क्योंकि दया समाज का विषय है, शासन का नहीं।
12 नवंबर, प्रातःकालीन सत्र
जब हम किसी व्यक्ति को अधिकार प्रदान करते हैं, तो वे अधिकार उसकी शक्ति बन जाते हैं — परंतु वे हमारे लिए अमानत (trust) के समान रहते हैं। उस व्यक्ति को उन अधिकारों के आधार पर किसी पर दया करने का अधिकार नहीं होता, क्योंकि दया व्यक्तिगत भाव है, न कि पद या अधिकार का कार्य।
इसका अर्थ यह हुआ कि दया करने का अधिकार किसी पदाधिकारी को नहीं है। कोई न्यायाधीश, मंत्री, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति अपने पद के अधिकार से दया नहीं कर सकता — क्योंकि दया समाज का विषय है, शासन का नहीं।
नई व्यवस्था में “केंद्र सभा” के सदस्य दया कर सकते हैं, क्योंकि वे समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं; परंतु “केंद्र सरकार” के अधिकारी ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि सरकार एक राजनीतिक इकाई है, जबकि केंद्र सभा एक सामाजिक इकाई है।
इसी प्रकार, पशुओं पर दया करना केंद्र सभा का कार्य होगा — न कि केंद्र सरकार या न्यायालय का।
और किसी व्यक्ति पर दया भी व्यक्तिगत रूप से ही की जा सकती है, पद या अधिकार के आधार पर नहीं।
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