भोपाल गैस कांड
एक बार मै प्रोफेसर दिनेश चतुर्वेदी के साथ सूरजपुर कार से जा रहा था। भारी वर्षा में एक व्यक्ति को कार लग गई और हमें लगा कि व्यक्ति मर गया । चतुर्वेदी जी गाड़ी रोक कर अस्पताल ले जाना चाहते थे और ड्राइवर बिलकुल नही चाहता था। मैने भी ड्राइवर का साथ दिया । चतुर्वेदी जी आज तक कहते है कि रूकना मानवीय था और मै अब भी कहता हूँ कि रूकना अव्यावहारिक था । सूरजपुर पंहुचकर हम लोगों ने पता किया तो पता चला कि मामूली चोट थी।
चतुर्वेदी जी की सोच मानवीय होते हुए भी अव्यावहारिक थी क्योकि नयी जगह पर आपके साथ और गाड़ी के साथ क्या दुर्व्यवहार होगा यह पता नही । यदि पता चले कि आप पैसे वाले है तब तो दुर्व्यवहार और भी ज्यादा होगा । पुलिस और पत्रकार क्या दुर्गति करेंगें यह पता नहीं । समाज का स्थान परजीवी या भीड़ तथा प्राकृतिक न्याय का स्थान कानून लेले तब परिस्थिति अनुसार मानवता की परिभाषाएँ बदलना मजबूरी हो जाया करती है।
युनियन कार्बाइड कंपनी की टंकी से दुर्घटनावश गैस रिसाव के परिणाम स्वरूप पंद्रह हजार बेगुनाह लोग मारे जाते है तथा लाखो यातनाएं भुगत रहे है । कम्पनी के प्रबंध संचालक उस समय अमेरिका मे थे। वे तत्काल भारत आते है। उक्त दुर्घटना के आरोप मे उनकी गिरफ्तारी होती है तथा जब पूरी स्थिति की समीक्षा होती है तब उन्हे गुप्त रूप से पुनः अमेरिका भेजने की व्यवस्था की जाती है । सरकार प्राकृतिक न्याय की जगह भावनात्मक न्याय का नाटक करती है । भावनात्मक न्याय पंद्रह हजार मौतों के लिये एन्डरसन सहित पूरी कंपनी को दंडित करने का पक्षधर है तो प्राकृतिक न्याय इसे दुर्घटना मानकर एंडरसन को औपचारिकता से अधिक अपराधी नहीं मानता । प्राकृतिक न्याय का सिद्धान्त है कि जानबूझकर की गई हत्या, लापरवाही से होने वाली मृत्यु तथा बिना गलती के होने वाली दुर्घटना के बीच फर्क होता है । जानबूझकर की गई हत्या गंभीर अपराध है, लापरवाही पूर्ण मृत्यु गलती है तथा दुर्धटना एक सामूहिक विपत्ति है। तीनो के दायित्व भी अलग अलग होते है और दण्ड भी । भोपाल गैस घटना दुर्घटना थी या लापरवाही यह तो बाद मे पता चलेगा किन्तु यदि यह लापरवाही भी थी तो उसमे या तो कंपनी की थी या कंपनी के कुछ निचले कर्मचारियों की । उसके लिये एन्डरसन कम्पनी के प्रबंधक के रूप में दोषी हो सकते है किन्तु व्यक्तिगत रूप से नहीं हो सकते जिसमे कम्पनी का कोई प्रत्यक्ष अपराध नहीं था। यदि कम्पनी की लापरवाही भी थी तो एन्डरसन का कहाँ कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष अपराध था ? एन्डरसन पर किसी प्रकार का व्यक्तिगत अपराध का आरोप भारतीय कानूनों का दोष है या परजीवियों के भावनात्मक प्रचार का । वास्तव में तो एन्डरसन की व्यक्तिगत रूप से गिरफ्तारी ही प्राकृतिक न्याय का उल्लंधन हैं । किसी रेल दुर्घटना के लिये रेल मंत्री को इसलिये फांसी दे दी जाए कि उक्त दुर्घटना में हजारों व्यक्ति मारे गये, ऐसी मांग अस्वाभाविक तथा बेतुकी होती है। उक्त दुर्घटना में यदि किसी व्यक्ति की लापरवाही है तो आप उसे गिरफ्तार करे, सांकेतिक सजा भी दे-दे किन्तु प्राकृतिक दुर्घटना के लिये उसे गंभीर दण्ड देना अन्याय भी है और अव्यावहारिक भी । मै एक्सीडेन्ट देखकर भी नही रूका यह मेरा अपराध था और पकड़े जाने पर मुझे दण्डित भी होना चाहिये था किन्तु मेरे रूकते ही बिना अपराध मुझ पर विभिन्न धाराएँ लादना या भीड का आक्रमण मेरे साथ अमानवीय भी था अन्याय भी । यदि मुझे पता है कि रूकने और न रूकने का दण्ड और परिणाम अन्याय और अमानवीयता ही है तो बचने का प्रयत्न ही बुद्धिमानी है ।
एन्डरसन भारत आया। उसके जाने के बाद भी उसके साथ लगातार अपराधियों के समान व्यवहार किया गया। सभी सरकारें जानती थी कि वह दोषी नहीं है । कम्पनी मे एक्सीडेन्ट हुआ है जिसका समुचित मुआवजा कंपनी देगी । सरकार ने कम्पनी से पंद्रह सौ करोड़ रूपया मुआवजा ले भी लिया। मरने वालों की संख्या चार हजार से पंद्रह हजार तक की है । मुआवजे के बाद फिर से केस खोलकर उसकी सम्पत्ति जप्त कर ली जाती है जिसके लिये कोर्ट एक अस्पताल का आदेश दे देता है। इन सबके बाद भी उसे मुक्त नही किया जाता क्योकि जिस तरह महिनों का भूखा आदमी ढ़ूस-ढूस कर खाता है उस तरह माना गया कि बडे भाग्य से एक विदेशी कम्पनी मे हादसा हुआ है । जितना निचोड सको उतना निचोड लो जिससे विदेशियों को पता चल सके कि हम चाहें तो उनके साथ किस सीमा तक जा सकतें है । मेरे विचार मे यह सब गलत हैं। हमे चाहिये था कि हम इसे राष्ट्रीय आपदा मानकर भोपाल गैस त्रासदी प्रभावितो की सहायता करते जिसमें कम्पनी का पंद्रह सौ करोड़ भी शामिल होता । लेकिन हम सहायता और पुनर्वास की अपेक्षा व्यक्तिगत दण्ड दिलाने पर ज्यादा जोर देने लगे । हम इस सीमा तक नीचे उतर गये कि हम अपने ही न्यायाधीशो पर अनर्गल आरोप लगाने का कॉम्पटिशन करने लगे। हमारे पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम भी मैदान मे कूद पड़े । यह नहीं सोच रहे कि इसी काल मे वे पांच वर्ष राष्ट्रपति रह चुके है । बाबा रामदेव सबको फांसी देने की मांग कर रहे हैं । नेता और मीडिया कर्मी तो लगातार बोल ही रहे हैं। हर कोई सोच रहा है कि बोलने और लिखने मे वह पीछे न रह जाय । एक से बढ़कर एक जुमले तैयार हो रहे है । अब एन्डरसन के पुतले जलाने शुरू हुए हैं। अपने शहर के नामी गुण्डे के खिलाफ आवाज उठाने से भी डरने वाले अमेरिका मे बैठे एन्डरसन का पुतला जलाने की बहादुरी दिखा रहे है। न्यायाधीश अहमदी की हिम्मत ही नही है कि सच बोल सके । गोपीनाथ मुंडे ने अर्जुन सिंह पर डेढ़ लाख रूपये चंदा लेने के बदले छोड़ने का धिनौना आरोप लगा दिया । सब जानते है कि अर्जुन सिंह जी चूहे खाने के आदी नहीं । आरोप लगाने वालों को उनकी गरिमा का ख्याल रखना चाहिये।
मैंने गंभीरता से विचार किया कि सभी कांग्रेसी चुप क्यो है । नरेन्द्र मोदी ने ललकार कर सोनिया जी को मौत का सौदागर कहा और वे चुप है क्योकि सभी समझ रहे है कि कहीं न कहीं गलती हुई हैं । ये लोग समझ ही नही रहे कि उनका कानून गलत है, वे नहीं। मोदी जी पर जानबूझकर हजारों लोगों को मारने मे सहायता का आरोप है और राजीव गांधी पर एक दुर्घटना में गैर कानूनी तरीके से बचाने का आरोप है । यदि अमेरिका के कहने से भी छोड़ा गया तो क्या गजब हो गया ? क्या मोदी पर लगा आरोप और एन्डरसन का आरोप एक समान है? सोचने की जरूरत हैं।
मुख्य विषय यह है कि या तो सब चुप है या बोलकर अपनी भड़ास निकाल रहे है । लगे हाथ वीरप्पा मोइली ने तो यहा तक कह दिया कि वर्तमान कानूनों को और कड़ा किया जायगा । वीरप्पा जैसे नासमझ ने ही दहेज कानूनों को कठोर बनवाया था । दहेज के नाम पर जितना अन्याय हुआ वह दिख रहा है । अब संशोधन की आवाज उठ रही है कठोर मकान किराया कानून कितनी विसंगति पैदा कर रहा है यह सब जानते है। सब समझते हुए भी सुधार करने मे दिक्कते आ रही है। कानून सोच समझकर बनाने चाहिये। । कानून बनाने में दिमाग लगाना चाहिये दिल नहीं । यदि कानून बनाने मे दिल का प्रयोग हुआ तो विसंगति होनी ही है । विसंगति दूर करिये । अपराध, भूल और दुर्घटना को बिल्कुल अलग करिये । तीनों की गंभीरता अलग-अलग करिये । सब धन बाइस पसेरी का मुहावरा ठीक नहीं । ऐसा मत करिये कि परजीवी लोगों की फौज खड़ी हो जावे ।
यह भी विचारणीय है कि सभी राजनेता एक तरह का क्यों सोचते हैं । मेरे विचार में इसके पीछे उनका राजनैतिक स्वार्थ छिपा है । आठ आधारों पर वर्ग निर्माण वर्ग विद्वेष और वर्ग संघर्ष मजबूत करना इनकी मजबूरी है । गरीब अमीर के बीच वर्ग संघर्ष विस्तार के लिये यह करना ही पड़ता है । गरीबों को प्रत्यक्ष रूप से आंदोलित करते रहना और अमीरों को अप्रत्यक्ष रूप से सहायता देना इस वर्ग संघर्ष की रणनीति है । गरीब हमेशा अमीर के विरूद्ध संघर्षरत रहे और अमीर चुपचाप और अधिक अमीर होता रहे यह सभी राजनेताओं की रणनीति है । यदि कोई एकाध अमीर गलती से फंस जाय तो अधिकतम बेरहमी दिखाने से राजनेताओं की विश्वसनीयता बढ़ती है । एक यूनियन कार्बाइड को पूरी तरह नेस्तनाबूद कर देने से बाकी कम्पनियों को क्या नुकसान या भय होगा ? जब तक गरीब और अमीर के बीच की आर्थिक विषमता कम नहीं होगी तब तक ऐसे प्रयत्न नुकसान ही करने वाले हैं । राजनेताओं को सब पता है किन्तु उनकी नीयत ठीक नहीं है । क्योंकि यदि विषमता कम हुई तो वर्ग संघर्ष को नुकसान होगा और यह राजनेताओं के लिये घातक होगा । संपन्न लोग आज जिस बेरहमी से कमा रहे है उसमें कमी आवे तथा गरीबों को उसका लाभ मिले तब संघर्ष टलेगा । किसी दुर्घटना में अमीर आदमी का सब कुछ छीन लेने से कभी हल नहीं होगा । नेता लोग इसे समझें । और न समझे तो हम समझा दें ।
परजीवी तो हमेशा मक्खी के समान घाव खोजते ही रहते हैं । ऐसी दुर्घटनाओं से लम्बे समय तक लाभ उठाते रहना उनका व्यवसाय है । सुभाष चन्द बोस कब के मर गये । आज तक उस मामले को जिन्दा रखने से कुछ लोगों की तो रोजी-रोटी चलती ही होगी । ऐसे हजारों मामले चल रहे हैं जो अनावश्यक विस्तार पा रहें है । भोपाल गैस दुर्घटना का मामला तो बहुत बड़ा मामला है । पीड़ितों का स्वाभाविक पक्षकार बनकर अपना न्यूशेन्स वैल्यू बढ़ाते जाना भी एक कला है । मानवाधिकार और पर्यावरण संरक्षण के नाम पर तो परजीवियों की अच्छी खासी फौज खड़ी ही दिखती है किन्तु मीडिया भी आजकल इस दिशा में अधिक ही सक्रिय है । एक बड़े अखबार समूह ने तो बाकायदा इसके लिये अभियान ही चला दिया था । अभियान चलाना उनका अधिकार है किन्तु सत्य छिपाकर अभियान चलाना उचित नहीं । एन्डरसन घटना के समय अमेरिका में था । वह किसी के आस्वाशन पर भारत आया और आश्वाशन के आधार पर गया । इसमें आश्वाशन दाता कहाँ दोषी है । भारत सरकार ने बीस वर्ष पूर्व ही कम्पनी से समझौता करके पंद्रह सौ करोड़ रूपये ले लिये और गैस पीड़ितों को बांट दिये । प्रत्येक मृतक को तीन लाख रूपया दिया गया । ये तीन बाते छिपायी क्यों जा रही हैं । मुआवजा पचीस हजार बता कर मीडिया भावनात्मक उबाल पैदा कर रहा है । भाजपा अवसर का लाभ उठा रही है और कांग्रेस बिना गलती के अपराधी के समान चुप है क्योंकि वह सच बोलकर अपना भविष्य नहीं बिगाड़ना चाहती । उसे भी तो भविष्य में टमाटर और प्याज जैसे मुद्दे उछालने पड़ सकते हैं । कई लोग तो दूसरे पक्ष के साथ मिलते भी रहते हैं । समाज में सब तरह के लोग हैं। कुछ वास्तव में दया भाव से काम करते हैं तो कुछ व्यावसायिक रूप से । व्यावसायिक रूप वालों की संख्या अवश्य ही ज्यादा है ।
कानून को साफ करना चाहिये कि किसी भी दुर्घटना में पीड़ित पक्ष की सहायता करना समाज का कर्तव्य है पीड़ित का अधिकार नहीं । यदि किसी के साथ अपराध हो तो पीड़ित का अधिकार बनता है किन्तु दुर्घटना में सहायता समाज के कर्तव्य तक सीमित है । इस प्राकृतिक सिद्धांत का पालन करना चाहिये । हमारे कानून कितने उल्टे-पुल्टे है कि किसी डाकू द्वारा निर्दोश की हत्या करने का मुआवजा पीड़ित का अधिकार नही । किन्तु आग लगने या साँप काटने पर मुआवजा उसका अधिकार है। मोइली जी को संशोधन करना चाहिये । इधर उनका ध्यान नहीं है । भोपाल गैस दुघर्टना पीड़ितों को अब अधिक से अधिक मानवीय सहायता चाहिये । यह हमारा कर्तव्य है । हम यह काम न करके एन्डरसन को फांसी दो के नारे उछाल रहे हैं । यह पीड़ितों की आवश्यकता में शामिल नहीं । हजारों मृतकों की चिता से रोटी सेकने के प्रयत्न ठीक नहीं । समाधान सोचिये । पीड़ितों को राहत की व्यवस्था करिए । उनके दर्द को जगाने से कुछ नहीं होगा ।
मैं जानता हूँ कि इस दिशा में सोचने वाला मैं अकेला दिखता हूँ । बिल्कुल अकेला । फिर भी मैने अपने विचार हिम्मत करके लिखे हैं जिससे इस मुद्दे पर समाज में एक बहस छिड़ सके । यदि ऐसा हुआ तो मैं लेख को उपयोगी समझूंगा ।
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