सप्त सिद्धांतों के पतवार के सहारे व्यवस्था परिवर्तन की नाव: GT 450

 सप्त सिद्धांतों के पतवार के सहारे व्यवस्था परिवर्तन की नाव:

आज चिन्तन करने की जरूरत है कि ‘व्यवस्था-परिवर्तन’ वर्तमान सामाजिक वातावरण में कहां खड़ा है। हम लोगों ने करीब 70 वर्ष पूर्व व्यवस्था परिवर्तन का प्रयत्न शुरू किया था। हमारे प्रयत्नों का मूल आधार था -

(१) अहिंसा और सत्य, (२) सत्ता का अकेंद्रीकरण, (३) वर्ग समन्वय, (४) श्रम के साथ न्याय, (५) सामाजिक व्यवस्थाओं की पुनर्स्थापना, (६) साम्यवादी अर्थव्यवस्था को समाप्त करके पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का प्रयोग (७) योग्यता को प्रतिस्पर्धा की अधिकतम स्वतंत्रता।

हमारे प्रयत्नों में सबसे बड़ी बाधा था साम्यवादी विचार, साम्यवाद इन सप्त विकार पर केंद्रित था -

(१) हिंसा और असत्य, (२) केंद्रित सत्ता, (३) वर्ग-संघर्ष का अधिकतम उपयोग, (४)चार बुद्धिजीवियों के पक्ष में श्रम-शोषण की नीति, (५) सामाजिक, धार्मिक, पारिवारिक व्यवस्था को तोड़कर राजनीतिक व्यवस्था का सशक्तिकरण, (६) पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के स्थान पर साम्यवादी अर्थव्यवस्था की स्थापना, (७) समानता को अधिक महत्वपूर्ण बनाना और स्वतंत्रता की जगह समानता को आगे लाना।

            हम दोनों की विपरीत विचारधाराओं के बीच संघर्ष शुरू हुआ था। इस संघर्ष में साम्यवादियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मुसलमान, कांग्रेसी तथा धर्म विरोधी एक साथ खड़े थे यह संघर्ष निरंतर चलता रहा। साम्यवाद के साथ मिलकर अन्य सब लोग पूरी ताकत से लगे रहे की हिंसा, असत्य, साम्यवादी अर्थव्यवस्था, अल्पसंख्यक, सांप्रदायिकता को आधार बनाकर नरेंद्र मोदी का विरोध करना है। दूसरी तरफ हम सब लोग मिलकर इस बात का प्रयत्न करते रहे कि हम इस साम्यवादी संस्कृति के खिलाफ नरेंद्र मोदी को आगे लाकर जन-जागरण करते रहेंगे। आमतौर पर मुस्लिम संस्कृति के खिलाफ हिंदू संस्कृति ने एकजुट होकर मोदी का समर्थन किया। मुझे पूरा विश्वास है कि हम लोग व्यवस्था परिवर्तन के बीच इस साम्यवादी बाढ़ को परास्त करने में सफल होंगे। इन संभावनाओं पर और चर्चा हम आज दूसरे सत्र में करेंगे।

हम लोगों ने व्यवस्था परिवर्तन के मार्ग में गांधी विचार को सबसे अधिक नजदीक पाया और नेहरू विचार को सबसे अधिक विरुद्ध । हम लोग 25 वर्ष पहले इस नतीजे पर पहुंचे की लोक-स्वराज्य को सबसे पहले स्थान पर रखना चाहिए। हमारे साथ कई साथी जुड़े उनमें से आचार्य पंकज, ओमप्रकाश दुबे, अभ्युदय द्विवेदी, नरेंद्र सिंह जी, धर्मेंद्र जी राजपूत, प्रेम नाथ जी गुप्ता, रामवीर श्रेष्ठ, ज्ञानेंद्र आर्य आदि अनेक लोग एक साथ बैठकर सोचने लगे लेकिन हम लोगों की दिशा धीरे-धीरे लोक-स्वराज के साथ-साथ वैचारिक संतुलनवादी हिंदुत्व की तरफ भी बढ़ने लगी। हम लोगों के बीच में साम्यवाद के समर्थन और विरोध के नाम पर दो ग्रुप बनने लग गए । मैं, आचार्य पंकज, नरेंद्र सिंह जी, अभ्युदय द्विवेदी, ज्ञानेंद्र आर्य यह साम्यवाद विरोधी माने जाने लगे, ओमप्रकाश दुबे, धर्मेंद्र राजपूत, प्रेमनाथ जी गुप्ता आदि साम्यवाद समर्थक माने जाने लगे । धीरे-धीरे हम लोगों के साथ जब नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत का जुड़ाव बड़ा तो हम लोगों के आपस में टकराव और बड़ा। रामवीर श्रेष्ठ हम लोगों के दोनों के बीच में संतुलन बनाते थे । आज तक हम सब लोग लोक स्वराज के मामले में तो एक साथ हैं लेकिन साम्यवाद के मामले में हम लोगों के विचार अभी तक अलग-अलग है। हम लोगों का ग्रुप इस्लाम और अर्थनीति के मामले में हमेशा भिन्न विचार रखता है और हमारे मित्रों का विचार भिन्न है। हम लोग मोदी समर्थक माने जाते हैं हमारे मित्र मोदी विरोधी माने जाते हैं। लेकिन लोक-स्वराज के मामले में हम सब एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं। हम सब लोग व्यवस्था परिवर्तन के मामले में एकजुट हैं । कल के नतीजे यह सिद्ध करेंगे की आगे भविष्य में हम सब लोगों को मिलकर अपनी नीतियों में क्या बदलाव करना चाहिए। हम लोग सभी साथी यह मानते हैं की महंगाई बेरोजगारी गरीबी यह सब बेकार की बातें हैं यह सब प्रोपेगेंडा है और झूठ है। हमारे समाज की वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या संगठित इस्लाम है जो कभी भी विश्वसनीय नहीं है। हमारे मित्र मानते हैं कि गरीबी बेरोजगारी भुखमरी महंगाई यह सब बड़ी समस्याएं हैं, इस्लाम को समझाया जा सकता है लेकिन इन समस्याओं का कोई समाधान नहीं दिखता।