भ्रष्टाचार GT 441
13-नेता और अफसर की मिली भगत है भ्रश्टाचार का कारण -
वर्तमान भारत की दो प्रमुख समस्याएं हैं-एक है सांप्रदायिकता और एक है भ्रष्टाचार सांप्रदायिकता पर तो काम साफ दिख रहा है भ्रष्टाचार पर क्या काम हो रहा है यह उतना साफ नहीं दिखता। भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए सबसे सफल उपाय है निजीकरण लेकिन निजीकरण करने की कोशिश हुई तो भारतीय जनता पार्टी के ही अनेक लोगों ने विरोध शुरू कर दिया सरकारी कर्मचारी भी निजीकरण के विरोध में आ गए विपक्ष तो विरोध में था ही मजबूर होकर सरकार ने दूसरा मार्ग पकड़ा की भ्रष्ट लोगों को जेल में डाला जाए। भ्रष्टाचार नेता खुद नहीं करता सरकारी कर्मचारियों से कराता है इसलिए नेता लोगों को पकड़ना उतना आसान नहीं होता. तब अंत में यह निर्णय किया गया कि जब तक राजनीतिक नेता और सरकारी अफसर इन दोनों की मिली भगत पर चोट नहीं होगी तब तक भ्रष्टाचार नहीं रुकेगा. इसलिए भ्रष्टाचार करने वाले बड़े-बड़े अफसर को जेल में डालना शुरू किया गया है। जब से सरकारी अफसर जेल जा रहे हैं तब से भ्रष्टाचार में कमी साफ दिखने लगी है क्योंकि नेता भ्रष्ट अफसर के साथ मिलकर भ्रष्टाचार करता है नेता और अफसर के बीच में अब एक अविश्वास की खाई भी बढ़ रही है। मेरे विचार से भ्रष्टाचार जल्दी ही नियंत्रण में आ जाएगा। वर्तमान सरकार बिल्कुल ठीक दिशा में कार्य कर रही है।
भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा माध्यम सरकारी कर्मचारी होते हैं सरकारी कर्मचारी नेताओं के दबाव में भी भ्रष्टाचार करते हैं और अपने स्वार्थ में भी करते हैं सरकारी कर्मचारी अगर नेताओं के साथ ना जुड़े तो भ्रष्टाचार की संभावना बहुत कम हो जाती है। आज ही आपने देखा कि चंडीगढ़ के चुनाव में जिस प्रकार सरकारी कर्मचारियों को लालच देकर या दबाव बनाकर चुनाव प्रणाली को प्रभावित किया गया वह षर्मनाक उदाहरण है इससे यह स्पष्ट होता है कि सरकारी कर्मचारी और नेताओं की मिली भगत सबसे ज्यादा घातक है। आप आज भी देख रहे होंगे की दिल्ली में महत्वपूर्ण सरकारी कर्मचारियों के हाथ छापे डालकर उनकी जांच कर रही है, नेताओं के यहां जो अफसर गलत कार्य कर रहे थे उनकी जांच हो रही है, छत्तीसगढ़ में भी एक मंत्री के यहां काम करने वाले अफसर पर ईडी ने जांच की और अनेक सुराख पकड़े। इस तरह भ्रष्टाचार को रोकने के लिए यह महत्वपूर्ण माध्यम माना जा रहा है और मुझे यह विश्वास है कि सरकारी कर्मचारी अब नेताओं से डर कर उसे तरह गलत नहीं करेंगे जिस तरह अब तक करते रहे हैं। मैंने देखा है कि किस तरह 30 वर्ष पहले मुझे नक्सलवादी घोषित कराकर बर्बाद करने की सरकारी कर्मचारियों को मिलाकर योजना बनी थी। मैंने जीवन में इस प्रकार के अनेक उदाहरण देखें हैं मुझे उम्मीद है कि इस दिशा में नरेंद्र मोदी सरकार लगातार आगे बढ़ती रहेगी। सरकारी कर्मचारियों को भी मिला मेरी सलाह है कि वह पुरानी मजबूरी से बाहर हूं, उन्हें नेताओं के गलत कार्यों को मानने से इनकार करना चाहिए।
14-सरकारी कर्मचारियों का वेतन हो बाजार के अनुरूप हो -
मेरे एक मित्र सत्य प्रकाश राजपूत जी हैं समाजवादी विचारों के हैं उन्होंने कल मेरे लेख पर कई बार प्रश्न खड़े किए। उनका मानना है कि सरकारी कर्मचारियों का वेतन कम है वे तो अपने बच्चों को भी ठीक से नहीं पढ़ पा रहे हैं। अस्पतालों में उनका इलाज भी ठीक से नहीं हो रहा है यदि सरकारी कर्मचारी ही दुखी रहेंगे तो जनता का क्या हाल होगा।
मैं उनकी इस बात से सहमत नहीं हूं। मेरा मानना है की जनता और सरकार के बीच एक ऐसा रिश्ता है जिसमें जनता को बकरे के समान माना गया है और सरकार मालिक के समान होती है सरकार बकरे को समय पडने पर काटना अपना अधिकार समझती है और उसे काटने के लिए शास्त्र रूप में सरकारी कर्मचारियों का उपयोग करती है इसलिए सरकारी कर्मचारियों को झाड़ पोछकर मजबूती से तैयार रखा जाता है जिससे वह समय पर काम आ सके। भारत में जहां 8 घंटे में मेहनत करने वाले को कोई अधिकार भी प्राप्त नहीं है और बाजार में महीने में ₹8000 के आसपास मिल पाता है वही उसके समान योग्यता के एक सरकारी कर्मचारियों को ₹40000 महीना मिलता है। ऊपर से उसको पावर भी मिलता है उसके साथ-साथ इज्जत भी मिलती है इसके बाद भी हमारे मित्र राजपूत जी सरकारी कर्मचारियों को और अधिक सुविधाएं दिलाना चाहते हैं। मैं उनकी इस मांग से सहमत नहीं हूं सरकारी कर्मचारियों का वेतन टेंडर के आधार पर तय कर दिया जाए कि जो व्यक्ति कम में काम करना चाहेगा उसे ही नौकरी दी जाएगी तो मुझे उम्मीद है कि जितने सरकारी नौकरी पाने के लिए भाग दौड़ है वह भाग दौड़ कम हो जाएगी। मैं यह प्रत्यक्ष देख रहा हूं कि हर आदमी सरकारी नौकरी पाने के लिए भाग दौड़ कर रहा है और हर सरकारी कर्मचारी नेता बनने के लिए भागदौड़ कर रहा है। क्यों न जनता और नेता के संबंधों को बदल दिया जाए जनता को बना दिया जाए मलिक नेताओं को मैनेजर और सरकारी कर्मचारियों को जनता का नौकर यदि ऐसा कर दिया जाए तो यह मारामारी और भाग दौड़ अपने आप खत्म हो जाएगी। मैं सरकारी कर्मचारियों का वेतन बाजार के हिसाब से दिए जाने की मांग करता हूं।
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