29 जून | प्रातःकालीन सत्र

29 जून | प्रातःकालीन सत्र

वर्तमान व्यवस्था में सबसे अधिक विकृति और अव्यवस्था राजनीतिक ढांचे ने उत्पन्न की है। इसका मूल कारण यह है कि हमने 'दायित्व' और 'कर्तव्य' जैसे दो भिन्न अवधारणाओं को आपस में मिला दिया है, जबकि इन दोनों के अर्थ, प्रकृति और प्रभाव बिल्कुल अलग हैं।

दायित्व वह होता है जो किसी व्यक्ति को किसी संस्था, समाज या व्यवस्था द्वारा सौंपा जाता है। यह सौंपा गया कार्य व्यक्ति के प्रति जवाबदेही उत्पन्न करता है। यदि व्यक्ति दायित्व का निर्वहन नहीं करता है, तो उसे उत्तर देना होता है, सफाई देनी होती है, और आवश्यकता पड़ने पर दंडित भी किया जा सकता है।

इसके विपरीत, कर्तव्य पूर्णतः स्वैच्छिक होता है। यह आत्मबोध, नैतिक चेतना और आंतरिक प्रेरणा से उत्पन्न होता है। कर्तव्य का उल्लंघन व्यक्ति को सामाजिक आलोचना का पात्र तो बना सकता है, लेकिन उसके लिए कोई कानूनी या संस्थागत दंड नहीं दिया जा सकता। कर्तव्य न निभाने पर व्यक्ति को बहिष्कृत किया जा सकता है, पर दंडित नहीं।

दुर्भाग्यवश, वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था ने दायित्व और कर्तव्य की इस मूलभूत भिन्नता को मिटा दिया है, जिससे एक गंभीर नैतिक और प्रशासनिक विकृति उत्पन्न हुई है।

नई समाज व्यवस्था में हम इन दोनों अवधारणाओं को स्पष्ट रूप से अलग करेंगे।

  • कर्तव्य के पालन की अपेक्षा तो की जाएगी, लेकिन उसके उल्लंघन पर केवल आलोचना की जा सकेगी, दंड नहीं।
  • जबकि दायित्व के मामले में व्यक्ति पूरी तरह उत्तरदायी होगा, और उसे अपने कार्य के लिए दंडित किया जा सकेगा।

इस स्पष्ट विभाजन से समाज में उत्तरदायित्व और नैतिकता दोनों को सशक्त आधार मिलेगा।