व्यवस्था परिवर्तन के संघर्ष में अरविन्द केजरीवाल ने निराश किया : GT - 445
व्यवस्था परिवर्तन के संघर्ष में अरविन्द केजरीवाल ने निराश किया :
मैंने जीवन भर लोक स्वराज्य की दिशा में व्यवस्था परिवर्तन के लिए संघर्ष किया। स्वतंत्रता के बाद मुझे पहली बार इस संघर्ष के लिए अरविंद केजरीवाल में सारी संभावनाएं दिखी थी। मैंने अरविंद केजरीवाल को इस संबंध में बहुत प्रोत्साहित और प्रशिक्षित भी किया। जब मुझे यह अनुभव हुआ कि अरविंद केजरीवाल व्यवस्था परिवर्तन का नाटक करके सत्ता संघर्ष की दिशा में जा रहे हैं तब मैंने अरविंद को सलाह दी थी कि तुम अन्ना का साथ छोड़ दो क्योंकि अन्ना हजारे बहुत सज्जन व्यक्ति हैं और उन्हें धोखा देना बहुत घातक होगा। अरविंद ने मेरी बात मान ली। बाद में मैंने अरविंद को सलाह दी थी कि व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई लड़ने के लिए ईमानदारी सबसे ज्यादा जरूरी है और सत्ता संघर्ष के लिए भ्रष्टाचार करना वर्तमान समय में एक मजबूरी है। इसलिए यदि आपके साथ कोई बहुत ईमानदार व्यक्ति है तो उसे अलग कर देना ही अच्छा है। अरविंद ने मेरी बात मानकर आनंद कुमार, योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण आदि को किनारे किया। लेकिन इसके साथ-साथ मैंने यह भी सलाह दी थी कि कभी अपने मुंह से ईमानदार होने की घोषणा मत करना क्योंकि ईमानदारी की घोषणा और भ्रष्टाचार एक साथ नहीं चल सकते। लेकिन अरविंद ने मेरी बात नहीं मानी। दूसरी बात यह भी थी कि जब मैंने भ्रष्टाचार करने की सलाह दी थी उस समय भ्रष्ट राजनीति केंद्र में थी। वर्तमान समय में ईमानदार राजनीति केंद्र में हावी है। ऐसे समय में अरविंद जी को नई परिस्थितियों पर विचार करके ही भ्रष्टाचार करना चाहिए था। अरविंद को प्रधानमंत्री बनने की इतनी जल्दीबाजी भी करना उचित नहीं था। यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि अरविंद केजरीवाल ने शराब नीति में चुनाव के लिए पैसा लिया, हो सकता है कि यह पैसा यह लोग घर न ले गए हो। लेकिन सत्ता संघर्ष में अरविंद के साथ जो हो रहा वह स्वाभाविक है। मेरे विचार से अरविंद ने लोक स्वराज्य को धोखा दिया, अन्ना हजारे को धोखा दिया और अपने को ईमानदार कह कर पूरे समाज को धोखा दिया। इसलिए इसका परिणाम भी अरविंद को ही भुगतना पड़ेगा। मुझे अरविंद के जेल जाने से किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं हुआ। कुमार विश्वास ने जो प्रतिक्रिया व्यक्त की कि ‘कर्म प्रधान विश्व रच राखा जो जस करें सो तस फल चाखा’ बहुत सटीक बैठती है। इस संबंध में अन्ना हजारे ने भी बहुत अच्छी प्रतिक्रिया दी है।
मैंने नीतीश कुमार और केजरीवाल को उपयुक्त विपक्षी नेता के रूप में लगातार देखा था। लेकिन केजरीवाल की गलत नियत प्रमाणित होने के बाद मेरा उनके प्रति विश्वास टूट गया। केजरीवाल ने भ्रष्टाचार किया यह उनकी राजनैतिक मजबूरी हो सकती है। इस भ्रष्टाचार के आधार पर उन्हें बेईमान नहीं कहा जा सकता, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने दो ऐसे कार्य किए जिनके आधार पर उनकी नियत पर प्रश्न खड़ा होते हैं। अपने सरकारी मकान में 50 करोड़ रूपया खर्च करना उनके लिए कोई मजबूरी नहीं थी लेकिन उन्होंने किया। दूसरा गंदा कार्य उन्होंने यह किया कि पंजाब सरकार बनते ही अरविंद केजरीवाल ने कुमार विश्वास की गिरफ्तारी का आदेश दिया यह आदेश तो बहुत ही गंदा काम था जो अरविंद केजरीवाल ने किया। इन दो आधारों पर मैंने यह मान दिया कि अरविंद केजरीवाल अन्य विपक्षी नेताओं की तुलना में किसी भी दृष्टि से अच्छे नहीं माने जा सकते। अब तो अरविंद केजरीवाल की गिनती लालू, मुलायम, मायावती, रामविलास पासवान जैसे नेताओं के साथ ही की जा सकती है। अब तो भारत में विपक्षी नेता के रूप में नीतीश कुमार ही दिखते हैं। नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी से दूर होकर विपक्ष की भूमिका निभाते हैं या साथ रहकर यह तो भविष्य में पता चलेगा। लेकिन अब यह बात साफ दिख रही है कि विपक्ष को नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही इकट्ठा होना चाहिए। नीतीश कुमार ने अपने पूरे कार्यकाल में ही उसी तरह कोई गलती नहीं की है जिस तरह मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी ने अपना कार्यकाल पूरा किया। राहुल गांधी जैसे नासमझ और ममता बनर्जी जैसी चालक राजनेताओं को विपक्षी नेता के रूप में आगे आने की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए। नीतीश कुमार के भाजपा के साथ गठबंधन के बाद यह बात साफ है कि विपक्षी दल की भूमिका नरेंद्र मोदी की ही टीम से निकलेगी बाहर से नहीं।
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