इस्राइल हमास युद्ध पर एक नजर: GT-439

इस्राइल हमास युद्ध पर एक नजर:

आज इज़राइल हमास युद्ध की दुनिया भर में चर्चा हो रही है। मैं बचपन से ही लिखता आ रहा हूँ कि इस्लाम दुनिया का सबसे अधिक सांप्रदायिक और खतरनाक संगठन है। सांप्रदायिकता को कभी भी संतुष्ट नहीं किया जा सकता। सांप्रदायिकता का एकमात्र समाधान उसे कुचलना ही है। इसाईयत दुनिया की सबसे अधिक मानवतावादी संस्था है और इसाईयत ही सांप्रदायिकता को कुचलने में सबसे बड़ी बाधा है। हिंदू और यहूदी इस मामले में पूरी तरह संतुलित माने जाते हैं। वर्तमान वातावरण में हिंदू, ईसाई और यहूदी एकजुट होते जा रहे हैं। स्पष्ट है कि बुद्धि और नम्रता एकजुट हो गए हैं और डंडे से मजबूत है। इस युद्ध में हमेशा की तरह बुद्धि और मानवता जीतेगी डंडा कमजोर रहेगा। मैं मानता हूँ कि मुसलमान इस लड़ाई के बाद भी हार मानने वाला नहीं है। इस्लाम को मानने वाला समाप्त भले ही हो जाए लेकिन हार नहीं मानता फिर भी यह बात स्पष्ट है कि सांप्रदायिकता को कुचलने में धीरे- धीरे दुनिया अधिक एकजुट हो रही है।

इस युद्ध को विश्व युद्ध का रूप ग्रहण करने की कोई संभावना नहीं है क्योंकि पहली बात यह है कि भारत ने इस मामले में तत्काल और साफ-साफ स्टैंड लिया है। भारत के कदम में किसी तरह के भ्रम की गुंजाइश नहीं है। दूसरी बात यह है कि साम्यवादी देश भी यह समझ रहे हैं कि युद्ध की शुरुआत इजराइल ने नहीं बल्कि हमास ने की है। हमास ने हीं इजराइल में घुसकर सामान्य लोगों को मारा है तथा बंधक बनाया है। तीसरी बात यह है कि पश्चिमी देश इस युद्ध को मुसलमान और इसाईयत में बदलते हुए नहीं देखना चाहते। पश्चिमी देशों का यह मानना है कि मुसलमान और कम्युनिस्ट को एकजुट करने से खतरा बढ़ सकता है। ईरान बहुत चाहता है की लड़ाई मुस्लिम देशों और इजरायल के बीच हो लेकिन पश्चिमी देश पूरी कोशिश कर रहे हैं कि युद्ध में फिलीस्तीन और हमास को अलग-अलग रखा जाए। एक होना किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं है। इसलिए मेरा यह मत है कि कम्युनिस्ट देश और पश्चिम के इसी देश बहुत सावधान है। मेरे विचार से विश्व युद्ध के कोई लक्षण नहीं दिखते हैं।

लगभग ढाई हजार वर्ष पहले दुनिया में दो ही धर्म माने जाते हैं सनातन और यहूदी दोनों की सोच में भी बहुत समानता थी। दोनों राष्ट्र को धर्म के साथ नहीं जोड़ते थे। यहूदी भी हिंदुओं के समान ही समाज को ऊपर मानते थे। इसलिए यहूदियों ने भी पूरी दुनिया के यहूदियों को यह संदेश दिया था कि जिस भी देश में रहो उस देश के कानून का पालन करो हिंदुओं ने भी यही संदेश दिया था कि कभी धर्म के आधार पर राष्ट्र बनाने की चिंता मत करो अपनी संख्या बढ़ाने की चिंता मत करो लेकिन हिंदुओं में से निकले बौद्ध जिन्होंने संख्या बढ़ाने की चिंता की। यहूदियों में से निकले इसाइ और मुसलमान जिन्होंने संख्या बढ़ाने की चिंता की जिन्होंने अपना राष्ट्र बनाने की चिंता की। वर्तमान समय में इजरायल और हमास का जो युद्ध चल रहा है इस युद्ध में भी अनेक यहूदी ऐसे हैं जो मानते हैं कि इजरायल गलत है क्योंकि यहूदियों को किसी राष्ट्र के लिए नहीं लड़ना चाहिए। जो लोग इजरायल के साथ संघर्ष कर रहे हैं उन्हें जायनाबाद कहकर अनेक यहूदी उनसे अलगाव कर रहे हैं। यहां तक कि इजराइल में भी यहूदी लोग इस संघर्ष के विरुद्ध आंदोलन कर रहे हैं। मैं यहूदियों की इस धारणा को बहुत अच्छा मानता हूं और मुसलमान को पूरी तरह से गलत मानता हूँ। जिन्होंने राष्ट्र को ही धर्म के साथ जोड़कर सारी दुनिया को परेशान कर दिया है। धर्म को कभी भी राज्य के साथ जोड़ने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

मैं हिंदुओं को सबसे अच्छा और उसके बाद ईसाइयों को। ईसाइयों के बाद यहूदियों को और सबसे खराब इस्लाम को मानता हूं। मैंने यह बात कई बार लिखी भी है। मेरे एक मित्र ने मेरे लिखे के उत्तर में यह लिखा की सबसे खराब यहूदी होते हैं क्योंकि यहूदियों ने यीशु मसीह को फांसी दे दी। यहूदियों ने सारी दुनिया को परेशान किया यहूदी जहां भी रहते हैं वहां कभी शांति से नहीं रहते यहां तक कि यहूदियों की बदमाशी के कारण ही हिटलर ने यहूदियों को मार कर भगाया था। मैं हिटलर को अच्छा नहीं मानता। यहूदियों के साथ हिटलर ने अन्याय किया था। मैं अभी तक कहीं नहीं सुना कि यहूदी जहां भी रहते हैं वहां किसी भी प्रकार से हिंसा करते हो बल प्रयोग करते हो या अत्याचार करते हो। यह अवश्य है कि बुद्धि के मामले में यहूदी तेज होते हैं बहुत जल्दी तरक्की करते हैं और इसलिए दूसरे लोगों को कुछ कष्ट होता है। लेकिन यह कोई अत्याचार नहीं है मैं फिर से लिखना चाहता हूं कि जो लोग हिटलर के प्रशंसक हैं वे मेरे विचार से गलत है। मैं अब भी यहूदियों को मुसलमान की तुलना में अधिक शांत समझता हूं।

हम दो दिनों से यहूदी और इस्लाम की चर्चा कर रहे हैं। आज इस चर्चा का समापन होगा। मेरे एक मित्र ने कल मुझे फोन करके बताया कि इसराइलियों के पास कहीं घर नहीं था तो फिलिस्तीनियों ने उन्हें अपने क्षेत्र में शरण दी थी। मैं उनकी बात से सहमत नहीं हूं क्योंकि फिलिस्तीन भी पहले यहूदी ही थे जिस क्षेत्र को फिलिस्तीन अपना बता रहे हैं वह 2000 वर्ष पहले यहूदी क्षेत्र था। उस यहूदी क्षेत्र में फिर मुसलमान आए और मुसलमान ने धीरे-धीरे उसे यहूदी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। बाद में यहूदी लोग पुनः उन क्षेत्रों में आकर के रहने लगे। दूसरी बात मेरे मित्र ने यह कही कि हम सब लोग तो फिलीस्तीन के पक्ष में है क्योंकि फिलीस्तीन को स्वतंत्र होना ही चाहिए। मैं उनसे प्रश्न किया कि फिलीस्तीन पर कोई आक्रमण नहीं हुआ है। फिलिस्तीनियों पर भी कोई आक्रमण नहीं हुआ है आक्रमण हमास पर हुआ है और हमास ने जाकर इसराइल पर पहले आक्रमण किया है इसलिए फिलिस्तीन की लड़ाई है ही नहीं। फिलिस्तीन हमास हिज्बुल्लाह होती इन सबको एक मान लेना फिलिस्तीनियों की बदमाशी है वास्तविकता नहीं। हमास फिलिस्तीनियों का प्रतिनिधित्व नहीं करता बल्कि एक आतंकवादी संगठन है। मेरा फिर से सुझाव है कि हम सब लोग इन सब मुद्दों पर गंभीरता से विचार करें। याद रखिए कि हमास बहुत छोटा सा संगठन है और फिलिस्तीन एक देश है और फिलिस्तीन के साथ कोई लड़ाई नहीं हो रही है।