वर्ग संघर्ष, एक सुनियोजित षडयंत्र

वर्ग संघर्ष, एक सुनियोजित षड्यंत्र

कुछ स्वयं सिद्ध यथार्थ हैं-
(1) शासन दो प्रकार के होते हैंः-(1) तानाशाही (2) लोकतंत्र। तानाशाही में शासक जनता की दया पर निर्भर नहीं होता इसलिए उसे वर्ग निमार्ण की जरुरत नहीं पडती। तानाशाही में वर्ग संघर्ष होता ही नहीं है। लोकतंत्र में शासक लोक की एकता से भयभीत रहता है इसलिए वह लोक को विभिन्न वर्गो में बांटकर वर्ग संघर्ष बढाता रहता है। लोकतंत्र भी दो प्रकार का है-(1) आदर्श (2) विकृत। भारत विकृत लोकतंत्र की श्रेणी में आता है इसलिए भारत सबसे अधिक वर्ग संघर्ष का सहारा लेता है।
(2) आदर्श स्थिति में वर्ग दो प्रकार के होते हैं-(1) शरीफ (2) अपराधी। विकृत लोकतंत्र में वर्ग दो हो जाते हैं-(1) शासक (2) शासित।
(3) वर्ग संघर्ष के तीन चरण होते हैं- (1) वर्ग निमार्ण (2) वर्ग विद्वेष (3) वर्ग संघर्ष।
(4) यदि किसी भी वर्ग को विशेष अधिकार दिये जाते है तो उस वर्ग के धूर्त शक्तिशाली होते है तथा विपरीत वर्ग के शरीफो का शोषण करते है। इस तरह से सम्पूर्ण समाज में शरीफ कमजोर और धूर्त मजबूत होते जाते है।
(5) कमजोरों की मदद करना मजबूतों का कर्तव्य होता है, कमजोरों का अधिकार नहीं। हर अपराधी और राजनेता अपने स्वार्थ के लिए इसे कमजोरों का अधिकार घोषित करते है।
(6) किसी भी वर्ग में सबकी प्रवृत्ति एक समान नहीं होती। कुछ लोग शरीफ होते है तो कुछ अपराधी या धूर्त।
(7) हर अपराधी वर्ग निर्माण में अपनी सुरक्षा देखता है और हर राजनेता वर्ग निर्माण के माध्यम से समाज को बांटकर अपना खतरा कम करते रहते हैं।
(8) किसी भी वर्ग का परीक्षण किया जाये तो उसका नेतृत्व या विस्तारक या तो कोई अपराधी होता है या नेता।
भारत में आठ आधारों पर वर्ग बने हुये हैं- (1) धर्म (2) जाति (3) भाषा (4) क्षेत्रियता (5) उम्र (6) लिंग (7) गरीब-अमीर (8) उत्पादक-उपभोक्ता। सभी राजनैतिक दल आठों आधारों पर निरंतर वर्ग संघर्ष बढाने का प्रयास कर रहे है। कोई भी राजनैतिक दल इस प्रतिस्पर्धा में किसी से पीछे नहीं है। छः आधारो पर तो समाज को तोडा जा रहा है तो उम्र और लिंग भेद के आधार पर परिवारों को तोडने के प्रयत्न हो रहे हैं। युवा और वृद्ध तथा महिला और पुरुष के बीच वर्ग विद्वेष निरंतर बढाया जा रहा है जिससे परिवार व्यवस्था छिन्न भिन्न हो जाये। अब छः आधारों पर तो स्थिति वर्ग संघर्ष तक चली गई है और दो आधारो पर वर्ग विद्वेष जारी है। अब कुछ नये वर्ग निर्माण भी शुरु हो गये है। इनमें शहर और गांव का नया वर्ग बन रहा है धीरे-धीरे इसे भी वर्ग विद्वेष और वर्ग संघर्ष तक पहुचाया जायेगा।
दुनियां जानती है कि वर्ग संघर्ष के विनाशकारी परिणाम हुये है। दुनियां में जितने अत्याचार और हत्यायें अपराधियों ने नहीं की है उससे कई गुना अधिक धर्म और राष्ट्र के नाम पर हुई है। भारत में भी भाषा और क्षेत्रियता ने अपराधों का रिकार्ड तोड़ा है। स्वतंत्रता के पूर्व ही वर्ग निर्माण ने ही भारत को बहुत पिछे ढकेल रखा था। सवर्ण-अवर्ण का वैमनस्य जग जाहिर है। पाकिस्तान और भारत का विभाजन भी इसी वर्ग विद्वेष का परिणाम रहा है। इन सबको देखते हुए भी हमारे भारत के राजनेता वर्ग संघर्ष को निरंतर बढावा देते रहते है। दिल्ली राजघाट पर सरकार का एक बोर्ड लगा है जिसमें लिखा है ‘‘महिलाओ पर अत्याचार कानूनन अपराध है‘‘। आज तक किसी राष्ट्र भक्त या बुद्धिजीवी ने यह प्रश्न नहीं पूछा कि किसके उपर अत्याचार अपराध नहीं है। यह महिला शब्द लिखने की आवश्यकता ही प्रमाणित करती है कि राजनेताओं की नीयत खराब है। कुछ नेता कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध भी जोरदार आवाज उठाते है। जब बालक भ्रूण हत्या होती ही नही तो कन्या शब्द लिखना क्यों आवश्यक है? यह प्रश्न नहीं उठाते क्योंकि सबका स्वार्थ वर्ग विद्वेष, वर्ग संघर्ष के प्रोत्साहन में छिपा हैं।
हम भारत के विभिन्न राजनैतिक दलों की समीक्षा करें तो सभी राजनैतिक दल पूरी ईमानदारी से आठो प्रकार के वर्ग संघर्ष को प्रोत्साहित करते रहते है। किन्तु उनमें भी कांग्रेस पार्टी शासक और शासित की भावना भारतीय जनता पार्टी, हिन्दू मुसलमान शिवसेना क्षेत्रियता, दक्षिण भारत के दल भाषा तथा वामपंथी दल गरीब अमीर के बीच वर्ग संघर्ष को अधिक प्राथमिकता देते है । जो लोग अमीरी रेखा और गरीबी रेखा की बात करते है वे मध्य रेखा की बात नहीं करते क्योकि मध्य रेखा शब्द में वह वर्ग निर्माण नहीं दिखता जो अमीरी रेखा में दिखता है। कुछ लोग आर्थिक न्याय सामाजिक न्याय की बहुत चर्चा करते है किन्तु उन्हें श्रम के साथ अन्याय, राजनैतिक असमानता का अन्याय नहीं दिखता। उन्हें बुद्धिजीवी पॅूजीपतियों की एकाधिकारवादी अर्थनीति के दुष्परिणाम नहीं दिखते। उन्हें न्याय की मांग करने में बहुत आनंद आता है किन्तु वे कभी व्यवस्था की बात नहीं करते। जबकि न्याय और व्यवस्था के बीच संतुलन आवश्यक है।
वर्ग निर्माण से वर्ग संघर्ष तक भारत के लिये एक बहुत विनाशकारी खतरा है। अपराधियों और राजनेताओं द्वारा इस समस्या को निरंतर बढाया जा रहा है। क्योंकि वर्ग निर्माण ही अपराधियो के लिये सुरक्षा कवच का काम करता है। वर्ग अपराधियो का संगठित ढाल बन जाता है। राजनेताओ को तो इससे पूरा का पूरा लाभ है ही। इसलिये इस समस्या से मुक्त होना हमारी बडी प्राथमिकता है। एक साधारण सा बदलाव करना चाहिये कि कमजोरो की सहायता करना मजबूतो का कर्तब्य है। कमजोरो का अधिकार नही। इसी तरह यह बात भी स्थापित होनी चाहिये कि प्रत्येक व्यक्ति के अधिकार समान है। किसी को किसी भी परिस्थिति में विशेष सुविधा दी जा सकती है विशेष अधिकार नहीं। यह बात भी सुनिश्चित करनी चाहिये कि आर्थिक समस्याओ का आर्थिक तरीके से समाधान तथा सामाजिक समस्याओं का सामाजिक समाधान करे। सिर्फ प्रशासनिक समस्यों का ही प्रशासनिक समाधान करना चाहिये। समान नागरिक संहिता भी एक अच्छा समाधान है। और भी समाधान खोजे जा सकते है।
वर्तमान भारत मे दो मार्ग दिख रहे है-(1) तानाशाही (2) लोकस्वराज्य। भारत वर्तमान में तानाशाही के मार्ग से इस समस्या के समाधान की दिशा में बढ़ रहा है। पिछले तीन वर्षो से मोदी जी के आने के बाद जाति, भाषा, क्षेत्रियता, उम्र, उत्पादक उपभोक्ता, गरीब अमीर, के बीच के वर्ग संघर्ष कम हुये है। महिला और पुरुष के बीच महिला सशक्तिकरण के नाम से वर्ग विद्वेष बढ रहा है। धर्म के नाम से सत्तर वर्षो से चला आ रहा वर्ग संघर्ष विपरीत दिशा में जाता दिख रहा है। परिणाम क्या होगा पता नहीं। किन्तु इतना स्पष्ट दिख रहा है कि वर्ग संघर्ष घटेगा। फिर भी तानाशाही के माध्यम से वर्ग संघर्ष का समाप्त होना एक अस्थायी समाधान भले ही हो किन्तु आदर्श स्थिति नहीं कहीं जा सकती। वर्ग संघर्ष से मुक्त होने के लिए आदर्श मार्ग तो सहभागी लोकतंत्र ही हो सकता है जिसमें समाज के विभिन्न अंग शक्तिशाली हो तथा राज्य की भूमिका बहुत कम हो जाये। संभव है कि नरेन्द्र मोदी इस दिशा में भी अच्छा सोचने का प्रयास करेंगे। अन्यथा समाज व्यवस्था उन्हें इस दिषा में चलने के लिए तैयार कर लेगी। मैं इस गंभीर खतरे के समाधान के प्रति आशान्वित हूँ ।