गुजरात को गालियां देकर आप वहां से कुछ लूट कर ला सकते हैं लेकिन आप बिहार का पिछड़ापन दूर नहीं कर पाएंगे।

 

 

 

मैं छत्तीसगढ़ में रहता हूं लेकिन मेरे घर से बिहार सिर्फ 100 फुट की दूरी पर ही है अर्थात हमारे शहर की पूरी संस्कृति बिहार की है। मैं अग्रवाल परिवार से हूं और हमारी संस्कृति गुजरात से मिलती-जुलती है। बिहार में श्रम और बुद्धि दोनों बहुत अधिक है लेकिन बिहार के लोगों के श्रम और बुद्धि का पलायन बाहर अधिक होता है। मैं इसका कारण प्रत्यक्ष देखा है कि बिहार में गुंडागर्दी बहुत ज्यादा बढ़ रही थी उद्योग धंधे नहीं लग रहे थे यही कारण है कि बिहार के बुद्धिजीवियों का भी और श्रमजीवियों का भी पलायन हो रहा था। दूसरी ओर गुजरात दादागिरी और गुंडागर्दी से मुक्त था गुजरात लगातार शांति के मार्ग पर चल रहा था। परिणाम हुआ कि गुजरात तरक्की करता चला गया बिहार पिछड़ता चला गया। गुजरात ने ही गांधी दिया नरेंद्र मोदी दिए अडानी और अंबानी दिए और बड़े-बड़े उद्योगपति दिए जो सारी दुनिया में विख्यात है। बिहार ने दादा दिए लालू प्रसाद दिए जिनकी पहचान दादागिरी तक ही सीमित है। आज गुजरात सारे भारत के लिए एक रोल मॉडल बन रहा है अभी छत्तीसगढ़ में भी यहां की सरकार ने गुजरात के लोगों को उद्योग धंधों के लिए आमंत्रित किया है और गुजरात के लोगों ने 35000 करोड रुपए का आश्वासन भी दिया है। इसलिए बिहार की संस्कृति को अब गुजरात की संस्कृति के साथ तालमेल करना चाहिए ताकत के बल पर आप दुनिया को संतुष्ट नहीं कर सकते इसलिए मेरा सुझाव है कि बिहार के प्रमुख लोग गुजरात में जाकर कुछ सीखें। गुजरात को गालियां देकर आप वहां से कुछ लूट कर ला सकते हैं लेकिन आप बिहार का पिछड़ापन दूर नहीं कर पाएंगे।