लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना होगा की अहिंसा और कायरता में बहुत फर्क होता है।
18 नवंबर प्रातः कालीन सत्र हम कल से हिंसा और अहिंसा पर चर्चा कर रहे हैं। लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना होगा की अहिंसा और कायरता में बहुत फर्क होता है। वर्तमान भारत में हिंदू आमतौर पर ना हिंसक होता है ना अहिंसक होता है हिंदू तो कायर होता है। भारतीय संस्कृति की यह पहचान बन गई है की मजबूतों से डर कर रहा जाए और कमजोरों को डरा कर रखा जाए यह हमारी घातक संस्कृति बनती जा रही है। आप वर्तमान में देखिए कि आप जिन्हें हिंसक कहते हैं वे वास्तव में कायर है। पूरे भारत में कोई ऐसा शहर नहीं मिलेगा जिस शहर के 90% हिंदू गुंडो से ना डरते हो उन्हें पैसा ना देते हो उन्हें सम्मान न देते हो उनके खिलाफ ना कहीं शिकायत करेंगे ना कहीं ग्वाही देंगे लेकिन वही कायर लोग पाकिस्तान के खिलाफ अमेरिका के राष्ट्रपति के खिलाफ बढ़-चढ़कर नारे लगाते मिल जाएंगे। वह किसी अन्य कमजोर को मारते-पीटते भी मिल जाएंगे। अब आप सोचिए कि ऐसे हिंदुओं को कायर कहा जाए हिंसक कहा जाए या अहिंसक कहा जाए। वर्तमान भारत में जो भी धर्मगुरु हिंसा की वकालत करते हैं उन्होंने अपने जीवन में कभी एक पत्थर भी नहीं चलाया है वे स्थानीय गुंडो से डरते हैं लेकिन राम और कृष्ण का उदाहरण देकर हमें अपने पास हथियार रखने की सलाह देते हैं। यह वास्तव में कायर होते हैं। इसलिए मेरा आपके सुझाव है की कायर नहीं अहिंसक बनिए। आप किसी भी अत्याचार की सूचना उपयुक्त व्यक्ति को दीजिए अपने शिकायत उपयुक्त व्यक्ति तक करने की आदत डालिए। कभी आप कायर नहीं अहिंसक माने जाएंगे।
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