25 जून: आपातकाल की स्मृति और तानाशाही की पराकाष्ठा

25 जून: आपातकाल की स्मृति और तानाशाही की पराकाष्ठा

 

आज 25 जून, आपातकाल की स्मृति में हम इंदिरा गांधी की तानाशाही प्रवृत्ति पर चर्चा कर रहे हैं। मेरा अपना अनुभव बताता है कि किसी भी प्रवृत्ति की पराकाष्ठा (क्लाइमेक्स) केवल एक महिला ही कर सकती है, पुरुष नहीं — चाहे वह पराकाष्ठा सेवा की हो अथवा अत्याचार की, चाहे वह त्याग की हो या संग्रह की, चाहे वह प्रेम की हो या तानाशाही की। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमारे सामने पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी के रूप में उपस्थित है।

 

नेहरू के मन में तानाशाही थी, लेकिन वह तानाशाही एक सीमा के भीतर थी। इंदिरा गांधी ने उन सारी सीमाओं को तोड़ दिया। सेक्स की भूख भी नेहरू के मन में थी, लेकिन उसमें एक सीमा थी। नेहरू के मन में लोकलाज थी, प्रतिष्ठा की रक्षा का भाव था। इंदिरा गांधी के मन में किसी प्रकार की कोई सीमा नहीं थी। नेहरू किसी को भी धोखा देने में बहुत सावधानी बरतते थे, लेकिन इंदिरा गांधी ने इस मामले में भी पराकाष्ठा को पार करने का प्रयत्न किया।

 

आज मैं देखता हूं कि अच्छे-अच्छे इतिहासकार और नेता यह मानते और प्रचारित करते हैं कि जगमोहन लाल सिन्हा के निर्णय और जयप्रकाश आंदोलन के बाद इंदिरा गांधी के अंदर आपातकाल और तानाशाही की भूख जागी। मेरे विचार में यह हम लोगों की एक बड़ी भूल और नासमझी है। इंदिरा गांधी शुरू से ही लोकलाज को त्यागकर तानाशाह बनने की दिशा में बढ़ रही थीं।

 

इंदिरा गांधी ने पूर्ण बहुमत प्राप्त होने के बाद संविधान में मनमाने संशोधन किए। उन्होंने व्यक्ति के मौलिक अधिकार छीन लिए, राष्ट्रपति के अधिकार भी समाप्त कर दिए — और यह सब जगमोहन लाल सिन्हा के निर्णय से पहले ही हो चुका था। यह स्पष्ट है कि इंदिरा गांधी पूर्ण तानाशाह बनने के लिए केवल अवसर की प्रतीक्षा कर रही थीं।

 

मुझे अच्छी तरह ज्ञात है कि राजीव गांधी इंदिरा गांधी से सहमत नहीं थे, जबकि संजय गांधी पूरी तरह इंदिरा के साथ थे। इसलिए संजय गांधी को सारी ‘गुंडागर्दी’ के अधिकार दे दिए गए थे। और दुर्भाग्यवश, हमारे संघ के कुछ लोग आज भी संजय गांधी की ‘गुंडागर्दी’ की प्रशंसा करते हैं।

 

कोई भी इतिहासकार या विचारक इस प्रश्न का उत्तर क्यों नहीं देता कि व्यक्ति के मौलिक अधिकार और राष्ट्रपति के अधिकार छीनने की उस समय क्या आवश्यकता थी? क्या मजबूरी थी?

 

यही नहीं, केशवानंद भारती का निर्णय जिस दिन सर्वोच्च न्यायालय में सुनाया गया, उसी के अगले दिन तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को हटाकर, न्यायमूर्ति राय को — जो इंदिरा गांधी के निकटस्थ थे — मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। क्योंकि जस्टिस राय के नेतृत्व में तीन अन्य न्यायाधीशों ने केशवानंद भारती प्रकरण में इंदिरा गांधी का पक्ष लिया था, और इन्हीं चारों ने आपातकाल के बाद फिर से इंदिरा गांधी का समर्थन किया।

 

इसका स्पष्ट अर्थ है कि इंदिरा गांधी की ओर से तानाशाही की पूरी तैयारी पहले से ही की जा चुकी थी।

 

मेरा सुझाव है कि हमारे इतिहासकार जयप्रकाश नारायण और जगमोहन लाल सिन्हा को इंदिरा गांधी की तानाशाही का कारण मानने की भूल न करें। सच्चाई यह है कि भारत में तानाशाही स्थापित करने की जो ढकी-छुपी योजना नेहरू के मन में थी और जिस पर वे कार्य कर रहे थे, उस योजना को बहुत तीव्र गति से और पराकाष्ठा तक पहुंचाने में इंदिरा गांधी ने अपनी भूमिका निभाई। और आज भी सोनिया गांधी निरंतर उस दिशा में प्रयत्नशील हैं, जिसकी प्रतिछाया वर्तमान में राहुल गांधी में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।

 

प्रश्न: कल आपने इंदिरा गांधी पर एक पोस्ट लिखी थी, जिस में आपने महिलाओं के लिए क्रूरता आदि अतिवादी व्यवहार के लिए सामान्यीकरण किया, यह उचित नहीं।

उत्तर: मैंने अपने लेख में महिलाओं के नकारात्मक पक्ष ही नहीं सकारात्मक पक्ष को भी स्वीकार किया है। उदाहरण के लिए, परिवार के लिए जान देने की बात हो तो महिलाएँ सबसे आगे होती हैं। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि वे केवल अच्छे कार्यों में ही आगे रहती हैं; बुरे कार्यों में भी उनकी भागीदारी उतनी ही हो सकती है, जितनी अच्छे कार्यों में। इसका सबसे जीवंत उदाहरण हैं इंदिरा गांधी। स्वतंत्रता के बाद इंदिरा गांधी ने पाँच ऐसी विशेषताओं का प्रदर्शन किया, जिनमें उन्होंने कूटनीति की सारी सीमाएँ तोड़ दीं। ये हैं: धूर्तता, नाटकीयता, भावनात्मकता, दुस्साहस, और तिकड़मबाजी

मेरा प्रश्न है: भारत में ऐसा कौन-सा अन्य नेता हुआ, जिसने इन पाँचों विशेषताओं को मिलाकर इंदिरा गांधी से बेहतर प्रदर्शन किया हो? मेरे विचार से, महिला नेताओं में इंदिरा गांधी अद्वितीय रही हैं। पुरुष नेताओं में जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, नरसिम्हा राव, चंद्रशेखर, राजीव गांधी, मनमोहन सिंह, नरेंद्र मोदी जैसे लगभग दस प्रधानमंत्री हुए हैं, लेकिन इनमें से किसी ने भी इंदिरा गांधी की इन पाँच विशेषताओं को एक साथ इस तरह से पार नहीं किया।

एक पाठक ने इस बात का जवाब नहीं दिया कि इंदिरा गांधी ने कितनी कुशलता से यह नाटक किया कि वे त्यागपत्र देना चाहती थीं या चुनाव हारने के बाद हिमालय चली जाना चाहती थीं। क्या किसी अन्य राजनेता ने ऐसा नाटकीय प्रदर्शन किया है? मैंने जो पाँच विशेषताएँ बताई हैं, उनमें से किस पर आपको संदेह है?

कुछ मामलों में इंदिरा गांधी का रिकॉर्ड शायद सोनिया गांधी ने ही तोड़ा है। उदाहरण के लिए, कितनी सफाई से उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी को भरी बैठक में अपमानित कर बाहर निकलवाया था। कितनी चतुराई से उन्होंने दस साल तक मनमोहन सिंह को कठपुतली की तरह नियंत्रित किया। ऐसी कुशलता अभी तक किसी अन्य राजनेता ने नहीं दिखाई।

इसलिए, मैं मानता हूँ कि मेरी कल की पोस्ट बिल्कुल सटीक थी। आप इसे पढ़ें और अपने विचार साझा करें।