योग: मानसिक, शारीरिक और आत्मिक शुद्धि का समन्वय

21 जून, प्रातःकालीन सत्र। आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है। योग का अर्थ है 'जोड़ना'। योग में तीन प्रकार की शुद्धियाँ एक साथ मिलती हैं: मानसिक शुद्धि, शारीरिक शुद्धि और आत्मिक शुद्धि। इन तीनों के समन्वय को ही योग कहा जाता है।

मानसिक शुद्धि में यम और नियम का योगदान है। शारीरिक शुद्धि में आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार महत्वपूर्ण हैं, जबकि आत्मिक शुद्धि में धारणा, ध्यान और समाधि शामिल हैं। योग साधना में यह स्पष्ट किया गया है कि योग की शुरुआत मानसिक शुद्धि से करनी चाहिए, न कि शारीरिक शुद्धि से। शारीरिक शुद्धि से मानसिक शुद्धि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन मानसिक शुद्धि होने पर व्यक्ति स्वाभाविक रूप से शारीरिक शुद्धि की ओर अग्रसर हो जाता है। इसलिए मानसिक शुद्धि को प्राथमिकता दी गई है।

वर्तमान समय में जब भारत और संपूर्ण विश्व मानसिक शुद्धि से विपरीत दिशा में जा रहा है, तो योग का अभ्यास कठिन हो गया है। मानसिक शुद्धि के अभाव में शारीरिक शुद्धि संभव नहीं है, और मानसिक अशुद्धि लगातार बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में बाबा रामदेव ने 'सरल योग' का प्रस्ताव रखा, जिसमें पहले शारीरिक शुद्धि पर ध्यान दिया जाता है और बाद में मानसिक शुद्धि पर। इस सरलीकरण के कारण इसे 'सरल योग' नाम दिया गया, जो भारत सहित विश्व भर में लोकप्रिय हो गया।

यह सरलीकरण अच्छा है या बुरा, यह एक अलग चर्चा का विषय है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप लोग शारीरिक शुद्धि को ही योग का आधार मानने लगे हैं, जबकि योग में मानसिक शुद्धि भी अनिवार्य है। नई सामाजिक व्यवस्था में हमें मानसिक और शारीरिक शुद्धि, दोनों को समान महत्व देना होगा। हमें निरंतर प्रयास करना चाहिए कि मानसिक शुद्धि में आने वाली सभी बाधाओं को दूर किया जाए।