आदिवासी कानून विकास में बाधक GT-439

आदिवासी कानून विकास में बाधक:

भारत में आदिवासी-गैर आदिवासी की धारणा अंग्रेजी शासन काल में शुरू हुई। अंग्रेज चाहते थे कि भारत में वर्ग निर्माण हो और वह वर्ग संघर्ष में बदल जाए । अंग्रेजों के जाने के बाद भारत सरकार को अंग्रेजों की यह नीति बहुत पसंद आई और उन्होंने अंग्रेजों के जाने के बाद भी आदिवासी गैर आदिवासी की विभाजनकारी नीति को लगातार प्रसारित किया। बल्कि बहुत कुछ मजबूत भी किया लेकिन उसके बहुत दुष्परिणाम हुए हैं। समाज उसके कारण विभाजित हो रहा है धूर्त  आदिवासी लगातार शरीफ गैर आदिवासियों का शोषण कर रहे हैं । उड़ीसा सरकार ने वर्तमान समय में यह महसूस किया कि आदिवासियों की जमीन के संबंध में जो कानून बने हुए हैं वह आदिवासियों को संतोष तो देते हैं लेकिन विकास में बाधक हैं उस पर फिर से विचार करना चाहिए। स्वाभाविक है कि धूर्त आदिवासियों ने इसका विरोध किया और उड़ीसा सरकार ने अभी इस पर अपना विचार स्थगित कर दिया है लेकिन मेरे विचार से कभी ना कभी हम लोगों को इस नीति से पिंड तो छुड़ाना ही पड़ेगा। देश भर के आदिवासियों को यह बात बताई जानी चाहिए कि इस प्रकार के कानून आपके हित में नहीं है। यह कानून आपको संतुष्ट कर सकते हैं लेकिन लाभ नहीं दे सकते। मैं उड़ीसा सरकार को इस कार्य के लिए बधाई देता हूं कि उसने इस विषय पर विचार करने की शुरुआत की।