लोगों ने बैठकर ऐसा अनुपयुक्त संविधान कैसे बना दिया‌।

पूरे भारत में यह प्रश्न लंबे समय से अनुत्तरित है कि हमारे इतने बड़े-बड़े विद्वान बैठकर संविधान बना रहे थे और उन लोगों ने  बैठकर ऐसा अनुपयुक्त संविधान कैसे बना दिया‌। क्या उनकी नीयत खराब थी अथवा उन लोगों ने कुछ भूल की है । क्योंकि इतने स्वतंत्रता संघर्ष में लगे हुए लोगों ने कई वर्ष परिश्रम करके भारत का संविधान तैयार किया। इस विषय पर मैंने बहुत सोचा और मैंने यह पाया कि भारत का संविधान तैयार करने में समाज विज्ञानियों समाज शास्त्रियों या समाज के समझने वाले लोगों की कोई मदद नहीं ली गई। सच बात यह है कि स्वतंत्रता संघर्ष में भी नेतृत्व करने में अधिकांश लोग वकील थे और स्वतंत्रता संघर्ष को आगे बढ़ाने में भी मीडिया कर्मियों का बहुत बड़ा योगदान रहा है । समाचार पत्रों की भूमिका उस कालखंड में बहुत ज्यादा थी यही कारण है कि संविधान बनाने वाली कमेटी में वकीलों और मीडिया के लोगों का वर्चस्व रहा। संविधान बनाने में समाज विज्ञानियों या सामाजिक विचारों की भूमिका बहुत कम रही है यदि थे भी तो उनकी बात सुनी ही नहीं गई । क्योंकि सारी जानकारी की ठेकेदारी तो वकीलों और मीडिया के लोगों ने ले ली थी। गांधी एक बहुत बड़े सामाजिक ज्ञाता थे लेकिन संविधान निर्माण में उनकी किसी प्रकार की कोई भूमिका नहीं रही। यही कारण है कि आज जो संविधान बना है यह संविधान वकीलों और पत्रकारों के लिए स्वर्ग बन गया है । अब संविधान लागू होने से आज तक आप यह अनुभव करेंगे कि वकीलों और पत्रकारों को सब प्रकार की उचित अनुचित सुविधा प्राप्त हैं क्योंकि इन लोगों ने मनमाना संविधान बनाकर अपनी अधिक से अधिक रोजी-रोटी का जुगाड़ कर लिया। इन लोगों ने आंख बंद करके पश्चिम की नकल की। यदि गहराई से विचार किया जाए तो भारत में ब्लैकमेलिंग करने में मीडिया कर्मी सबसे अधिक आगे हैं और कानूनी टकराव का दुरुपयोग करने में भी वकीलों की सबसे अधिक भूमिका होती है क्योंकि दोनों की संविधान निर्माण में बहुत बड़ी भूमिका रही है। अब आवश्यकता इस वर्ष की है कि समाज विज्ञान के जानकार बैठकर इस समस्या का समाधान खोजें। हमें ऐसा संविधान नहीं चाहिए जिस संविधान के माध्यम से हमारा सदियों तक शोषण होता रहे हम संवैधानिक तरीके से ब्लैकमेलिंग के शिकार ना हो सके। संविधान निर्माण में विचारकों की भूमिका सबसे अधिक होनी चाहिए। व्यवसायिक हित चिंतकों को इससे दूर रखा जाए।