लोकहित से समझौता - सत्ता प्राप्ति का साधन

लोकहित से समझौता - सत्ता प्राप्ति का साधन

       पिछले दो-तीन महीने से नरेंद्र मोदी पूरी तरह चुनावी मूड में आ गए हैं। इसके पहले नरेंद्र मोदी ने मुफ्त बांटने का विरोध किया था, पहले नरेंद्र मोदी ने जातिवाद का भी विरोध किया था लेकिन वर्तमान समय में नरेंद्र मोदी जातिवाद का भी समर्थन कर रहे हैं और मुफ्त रेवाड़ी का भी समर्थन कर रहे हैं। अब नरेंद्र मोदी ने यह मान लिया है कि चुनाव जीतने के लिए धार्मिक विभाजन और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई यह दो मुद्दे ही कारगर सिद्ध हो सकते हैं। जातिवाद और मुफ्त बांटने को अगर टकराव का भाग बनाया जाएगा तो इसमें भाजपा को नुकसान हो सकता है। पहले भी कांग्रेस पार्टी अपने को धर्मनिरपेक्ष करती थी और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण करती थी वर्तमान समय में कांग्रेस पार्टी अपने को मुसलमान का हिमायती कहती है। कांग्रेस पार्टी पुराने कार्यकाल में जातिवाद का विरोध करती थी और वर्तमान समय में जातिवाद का खुलकर समर्थन कर रही है, तो नरेंद्र मोदी के सामने इस बात का एक संकट आ गया है कि वह जातिवाद का विरोध करके अपने पैरों पर कुल्हाड़ी ना मारे। इसी तरह नरेंद्र मोदी कांग्रेस पार्टी की देखा देखी मुफ्त बांटने का भी समर्थन करने लगे हैं। यह वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों है जिन परिस्थितियों में नरेंद्र मोदी अपनी राजनैतिक चाल बदल रहे हैं। स्पष्ट है कि नरेंद्र मोदी मुस्लिम तुष्टिकरण और भ्रष्टाचार पर चोट को ही चुनावी मुद्दा बनाएंगे जो विपक्ष के लिए परेशानी का कारण बनेगा।

       एक प्रश्न उठता है कि क्या चुनाव के लिए नीतियां बदलना नरेंद्र मोदी के लिए उचित है? क्या चुनाव के लिए इस तरह अपनी नीतियों में बदलाव करना चाहिए? मेरे विचार में वर्तमान समय चुनाव का है चुनाव महत्वपूर्ण है और चुनाव के समय अल्पकाल के लिए नीतियों में बदलाव करना किसी भी दृष्टि से गलत नहीं है। यदि हम अपने सिद्धांतों के कारण चुनाव हार जाते हैं तो यह पूरी तरह गलत होगा क्योंकि विपक्ष पूरी तरह सिद्धांत विहीन तरीके से चुनाव लड़ रहा है। विपक्ष सांप्रदायिकता को भी बढ़ावा दे रहा है, जातिवाद को भी बढ़ावा दे रहा है और लोगों को लोभ लालच में भी डाल रहा है कि लोग सुविधा के नाम पर वोट दे दें। इन परिस्थितियों में सिद्धांतों के साथ अल्पकाल के लिए समझौता करना कुछ भी गलत नहीं है। इसलिए मैं यह मानता हूं कि नरेंद्र मोदी जो कर रहे हैं वह परिस्थितिवश ठीक कर रहे हैं। चुनाव पूरे हो जाने के बाद सिद्धांतों को लागू करने में कोई कठिनाई नहीं आएगी।