठान कर स्वतंत्र विचार मंथन संगोष्ठी आयोजित करने तक स्वयं को सीमित करेगा। इन गोष्ठिों में विभिन्न विषयों पर बिल्कुल स्वतंत्र विचार मंथन होगा। यदि अन्त में किसी विषय पर सर्व सम्मति न भी बने तब भी समाज में तो कुछ निष्कर्ष निकलेगा ही। इस तरह ज्ञान यज्ञ परिवार के माध्यम से समाज में शक्ति पैदा होगी और लोक स्वराज्य मंच के माध्यम से राजनैतिक स्वच्छंदता पर अंकुश लगेगा। कुल मिलाकर समाज और शासन के बीच की पूरी कम होगी जो ग्यारह समस्याओं के समाधान का मार्ग प्रशस्त करेगी।

 

हमारी पाक्षिक पत्रिका ज्ञानतत्व पिछले बीस वर्षों से चल रही है। ज्ञानतत्व ने हमें बहुत मदद की है। बीच में कभी-कभी कुछ कम अंक भी निकलते रहे हैं। अब अभिषेख जी के आ जाने से ज्ञानतत्व नियमित निकलना शुरू हुआ है। ज्ञान तत्व का डाक पंजीकरण भी हो गया है। अब हमारा प्रयास रहेगा कि ज्ञानतत्व के सभी चौबीस अंक आपको मिलें किन्तु इसके साथ-साथ आपका भी कुछ दायित्व है। पचास रूपये लेकर नये ग्राहकों तक पत्रिका पहुंचे, यह तो है ही किन्तु ज्ञानतत्व में मेरे विचार पढ़कर आप अपने वे विचार अवश्य लिखें, जहाँ आप असहमत हों, अथवा आपके प्रश्न से मेरे विचार और स्पष्ट हो सकते हों। हम ज्ञान तत्व को दो भागों में बांट रहे हैं। पहले का आधा भाग विचार मंथन के उद्देश्य से मेरे द्वारा लिखने का प्रयास होगा और यह भाग पूरी तरह ज्ञान यज्ञ प्रधान होगा। दूसरा भाग विचार प्रसार केन्द्रित होकर अज्ञानी जी द्वारा लिखने का प्रयास होगा और पूरी तरह लोक स्वराज्य प्रधान होगा। हम ऐसा ही प्रचार करेंगे किन्तु परिस्थितिवश कुछ इधर-उधर भी संभव हैं।

 

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