आपराधिक कानून में बदलाव की जरूरत GT-438

8.आपराधिक कानून में बदलाव की जरूरतः

मैं लंबे समय से लिखता रहा हूं कि भारत के आपराधिक और न्यायिक कानून बहुत पुराने हो गए हैं और वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार उनमें बड़ा बदलाव करने की आवश्यकता है। मुझे खुशी है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने भारत के आपराधिक कानून में बदलाव का ड्राफ्ट लोकसभा में प्रस्तुत किया है। प्रस्तावित बदलाव पर्याप्त नहीं है किंतु बदलाव की शुरुआत होने से एक उम्मीद बनती है कि भविष्य में इस दिशा में और बदलाव हो सकते हैं। जिस समय यह कानून बने उस समय आमतौर पर लोग सच बोलते थे शायद अपवाद स्वरूप ही कोई न्यायालय में झूठ बोलता था। वर्तमान समय में स्थिति पूरी तरह बदल रही है। न्यायालय में तो कोई सच बोलता ही नहीं है बल्कि अब तो समाज में भी झूठ बोलने वालों की बाढ़ आई हुई है। इस प्रकार का बदलाव होने के कारण कानून में भी व्यापक बदलाव होना आवश्यक है। गंभीर अपराधों में निर्दाेष सिद्ध करने की जिम्मेवारी आरोपी पर होनी चाहिए पुलिस पर नहीं। इसी तरह न्यायालय में पुलिस को अपराध नियंत्रण सहायक के रूप में देखा जाना चाहिए एक पक्षकार के रूप में नहीं। पुलिस जिस व्यक्ति को अपराध सिद्ध घोषित कर देती है उसे न्यायालय में निर्दाेष न मानकर संदिग्ध अपराधी माना जाना चाहिए। बहुत गंभीर मामलों में जिस जिले के लोग अपराधियों के भय से गवाही नहीं देना चाहते वहां आपातकालीन परिस्थितियां घोषित करके गुप्तचर न्याय व्यवस्था शुरू करनी चाहिए। वर्तमान समय में मोदी सरकार ने बदलाव का जो प्रस्ताव दिया है वह अपर्याप्त है फिर भी हम इस प्रस्ताव का स्वागत करते हैं।