मंथन क्यों?

भावना और बुद्धि का संतुलन आदर्श स्थिति मानी जाती है। प्रत्येक व्यक्ति के लिये भी यह संतुलन आवश्यक है तथा  समाज के लिये भी। भावना त्याग प्रधान होती है तो बुद्धि ज्ञान प्रधान। भावना की अधिकता मूर्खता की दिशा में ले जाती है तो बुद्धि की अधिकता धूर्तता की ओर। भावना की अधिकता असफलता की ओर ले जाती है तो बुद्धि की अधिकता सफलता की ओर। वर्तमान समय मे यह संतुलन बिगड़ गया है। भावना प्रधान व्यक्तियों की संख्या बढ़ती जा रही है जिसका दुरूपयोग मुट्ठी भर धूर्त कर रहे हैं। भारत में तो यह असंतुलन बहुत ही अधिक हो गया है। पुराने जमाने में भारत विचारो का निर्यात करता था। दुर्भाग्य है कि आज भारत पश्चिम के विचारों की नकल करने को बाध्य है। भारत मे भी हर धूर्त प्रयत्नशील है कि आम लोगो मे भावनाएँ बढ़ती रहें जिससे धूर्तो की दुकानदारी चलती रहे। परिस्थिति चिन्ताजनक है।

         बाबा रामदेव ने योग के माध्यम से दुनिया को शारीरिक व्यायाम की प्रेरणा दी। स्पष्ट है कि बाबा रामदेव के प्रयत्नो ने स्वास्थ की दिशा में पर्याप्त सुधार किया है। दुनिया धीरे-धीरे योग का आयात कर रही है। किन्तु पूरे विश्व मे वर्तमान समय मे बौद्धिक व्यायाम का कोई व्यवस्थित प्रयास नही हो रहा। भावनात्मक विकास की दुकाने तो आपको भारत में भी गली-गली में खुली मिल जायेगी किन्तु बौद्धिक व्यायाम के लिये आपके पास कोई विकल्प नही है जबकि बौद्धिक व्यायाम के अभाव में आम लोग इसी तरह ठगे जाते रहेंगे जैसे आज।

      मैने स्वयं करीब साठ वर्ष पूर्व  सन पचपन में मंथन नाम से बौद्धिक  व्यायाम शुरू  किया था। साठ वर्षो  के प्रयत्नो से प्राप्त परिणामो से मै पूरी तरह संतुष्ट हूँ। मै यह दावा करने की स्थिति में हूँ कि मै अपने जीवन में सामान्यतया कभी आसानी से ठगा नही गया। मेरे परिवार के सदस्यों तथा निकट के मित्रो पर भी ऐसे बौद्धिक व्यायाम का आंशिक परिणाम देखा जा सकता है। मुझे महसूस होता है कि बौद्धिक व्यायाम प्रणाली का विस्तार भी समाज के लिये उतना ही लाभदायक है जितना बाबा रामदेव का शारीरिक व्यायाम। मैं अपने सीमित संसाधनो द्वारा ज्ञानतत्व पाक्षिक के माध्यम से इस व्यायाम को विस्तार देने में सक्रिय रहा। किन्तु अब जिस तरह आधुनिक संचार माध्यमों ने सुविधा प्रदान की है, उस आधार पर मै समझता हूँ कि सोशल मीडिया का लाभ उठाकर बौद्धिक व्यायाम की गति इतनी बढ़ाई जा सकती है कि हम इस व्यायाम की पद्धति का भारत से भी आगे निर्यात कर सके। मैं सन पचपन मे आर्य समाज से जुड़ा। मैंने देखा कि आर्य समाज भी धीरे-धीरे विचार मंथन की दिशा छोड़कर विचार प्रचार की दिशा में बढ़ रहा है जो अप्रत्यक्ष रूप से भावनाओं का ही विस्तार है। मैं आर्य समाज के उपेक्षित स्वरूप ‘‘विचार मंथन‘‘ की दिशा मे बढ़ा। प्रत्येक माह की तीस तारीख को अपने शहर के प्रबुद्ध लोगो की एक खुली बैठक होती थी। इस बैठक का एक पूर्व निश्चित विषय होता था तथा उस विषय पर सब लोग स्वतंत्रता पूर्वक अपने विचार रखते थे।  प्रयत्न किया जाता था कि विपरीत विचारो के लोग उस मंच  पर आकर विपरीत विचार प्रस्तुत  करें। गलत बात बोलने की सबको स्वतंत्रता थी किन्तु भाषा गलत नही होनी चाहिये। मंथन का प्रारंभ किसी आधे घंटे के धार्मिक आयोजन से होता था जिसमे आमतौर पर तो यज्ञ होता था किन्तु किसी मुसलमान या अन्य धर्मावलम्बी के घर मे कार्यक्रम हुआ तो कुरान पाठ या अन्य धार्मिक रूप भी होता था। सबसे महत्वपूर्ण नियम यह था कि उस कार्यक्रम मे कोई निष्कर्ष निकालने पर पूरी तरह रोक थी। कोई प्रस्ताव पारित नही हो सकता था न ही प्रस्ताव पर चर्चा संभव थी। श्रोता अलग-अलग विचार सुनकर स्वतंत्र धारणा बना सकते थे। विषय सब तरह के होते थे, किसी एक तरह के नहीं। मै स्वयं बाद मे जनसंघ से जुड़ गया किन्तु यह मंथन कार्यक्रम घर, जाति, राजनीति, अमीर-गरीब, महिला-पुरूष का कोई भेद नही करता था। कांग्रेसी, जनसंघी, साम्यवादी, हिन्दू,  मुसलमान, बड़े अफसर,  व्यापारी, मजदूर यहां तक हिंसक प्रवृत्ति  के नक्सलवादी भी वहाँ स्वतंत्रता पूर्वक आते थे तथा अपना विचार रखते थे। इस तरह यह कार्यक्रम निरंतर चलता रहा। आज भी मेरे न रहने के बाद भी यह कार्यक्रम चल रहा है।

बौद्धिक व्यायाम के दो प्रमुख लाभ होते है-

(1) व्यक्ति शराफत की तुलना में समझदारी की ओर बढ़ता जाता है। आमतौर पर देखा गया है कि हर धूर्त यह प्रयास करता है कि सामान्य व्यक्ति अधिक से अधिक शराफत की ओर बढ़े,समझदारी की ओर नहीं। क्योंकि समझदारी धूर्त के लिए बहुत बाधक होती है।

(2) बौद्धिक व्यायाम करने वाला किसी अन्य व्यक्ति से जल्दी ठगा नहीं जाता  क्योंकि उसमें बौद्धिक व्यायाम के कारण भावना और बुद्धि का समन्वय होता रहता है। दूसरी बात  यह भी है कि वह किसी अन्य से बिना सोचे प्रभावित नहीं होता क्योंकि उसके अंदर समझदारी बढ़ती  चली जाती है। उपरोक्त दो कारणों से मैं समझता हूँ कि बौद्धिक व्यायाम को बहुत उपयोगी मानने और बनाने की आवश्यकता है। मैं यह भी समझता हूँ कि यदि आप इस योजना से जुडे रहेंगे तो आप जीवन में कभी ठगे नहीं जायेंगे।

           बौद्धिक व्यायाम प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं करना पड़ता है। कोई भी अन्य किसी अन्य के लिए यह व्यायाम नहीं कर सकता। उसी तरह जिस तरह शारीरिक व्यायाम स्वयं करना होता है। हम तो बौद्धिक व्यायाम का मार्गदर्शन कर सकते है। साथ-साथ हम सहायता भी कर सकते है किन्तु करना  तो खुद ही होगा। वर्तमान समय में सोशल मीडिया एक बहुत उपयोगी माध्यम के रुप में सामने आया है। इस माध्यम से हम तत्काल ही विचारों का आदान-प्रदान कर सकते है। यही सोचकर हम लोगो ने भी बौद्धिक व्यायाम के लिए चार माध्यमों का प्रयोग शुरु किया है (1) फेसबुक (2) व्हाट्सअप (3) वेबसाईट (4) पत्रिका। प्रति सप्ताह सोमवार को एक नये विषय की घोषणा की जाती है। अगले रविवार तक उस विषय पर  बौद्धिक व्यायाम से जुड़े साथी जो विचार प्रस्तुत करते है, वह सब विचार रविवार को फेसबुक, व्हाट्सअप, वेबसाईट  मार्गदर्शक डॉट इन्फो पर सभी साथियों को भेज दिया जाता है। उसी दिन एक नये विषय की  घोषणा भी कर दी जाती है। साथ ही अगले एक सप्ताह तक पिछले विषय पर जो प्रश्नोत्तर या विचार  आते है वे भी लगातार सभी सहभागियों को भेज  दिये जाते है। इस तरह एक विषय सात से पन्द्रह दिन  में बंद हो जाता है। यह जो पूरा विचारों का  आदान-प्रदान होता है वह ज्ञानतत्व के माध्यम से  उन सहभागियों  तक भेजा जाता है जो व्हाट्सअप, फेसबुक या वेबसाइट का उपयोग नहीं कर पाते। अगले चरण के रुप में प्रतिमाह एक दिन के  लिए रायपुर में प्रत्यक्ष बैठकर चारों विषयों की स्वतंत्र  शास्त्रार्थ या मंथन की योजना भी है। इस  तरह प्रत्येक विषय पर खुला विचार मंथन आयोजित  हो रहा है। विपरीत विचार वालों को अधिक महत्व दिया जा रहा है। वर्तमान समय में मैं देख रहा हूँ कि अलग-अलग संगठन बनकर अपने कार्यकर्ताओं को एक गिरोह के रुप में विकसित कर रहे है। ये संगठन विचार मंथन होने ही नहीं देते क्योंकि अन्य संगठनों के विचारों से वे अपने  कार्यकर्ताओं की दूरी बनाकर रखने का प्रयास करते  है। हमारे मंथन का उद्देश्य विपरीत विचारों वाले संगठनों के बीच दूरी घटाना भी है। इस तरह मैं आश्वस्त हूँ कि इस प्रयास के बहुत अच्छे परिणाम निकलेंगे। सामाजिक स्तर पर तो लाभ होगा ही किन्तु व्यक्तिगत स्तर पर भी बहुत लाभ होगा।

मंथन कैसे ?

          मैंने लम्बे समय तक बौद्धिक व्यायाम किया है किन्तु मैं यह भी जानता हूँ कि यदि लम्बे समय तक व्यायाम  करने के बाद व्यायाम बंद कर दिया जाये तो गठिया  समेत अनेक बीमारियों की संभावना बन जाती है। ऐसा ही बौद्धिक व्यायाम के साथ भी संभव है। मैं चाहता हूँ कि मेरा व्यायाम भी बंद न हो।  जो लोग मंथन में बहुत कमजोर होते है वे मुझसे प्रश्न करने में हिचकिचाते है । जो लोग बहुत मजबूत होते है वे मंथन में मेरे साथ शामिल  होने में अपना अपमान समझते है। मुझे व्यायाम की जरुरत है। मैं चाहता हूँ कि आप चाहे मजबूत हो या कमजोर आपको इस व्यायाम  के साथ जुड़ना चाहिए। जो विषय घोषित  होता है उस पर आप अपने विस्तृत विचार एक सप्ताह तक  भेज सकते है मैं भी उस विषय पर अपने विचार भेजूंगा। एक सप्ताह तक आये हुये विचारों पर अगले एक सप्ताह तक प्रश्नोत्तर होगा और उसके बाद विषय बंद हो जायेगा। अब तक विचार मंथन के लिए हमारे साथियों की सलाह पर विषयों की सूची बनी है वह अगले ज्ञान तत्व में जायेगी। आप लोगों के और सुझाव आने के बाद अन्य विषय भी जोड़े जा सकते है।

         मैं स्पष्ट कर दूँ कि इस विचार मंथन का उद्देश्य कोई अंतिम निष्कर्ष निकालना नहीं है। वह तो अपने आप निकलता रहेगा। साथ ही आपसे यह भी निवेदन है कि आपको बहुत महत्वपूर्ण उपयोगी साथी मानकर इस मंथन  में जोड़ा गया है। इसमें आप अनावश्यक कुछ लिखकर अपनी क्षमता का तथा मंथन प्रक्रिया का नुकसान न करें। क्योंकि यह एकमात्र मंथन कार्यक्रम है। इसका किसी अन्य उद्देश्य के लिए उपयोग ठीक नहीं। इस कार्यक्रम का किसी भी प्रकार के विचार-प्रचार या कोई निष्कर्ष निकालने से कोई संबंध नहीं है। विपरीत विचारों के लोग खुलकर और स्वतंत्रतापूर्वक किसी मंच पर अपने विचार रख सके इतना ही इसका उद्देश्य है। आपसे मेरी यह अपेक्षा है कि आप कुछ अन्य उपयोगी साथियों के नाम और फोन नंम्बर भी भेज सकते है इस नम्बर पर +917869250001 । जो इस दिशा में उपयोगी हो सकते है। उन्हें भी इस योजना से जोड़ा जायेगा। मुझे  पूरी उम्मीद है कि आप मेरे इस प्रयत्न में सहभागी होंगे ।