27 जून — प्रातःकालीन सत्र नई समाज व्यवस्था का स्वरूप और पहचान का महत्व

27 जून — प्रातःकालीन सत्र
नई समाज व्यवस्था का स्वरूप और पहचान का महत्व

नई समाज व्यवस्था में सामाजिक समस्याओं के समाधान की ज़िम्मेदारी समाज स्वयं निभाएगा, जबकि आपराधिक समस्याओं का समाधान राज्य करेगा। इस व्यवस्था में केवल दो ही कार्यों को अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा — पहला, बलप्रयोग, और दूसरा, धोखाधड़ी। इसके अतिरिक्त कोई अन्य कार्य आपराधिक नहीं माना जाएगा।

प्रत्येक व्यक्ति को विशेष अधिकार या स्थिति प्राप्त करने के लिए एक निर्धारित परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी। जो व्यक्ति यह परीक्षा पास नहीं कर पाते, उन्हें श्रमिक वर्ग में रखा जाएगा। परीक्षा में उत्तीर्ण होने वालों की भी तीन श्रेणियाँ होंगी, जिनकी पहचान स्पष्ट और भिन्न होगी।

इस पहचान को धोखे से अपनाना एक अत्यंत गंभीर अपराध माना जाएगा। उदाहरणस्वरूप, यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी अन्य की पहचान को धारण करता है — जैसे सन्यासी की पोशाक पहनना बिना सन्यास जीवन अपनाए — तो उसे कड़े दंड का भागी बनाया जाएगा। ऐसे व्यक्ति को आजीवन कारावास तक की सजा दी जा सकती है।

पहचान की यह अवधारणा आज भी समाज में आंशिक रूप से विद्यमान है — जैसे सन्यासियों, वकीलों, पुलिस कर्मियों आदि की विशिष्ट वेशभूषा। भविष्य में यह व्यवस्था और अधिक स्पष्ट होगी।

इसी प्रकार, यदि कोई महिला विवाहित न होने पर भी सिंदूर धारण करती है, तो इसे भी पहचान की गलत प्रस्तुति और धोखाधड़ी के रूप में देखा जाएगा, और इस पर भी आजीवन कारावास तक का दंड संभव है।

संक्षेप में, समाज की प्रत्येक श्रेणी की एक सुनिश्चित पहचान होगी, और यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य वर्ग की पहचान को जानबूझकर अपनाता है, तो यह समाज और व्यवस्था के साथ विश्वासघात माना जाएगा और कठोरतम दंड के योग्य होगा।